Monday, September 16, 2024
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जानिए क्यों भारत का नालंदा विश्वविद्यालय दुनिया भर मे प्रसिद्ध था।

 नालंदा विश्वविद्यालय के विषय में तो आपने जरूर ही सुना होगा। नालंदा विश्वविद्यालय हमारे देश के प्राचीन भारत का दुनिया भर में प्रसिद्ध विश्वविद्यालय था।यह  विश्वविद्यालय प्राचीन भारत के मगध (वर्तमान का बिहार) में स्थित था।  नालंदा विश्वविद्यालय एक बौद्ध मठ था , जहां महत्मा बुद्ध ने अपना तीसरा उपदेश दिया था।  उस समय के मगध वर्तमान बिहार के पटना शहर के 95 किलोमीटर दूर दक्षिण पूर्व में स्थित है

। नालंदा विश्वविद्यालय का  इतिहास 5वीं शताब्दी से लेकर 13वीं शताब्दी तक माना जाता है। नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना कुमार गुप्त प्रथम के द्वारा की गई थी। अतीत के नालंदा विश्वविद्यालय के सामने वर्तमान के बड़े बड़े विश्वविद्यालय कुछ भी नही हैं। प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय में 1000 से भी अधिक बुद्धिष्ट मानुष शिक्षा प्राप्त करते थे और वहां और 1510 से अधिक अध्यापक भी रहते थे। यहां पर दुनिया के अनेक देशों जैसे – चीन, जापान, कोरिया, परसिया, इण्डोनेशिया, श्रीलंका, तुर्किए आदि  जगहों से लोग शिक्षा प्राप्त करने के लिए आते थे।महान गणितज्ञ आर्यभट भी इसी यूनिवर्सिटी के संचालक और एक श्रेष्ठ अध्यापक रह चुके थे। इस विश्वविद्यालय में सिर्फ बौद्ध धर्म का ज्ञान नही दिया जाता था बल्कि उसके साथ साथ खगोलविद्या, चिकित्सा, गणित आदि शिक्षा दी जाती थी।

  अतीत में नालंदा विश्वविद्यालय  पूरी दुनिया के लिए शिक्षा का केंद्र था।‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌ परंतु 12वीं शताब्दी में बख्तियार खिलजी ने इसे जला दिया। बख्तियार खिलजी ने यहां के पुस्तकालय में रखी 90 लाख पुस्तकों को भी जलाकर राख बन थी। इसे जानने के बाद आपके मन यह सवाल तो जरूर उठ रहा होगा की क्यों उसने इस विश्वविद्यालय को जलाया क्योंकि न ही तो यह किसी राजा का शासन क्षेत्र था और न ही यहां कोई खजाना छुपा हुआ था फिर उसने यहां पर हमला क्यों किया।आपको यह जानकर हैरानी होगी कि खिलजी एक अकेला ऐसा शख्स नही था जिसने नालंदा पर हमला किया था। इससे पहले भी दो बार नालंदा पर हमला किया था। नालंदा पर पहला हमला 455-467 के बीच हुआ था। जो हुंश ने किया था यह सेंट्रल एशिया से आया था। उसने नालंदा पर हमला कर इसे बहुत नुकसान पहुंचाया। उसने यह हमला समुद्रगुप्त के शासन काल में किया था। बाद में समुद्रगुप्त ने नालंदा का विनिर्माण करवाया और कुछ नई इमारतें भी बनवाई जिससे यह विश्वविद्यालय पुराने नालंदा विश्वविद्यालय से भी भव्य रूप बनाकर उसे संजोया।
दूसरी बार नालंदा पर हमला सातवीं शताब्दी में हुआ था। इस बार  नालंदा पर हमला बंगाल के गौदास राज घराने ने किया था। इस बार नालंदा को हर्षवर्धन द्वारा संजोया गया था।

