हमारा देश भारत अपनी खूबसूरती और अपनी सुंदरता के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। भारत में स्थित कुछ ऐसी जगह हैं, जिका मुकाबला पूरी दुनिया में कोई नहीं कर सकता है। जिसमें से भारत के कुछ ऐसे रहस्यमई मंदिर भी हैं, जिनका रहस्य किसी भी वैज्ञानिकों द्वारा नहीं खोला जा सका है। इनका रहस्य आज भी रहस्य ही बना हुआ है। यहां आप भारत के कुछ ऐसे रहस्यमई मंदिरों के बारे में भी जानकारी प्राप्त करेंगे।
ऐसा माना जाता है कि प्राचीन सोमनाथ मंदिर में एक ऐसी शिवलिंग हुआ करती थी जो हवा में तैरती रहती थी। लेकिन विदेशों के विमानकारियों ने आकर उस शिवलिंग को तोड़ दिया था। ऐसा कहा जाता है कि, इस मंदिर को सिर्फ एक बार ध्वस्त नहीं किया गया था बल्कि 17 बार ध्वस्त किया गया था। पर हर बार इस मंदिर का निर्माण दोबारा कर दिया गया। यहां की ऐसी मान्यता है कि यहां पर भगवान श्री कृष्ण जी ने अपने देह का त्याग किया था। ऐसा भी माना जाता है कि जब भगवान श्री कृष्ण जी यहां एक वृक्ष के नीचे आराम कर रहे थे तब एक शिकारी ने उनके अंगूठे को हिरण की आंख समझ कर वान जला दिया था और वह वान जाकर भगवान श्री कृष्ण के पैर के अंगूठे में लग गया।जिसके द्वारा भगवान श्री कृष्ण ने अपने देह का त्याग किया था। यह मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों में से प्रथम ज्योतिर्लिंग माना जाता है। इस मंदिर पर एक ऐसी चीज लिखी हुई है जो इसे और रहस्यमई बनाती है। इसमें यह लिखा है कि अगर आप इस मंदिर से साउथ पोल की तरफ कोई तीर चलाते हैं, तो उस मंदिर से लेकर अंटार्टिका तक बीच में कोई वस्तु नहीं आएगी। आश्चर्य की बात तो यह है कि अगर आप गूगल मैप खोलते हैं तो इस मंदिर अंटार्टिका के बीच एक भी आईलैंड नहीं आता है।
यह मंदिर आंध्र प्रदेश के चित्तौड़ जिले में स्थित है। तिरुपति बालाजी का यह मंदिर बहुत ही प्रसिद्ध और रहस्यमई मंदिर है। इस मंदिर में स्थित वेंकटेश्वर भगवान जी की मूर्ति की यह मान्यता है कि यह विष्णु भगवान जी का साक्षात अवतार है। वेंकटेश्वर भगवान की इस प्रतिमा की मान्यता यह है कि इस मूर्ति के सिर पर असली बाल है और इस मूर्ति को पसीना भी आता है। इस मूर्ति के बगल में एक छड़ी भी रखी हुई है ऐसा कहा जाता है कि उस छड़ी से भगवान वेंकटेश्वर को मारा गया था। जिसके कारण उनके ठुड्ढी पर चोट लग गई थी। यहां पर हर रोज पुजारियों द्वारा बहुत ही कड़े नियमों के साथ पूजा पाठ की जाती है और प्रतिदिन भगवान वेंकटेश्वर जी के ठुड्ढी पर हल्दी का लेप लगाया जाता है। इस मूर्ति की मान्यता यह भी है कि इसे किसी ने भी नहीं बनाया है बल्कि यह स्वयं प्रकट हुई है।
यह मंदिर उड़ीसा में 12 वीं सदी में नरसिंह देव द्वारा बनाया गया था। यह मंदिर भगवान सूर्य देव को समर्पित है इस मंदिर का निर्माण कुछ इस प्रकार किया गया था कि आज भी सूर्य की पहली किरण इस मंदिर के मुख्य द्वार पर ही पड़ती है। इस मंदिर की रचना इस प्रकार है कि जैसे किसी रथ में 24 पहिया लगाए गए हों और 7 शक्तिशाली घोड़ों द्वारा इस रथ को खींचा जा रहा हो। इस रथ पर भगवान सूर्य देव को विराजमान किया गया है और इस रथ के 24 पहिए दिन के 24 घंटे को दर्शाते हैं। आज भी इन पहियों की आवश्यक से हम समय का पता लगा सकते हैं। इस मंदिर को भी विदेशी यमनकारियो और मुगलों द्वारा नष्ट किया गया था।
