Wednesday, October 16, 2024
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प्रथम मराठा युद्ध में ब्रिटिश का हमला और मराठा साम्राज्य का पतन

मराठा युद्ध भारतीय उपमहाद्वीप में मराठा साम्राज्य और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच लड़े गए तीन युद्धों की श्रृंखला थी। ये युद्ध 1775 से 1818 तक चले, और इनका परिणाम ब्रिटिशों की जीत और मराठा साम्राज्य के पतन के रूप में हुआ।

  • पहला मराठा युद्ध (1775-1782)
  • दूसरा मराठा युद्ध (1803-1805)
  • तीसरा मराठा युद्ध (1817-1818)

मराठा साम्राज्य का विस्तार, ब्रिटिशों के साथ संघर्ष, मराठा साम्राज्य की आर्थिक सैन्य शक्ति, ब्रिटिशों की विस्तारवादी नीति, मराठा साम्राज्य पर नियंत्रण, मराठा साम्राज्य का पतन, ब्रिटिशों की जीत, मराठा साम्राज्य का विभाजन, ब्रिटिशों के अधीन आना, भारत में ब्रिटिशों के शासन की स्थापना यह सभी कारण मराठा युद्ध के कारण रहे थे।

पहला मराठा युद्ध 1775 – 1782

यह युद्ध मराठा साम्राज्य और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच लड़ा गया था। यह युद्ध मराठा साम्राज्य के विस्तार और ब्रिटिशों के साथ संघर्ष के कारण हुआ था।

कारण:

मराठा साम्राज्य का विस्तार: मराठा साम्राज्य ने अपने क्षेत्र का विस्तार करने की कोशिश की, जिसे ब्रिटिशों ने अपने हितों के लिए खतरा माना। मराठा साम्राज्य का विस्तार कुछ इस प्रकार हुआ था:

शिवाजी ने 1645 में मराठा साम्राज्य की स्थापना की और अपने क्षेत्र का विस्तार करना शुरू किया। शिवाजी ने औरंगजेब के खिलाफ संघर्ष किया और अपने क्षेत्र का विस्तार करने में सफल रहे। शिवाजी के बाद, मराठा साम्राज्य के अन्य शासकों ने अपने क्षेत्र का विस्तार करना जारी रखा, जिनमें संभाजी, राजाराम और ताराबाई शामिल थे।1713 में, पेशवाओं ने मराठा साम्राज्य में शक्ति हासिल की और अपने क्षेत्र का विस्तार करना जारी रखा। बाजीराव प्रथम ने मराठा साम्राज्य के विस्तार में महत्वपूर्ण योगदान दिया और अपने क्षेत्र को उत्तर भारत तक विस्तारित किया।1761 में, मराठा साम्राज्य ने पानीपत की लड़ाई में अहमद शाह अब्दाली के खिलाफ लड़ाई लड़ी, जिसमें मराठा साम्राज्य की हार हुई। पानीपत की लड़ाई के बाद, मराठा साम्राज्य कमजोर हो गया और अपने क्षेत्र का विस्तार करने में असमर्थ रहा।

जिससे यह स्पष्ट होता है कि मराठा साम्राज्य का विस्तार शिवाजी से शुरू हुआ और पेशवाओं के उदय के साथ जारी रहा, लेकिन पानीपत की लड़ाई के बाद मराठा साम्राज्य कमजोर हो गया।

ब्रिटिशों की विस्तारवादी नीति: ब्रिटिशों ने भारत में अपने शासन का विस्तार करने की कोशिश की, जिसे मराठा साम्राज्य ने अपनी स्वतंत्रता के लिए खतरा माना।ब्रिटिशों के विस्तारवादी नीति के कुछ इस प्रकार थी:

ब्रिटिशों ने भारत में व्यापारिक हितों को बढ़ावा देने के लिए विस्तारवादी नीति अपनाई।1600 में, ब्रिटिशों ने ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना की, जिसने भारत में व्यापारिक गतिविधियों को बढ़ावा दिया। 1757 में, ब्रिटिशों ने प्लासी की लड़ाई में जीत के साथ भारत में अपना शासन स्थापित किया। 18वीं शताब्दी के मध्य में, ब्रिटिशों ने विस्तारवादी नीति का प्रारंभ किया और अपने क्षेत्र का विस्तार करना शुरू किया। ब्रिटिशों ने मराठा साम्राज्य के खिलाफ संघर्ष किया और अपने क्षेत्र का विस्तार करने में सफल रहे। 1858 में, ब्रिटिशों ने भारत में अपना साम्राज्य स्थापित किया और भारत को अपने उपनिवेश में शामिल किया। ब्रिटिशों की विस्तारवादी नीति के परिणामस्वरूप भारत में उनका शासन स्थापित हुआ और भारतीय राज्यों की स्वतंत्रता समाप्त हो गई।