तीसरी बार नालंदा पर हमला खिलजी ने किया था। ऐसा उसने अपनी ईर्ष्या के वजह से किया था। क्योंकि जब खिलजी पूरी भारत पर  राज करने के लिय जगह जगह पर युद्ध कर रहा था तब वह एक बार इतना बीमार हो गया की बड़े से बड़े चिकित्सक उसका इलाज करने में असमर्थ थे। तो किसी ने खिलजी से कहा की वह नालंदा के प्रिंसिपल राहुल सिरधार से मिले। क्योंकि राहुल सिरधर नालंदा के श्रेष्ठ चिकित्सक थे। जब खिलजी ने राहुल सिरधार को बुलाया तो उन्हें चुनौती देते हुए कहा की ‘ मैं आपकी दी हुई कोई भी दवा नही खाऊंगा ‘। पर राहुल सिरधर भी हार मानने वालों वालों में से नही थे उन्होंने भी खिलजी की यह चुनौती स्वीकार कर ली और उन्हे एक कुरान देते हुए कहा की आपको इसे रोज पढ़ना होगा पर उन्होंने उसे यह नहीं बताया की उन्होंने कुरान के पन्ने पर अपनी दवाई लगा दी है, जिसे पढ़ते समय दवाई खिलीजी के शरीर में जाति थी और धीरे धीरे खिलजी अपने पैरों पर वापस से खड़ा हो गया। लेकिन उसने नालंदा और राहुल सीरधार का शुक्रिया करने के बजाय नालंदा को जलने का फैसला किया क्योंकि उसे यह बरदाश नही हो रहा था की कैसे नालंदा के सभी शिष्य और उसके अध्यापक उससे हर क्षेत्र में आगे हैं।

फिर उसने 12वीं शताब्दी में नालंदा पर जब हमला किया तो उसने सबसे पहले वहां के शिष्यों को मरना सुरु कर दिया और नालंदा में बड़ी बड़ी तीन इमारतों के बीच में बना एक विशाल पुस्तकालय को जला दिया जिसमे 90 लाख किताबें रखी हुई थी। ऐसा माना जाता है की खान पर बहुत सी मूल पांडुलिपियों रखी हुई थीं और बहुत से उपनिषदों की मूल प्रतियां भी रखी हुई थी। जिसे खिलजी की सेना ने जलाकर राख बना दिया। ऐसा माना जाता है की  इन पूरी किताबों को जलने में 3 महीने का समय लगा था। खिलजी ने नालंदा के साथ साथ दो और विश्वविद्यालय विक्रमशिला विश्वविद्यालय और उड़ानापुरी विश्वविद्यालय को भी जला दिया था।700 साल पुराने विश्वविद्यालय के साथ साथ इतना सारा ज्ञान, दस्तावेज और परंपरा एक व्यक्ति के जलन की वजह से जलकर राख हो गई। खिलजी द्वारा इस बार नालंदा को इतनी बुरी तरह से बर्बाद किया था की उसे दुबारा नहीं बनाया जा सकता था।

लेकिन 1193 में जले इस विश्वविद्यालय पर 2006 में हमारे पूर्व प्रधानमंत्री  अब्दुल कलाम की नजर पड़ी और उन्होंने सरकार से गुजारिश की कि क्यूं ना नालंदा को वापस से पहले की तरह गौरवशालीन की तरफ मोड़ दिया जाय और अगर ऐसा न हुआ तो इससे प्रेरणा लेकर भविष्य के लिए प्रेरित हो सकें। जिसके बाद बहुत से एशियाई देशों द्वारा इसका समर्थन किया और नालंदा यूनिवर्सिटी एक्ट ऑफ 2010 के तहत निर्माण कार्य शुरू किया गया । इस नई नालंदा यूनिवर्सिटी को पुरानी यूनिवर्सिटी पर भी बल्कि उसी के पास बनाई गई और पुराने नालंदा विश्वविद्यालय के खंडारों को पर्यटन स्थान के रूप में विकाशित किया गया जिससे यहां पर आने वाले सभी पर्यटक हमारे संस्कृति से शिक्षा ले सकें और हमारी संस्कृति के बारे में जान सकें।

दुरबरा से नालंदा विश्वविद्यालय बनाने के बाद 2014 से ही यहां दाखिले शुरू हो चुके हैं। और प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय का खंडर एक पर्यटन स्थल बन गया है जहां लाखों की संख्या में लोग घूमने आते हैं आईटी हमारी संस्कृति को जानते हैं और  प्रेरित होते हैं।
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