आज के समय में मुद्रा किसी भी व्यक्ति के लिए मूल आवश्यकता बन चुकी है। किसी भी वस्तु यह सेवाओं को खरीदने या बेचने के लिए जिस माध्यम का उपयोग किया जाता है उसे मुद्रा कहते हैं। जैसे अगर हम किसी को अपनी सेवा प्रदान करते हैं तो उसके बदले हमें कुछ धन राशि मिलती है, यह धनराशि कागजी मुद्रा, धातु मुद्रा और वर्तमान समय में कैशलेस भुगतान जैसे माध्यम से हमे प्राप्त होती है। किसी भी व्यक्ति के लिए खाना, कपड़ा और मकान जैसे मूल आवश्यकता है, वैसे जीवन निर्वाह के लिए पैसे बहुत जरूरी है क्योंकि जीवन की मूल आवश्यकता भी पैसों से ही पूरी हो सकती है।
क्या आपको पता है कि हमारे देश में मुद्राओं की शुरुआत कैसे हुई थी? एक समय हुआ करता था, जब हमारे देश में सोने और चांदी के सिक्कों की मुद्राओं का प्रचलन था।
जिससे हमारे देश को सोने की चिड़िया का नाम मिला था। बदलते वक्त के साथ-साथ यह मुद्राएं कागजों में परिवर्तित हो गई। आधिकारिक रूप से रुपए शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के रुपया शब्द से हुई थी। जिसका अर्थ चांदी होता है। धीरे-धीरे बदलते समय के साथ रुपए शब्द का प्रयोग धातु की बनी आकृति पर मोहर लगी हुई वस्तुओं के लिए किया जाने लगा।
धातु के मोहरे वाले सिक्के भारत में लगभग 17वी शताब्दी तक प्रचलन में रहे। 17वी शताब्दी के बाद जब यूरोपियन कंपनी भारत में आए, तब उन्होंने अपने निजी बैंकों की स्थापना की और तभी से हमारे देश में कागज के मुद्रा की शुरुआत हुई। भारत में पहली कागज की मुद्रा कोलकाता के बैंक ऑफ हिंदुस्तान ने 1770 में जारी किए थे। यह मुद्रा 91 वर्षों तक प्रचलन में रही थी। इसके बाद 1861 में अंग्रेजों ने एक पेपर करेंसी कानून बनाया फिर तब से 10,20,50,100 और 1000 की कागज की मुद्रा की शुरुआत हुई जिस पर रानी विक्टोरिया की तस्वीर मुद्रित होती थी। पर अंग्रेजों द्वारा चलाई गई यह कागज़ी मुद्रा पूरे देश में लागू नहीं की जा सकी थी। क्योंकि उस वक्त पूरे भारत पर अलग-अलग शासकों द्वारा शासन किया जाता था। जैसे गोवा और दमनद्वीप समूह पर पुर्तगालियों द्वारा शासन किया जाता था। वहां पर पुर्तगाली मुद्रा प्रचलन में थी, जिन पर पुर्तगालियों के राजा की तस्वीर हुआ करती थी इस मुद्रा को मुद्रित करने का अधिकार केवल बैंक ऑफ अल्तमिरानों की थी।
भारत के दक्षिणी इलाकों में जैसे केरल का माहे, तमिलनाडु का कुछ क्षेत्र और पश्चिम बंगाल के यमन में फ्रांसीसीयों का शासन चलता था। यहां पर मुद्रा जारी करने की जिम्मेदारी बैंक ऑफ इंडोसिन सन की हुआ करती थी। उस समय के ₹50 की कागजी मुद्रा पर मोरिश डीप्ले की तस्वीर हुआ करती थी, जिन्होंने फ्रांसीसी शासन की स्थापना की थी। सन 1917 – 18 में हैदराबाद के निजाम को भी अपनी मुद्रा जारी करने का अधिकार मिल गया था। क्योंकि उस समय हैदराबाद अपने आप को भारत का हिस्सा नहीं मानता था।