जिससे यह स्पष्ट होता है कि ब्रिटिशों की विस्तारवादी नीति ने भारत में उनके शासन की स्थापना के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

सूरत की संधि: 1775 में, मराठा साम्राज्य और ब्रिटिशों के बीच सूरत की संधि हुई, जिसमें मराठा साम्राज्य ने ब्रिटिशों को सलाबत खान के खिलाफ लड़ने में मदद करने का वादा किया। लेकिन मराठा साम्राज्य ने अपना वादा पूरा नहीं किया, जिसे ब्रिटिशों ने अपनी अपमान के रूप में लिया। संधि का मुख्य कारण मराठा साम्राज्य और ब्रिटिशों के बीच बढ़ते तनाव को कम करना था। जिसमें यह तय हुआ था कि मराठा साम्राज्य ब्रिटिशों को सलाबत खान के खिलाफ लड़ने में मदद करेगा और ब्रिटिश मराठा साम्राज्य को 40 लाख रुपए देंगे। जिसके लिए मराठा साम्राज्य ब्रिटिशों को अपने क्षेत्र में व्यापार करने की अनुमति देगा। संधि के परिणामस्वरूप मराठा साम्राज्य और ब्रिटिशों के बीच शांति स्थापित हुई, लेकिन यह शांति अल्पकालिक थी और बाद में दोनों पक्षों के बीच फिर से संघर्ष हुए।

जिससे यह स्पष्ट होता है कि सूरत की संधि मराठा साम्राज्य और ब्रिटिशों के बीच एक महत्वपूर्ण समझौता था, जिसका उद्देश्य दोनों पक्षों के बीच शांति स्थापित करना था।

घटनाएं:

1775 में, ब्रिटिशों ने मराठा साम्राज्य पर हमला किया और सूरत पर कब्जा कर लिया।1778 में, मराठा साम्राज्य ने ब्रिटिशों को हराया और सूरत को वापस ले लिया।1779 में, मराठा साम्राज्य और ब्रिटिशों के बीच वडगांव की संधि हुई, जिसमें मराठा साम्राज्य ने ब्रिटिशों को सलाबत खान के खिलाफ लड़ने में मदद करने का वादा किया।1780 में, ब्रिटिशों ने मराठा साम्राज्य को हराया और सूरत पर कब्जा कर लिया।1782 में, मराठा साम्राज्य और ब्रिटिशों के बीच सलाबई की संधि हुई, जिसमें मराठा साम्राज्य ने ब्रिटिशों के साथ शांति स्थापित की।

परिणाम:

पहला मराठा युद्ध मराठा साम्राज्य की कमजोरी का प्रमाण था।युद्ध में मराठा साम्राज्य की कमजोरी का पता चला, जिससे उनकी स्थिति कमजोर हो गई। ब्रिटिशों ने पहला मराठा युद्ध जीता, जिसे उनकी विस्तारवादी नीति की जीत के रूप में देखा गया।जिससे उनकी शक्ति और प्रभाव में वृद्धि हुई। युद्ध के बाद सूरत की संधि हुई, जिसमें मराठा साम्राज्य ने ब्रिटिशों को सलाबत खान के खिलाफ लड़ने में मदद करने का वादा किया।युद्ध के बाद मराठा साम्राज्य का विभाजन हो गया, जिससे उनकी एकता और शक्ति कम हो गई।युद्ध के कारण मराठा साम्राज्य की अर्थव्यवस्था कमजोर हो गई, जिससे उनकी स्थिति और भी कमजोर हो गई।इन परिणामों से यह स्पष्ट होता है कि पहले मराठा युद्ध में मराठा साम्राज्य की कमजोरी और ब्रिटिशों की जीत का महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा। जिसके बाद सलाबई की संधि के साथ, मराठा साम्राज्य और ब्रिटिशों के बीच शांति स्थापित हुई।

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