इस मंदिर के बहुत सारे ऐसे रहस्य है, जो आप को आश्चर्यचकित कर देंगे। इस मंदिर के शिखर पर जो ध्वज लगा है, वह हवा के विपरीत दिशा में लहराता है। यह मंदिर बहुत ही ऊंचा और विशाल है, फिर भी इसकी कोई परछाई नहीं बनती है। इस मंदिर के ऊपर कभी भी, एक भी पक्षी उड़ता हुआ नहीं नजर आता है। इस मंदिर के सामने ही समुद्र है लेकिन अगर आप इस मंदिर के अंदर चले जाते हैं, तो आपको समुद्र का शोर बिल्कुल भी सुनाई नहीं देगा ऐसा प्रतीत होगा कि मानो आस-पास कोई समुद्र ही ना हो। इस मंदिर के शिखर पर एक बहुत ही बड़ा चक्र भी बना हुआ है, जिसे आप किसी भी दिशा या कहीं से भी देखें तो आपको यह सामान्य ही नजर आएगा। इस मंदिर के बहुत से ऐसे रहस्य हैं , जो अभी भी रहस्य ही बने हुए हैं। किसी भी वैज्ञानिकों द्वारा उसे समझाया नहीं जा सका है।
इस मंदिर के कुल 6 खुफिया दरवाजे हैं, जिन्हें कभी नहीं खोला गया था परंतु 2011 में सरकार की अनुमति से इस मंदिर के 5 रहस्यमई दरवाजो को खोल दिया गया था। इस मंदिर के पांच रहस्यमई कमरों में बहुत सारा खजाना निकला है। जिसमें से सोने की वस्तुएं जैसे – भगवान की मूर्ति, सिक्के, बर्तन, इत्यादि मिले हैं। इस मंदिर के पांचों कमरे के खजाने का मूल्य कुल एक ट्रिलियन डॉलर का था। इसक छठे दरवाजे को नहीं खोला गया है। क्योंकि यहां के पुजारियों का कहना है कि अगर इस दरवाजे को खोला गया तो पूरी दुनिया में तबाही मच जाएगी। इस मंदिर के छठे दरवाजे पर सांपों की आकृति बनी हुई है, जैसे मानो कि वह हमें सचेत कर रहे हो कि इसे ना खोला जाए। इस दरवाजे का रहस्य यह भी है कि साधारण तरीके से इसे नहीं खोला जा सकता है। क्योकि इसे खोलने के लिए एक खास मंत्र पढ़ना पड़ता है, जो कि व्यक्ति को पूरी तरीके से याद नहीं है। आश्चर्य की बात तो यह है कि इस मंत्र को कोई साधारण व्यक्ति पढ़ भी नहीं सकता है।
यह भगवान शिव जी के उग्र रूप वीरभद्र को समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण दो भाई वीरूपन्ना और वीरूअन्ना ने किया था, जो विजयनगर के राजा के अधीन कार्य किया करते थे। इस मंदिर की मान्यता है कि लेपाक्षी का यह मंदिर वही स्थान है जहां रावण के साथ युद्ध के दौरान जटायु गिर गए थे। 16वीं शताब्दी में इसी स्थान पर इस मंदिर का निर्माण किया गया था। इस मंदिर का सबसे बड़ा रहस्य यहां का हैंगिंग पिलर है। यहां पर बहुत सारे पिलर है, परंतु एक अकेला ऐसा हैंगिंग पिलर है जो जमीन से 1 इंच की ऊंचाई पर तैरता रहता है। यहां पर देश – विदेश से पर्यटक घूमने के लिए आते हैं और इस पिलर के नीचे से किसी भी पतले कपड़े या पेपर को आर पार करके देखते हैं। इस तैरते हुए पिलर का रहस्य आज तक कोई नही सुलझा पाया है और यह रहस्य आज भी रहस्य ही बना हुआ है।