पहले विश्वयुद्ध में धातु की कमी के कारण मोरबी और ढंगधारा के शासकों ने कागज की मुद्राओं को जारी किया था। जिसे हरबाल नाम दिया गया था। दूसरी बार जब विश्व युद्ध हुआ था तब भी धातु की कमी थी।दूसरे विश्व युद्ध के बाद भी लगभग 36 से अधिक रियासतों जैसे गुजरात, राजस्थान, बलूचिस्तान और मध्यप्रांतों में धातु की मुद्रा के बजाय कागज की मुद्रा जारी की थी रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की स्थापना 1 अप्रैल 1935 में हुई थी इसे नोटों को जारी करने का अधिकार मिला था।
हमारे देश में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की स्थापना 1अप्रैल 1935 में हुई थी और इसे ही मुद्रा जारी करने का अधिकार मिला था।
आर.बी.आई की पहली मुद्रा ₹5 का नोट था जिस पर किंग जॉर्ज द फिफ्थ की तस्वीर थी। इस मुद्रा को 1938 में मुद्रित किया गया था जिसके बाद 1947 तक( जब भारत आजाद हुआ था) हमारे देश के कागजी मुद्रा की नई डिजाइन बनाई गई थी, और ₹1 का नोट छापा गया था। इस पर किंग जॉर्ज द फिफ्थ की जगह सारनाथ के अशोक स्तंभ की तस्वीर लगाई छापी गई थी। इसके ठीक 2 साल बाद यानी 1949 में आर.बी.आई को राष्ट्रीय बैंक घोषित कर दिया गया था उस समय एक भी केंद्रीय बैंक नहीं हुआ करता था। इससे पहले एक बार सुभाष चंद्र बोस ने 1943 में एक मुद्रा जारी की थी। उस मुद्रा को आजाद हिंद बैंक द्वारा छापा जाता था और उन नोटों पर सुभाष चंद्र जी की तस्वीर छपी होती थी। परंतु कुछ कारणों से यह पूरी तरह प्रचलित ना हो सकी।सन् 1950 तक भारत की मुद्रा का प्रचलन लगभग 20 से अधिक देशों तक हुआ करता था। यही नहीं कुवैत, कतर, बहरीन और ओमान जैसे देशों में भारत की मुद्रा को अधिकारिक दर्जा मिला हुआ था।
भारत देश की मुद्रा की तस्वीर बदलते समय के साथ साथ गांधीजी के मुस्कुराते हुए चेहरे पर आ गई थी। गांधी जी की यह तस्वीर 1946 में राष्ट्रपति भवन में ली गई थी। जिसमें गांधीजी फेड्रिक विलियम पैथिक के साथ खड़े थे। 1987 में यह तस्वीर पहली बार 500 के नोट पर छापी गई थी।1996 में आर.बी.आई ने इसे ट्रेडमार्क मानते हुए सभी नोटों पर छापना शुरू कर दिया था। अगर आपने भारतीय नोटों को ध्यान से देखा होगा तो आपको पता होगा कि नोटों पर 12 भाषाओं में मूल्य लिखा होता है। हमारे देश के सिर्फ ₹1 के नोट के अलावा सभी नोटों पर आर.बी.आई के गवर्नर के हस्ताक्षर होते हैं परंतु ₹1 के नोट पर वित्त सचिव के हस्ताक्षर होते हैं। क्योंकि यह वित्त मंत्रालय द्वारा जारी होती है। यह हमारे देश के मुद्रा की कहानी थी।
अब विषय आता है उस घटना की जिसने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। 8 नवंबर 2016 की रात में 500 और 1000 के नोटों का विमुद्रीकरण कर दिया गया था , जिसने पूरे देश को हिला कर रख दिया था इससे पहले भी भारत में विमुद्रीकरण 1946 और 1978 में भी किया जा चुका था।
उस समय विमुद्रीकरण का उद्देश्य 10,000 के नोट को बंद करके भ्रष्टाचार को कम करना था। इस तरह हमारे देश में कई बार मुद्राओं में परिवर्तन किए गए हैं, कई बार तस्वीरों को बदला गया है और कई बार विमुद्रीकरण किया जा चुका है।