Tuesday, December 3, 2024
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क्या आप जानते हैं कि ओलंपिक खेलों में भारत ने अपना स्थान कैसे और कब से बनाया?

ओलंपिक खेलों में प्रथम बार भारत का प्रतिनिधित्व सन् 1900 नॉर्मन प्रिचर्ड ने किया था और साथ ही यह भारत की ओलंपिक उपस्थिति बन गई थी। इसके बाद भारत ने सन् 1920 के ओलंपिक खेलों में अपना पहला दल भेजा।पूर्व समय का कलकत्ता (जिसे अब कोलकाता के नाम से जाना जाता है) में जन्मे नॉर्मन प्रिचर्ड (Norman Pritchard) ओलंपिक में भाग लेने वाले पहले भारतीय एथलीट थे। ओलंपिक के साथ भारत मॉडर्न ओलंपिक खेलों के दूसरे संस्करण यानी 1900 में हुए पेरिस ओलंपिक से जुड़ा हुआ है।

नॉर्मन प्रिचर्ड फ्रांस में अपनी छुट्टी मना रहे थे और उसी दौरान उन्होंने ओलंपिक खेलों में अपना नाम दर्ज कराने का फैसला किया। नॉर्मन प्रिचर्ड ने पेरिस में पांच एथलेटिक्स इवेंट – 60 मीटर, 100 मीटर, 200 मीटर, 110 मीटर हर्डल रेस और 200 मीटर हर्डल रेस में हिस्सा लिया था। वह 60 मीटर और 100 मीटर हीट में जल्द ही बाहर हो गए थे। इस संस्करण में भारत ने अपना पहला ओलंपिक पदक जीता था। जब नॉर्मन प्रिचर्ड ने संयुक्त राज्य अमेरिका के वाल्टर टिव्सबरी के पीछे फिनिश लाइन को पार करते हुए 200 मीटर स्प्रिंट में रजत पदक हासिल किया तो इसने प्रिचर्ड को ओलंपिक पदक जीतने वाला पहला एशियाई मूल का एथलीट बना दिया। इसके बाद नॉर्मन प्रिचर्ड ने 200 हर्डल रेस में ओलंपिक का अपना दूसरा रजत पदक जीता और इस दौरान वह दिग्गज अमेरिकी एथलीट एल्विन क्रेंजलिन से पीछे रहे। प्रिचर्ड ने 110 मीटर हर्डल रेस के फाइनल में भी जगह बनाई, लेकिन वह रेस के बीच में लड़खड़ा गए थे।

प्रिचर्ड के वंशज ब्रिटिश मूल के थे, जिसके कारण नॉर्मन प्रिचर्ड की राष्ट्रीयता पर काफी बहस हुई हुई थी, लेकिन 1875 में भारत के कलकत्ता शहर में जन्मे इस एथलीट ने भारतीय यात्रा दस्तावेज (आधुनिक पासपोर्ट) के साथ यात्रा की थी और उनके पास भारतीय जन्म प्रमाण पत्र था। जिस कारण वह भारतीय नागरिक सिद्ध हुए। हालांकि, ओलंपिक इतिहासकार इयान बुकानन के अनुसार नॉर्मन प्रिचर्ड ने एक व्यक्ति के रूप में इस ओलंपिक में हिस्सा लिया था, न कि भारतीय झंडे के नीचे अर्थात भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए नहीं। वहीं अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति (IOC) अभी भी नॉर्मन प्रिचर्ड को एक भारतीय एथलीट मानती है और उनके दोनों ओलंपिक पदक का श्रेय भारत को देती है।

भारत का पहला ओलंपिक दल

सन् 1920 में भारत ने पहली बार एंटवर्प ओलंपिक में एथलीटों का अपना आधिकारिक दल भेजा था। सन् 1920 के ओलंपिक में भाग लेने वाले एथलीटों को चुनने और प्रशिक्षित करने के लिए ‘भारतीय ओलंपिक संघ’ बनाने की पहल करने का श्रेय प्रसिद्ध व्यवसायी दोराबजी टाटा को दिया जाता है। दोराबजी टाटा ने तत्कालीन बॉम्बे गवर्नर जॉर्ज लॉयड से संपर्क किया, जिन्होंने 1920 के ओलंपिक में भारत को खेलने के लिए अपनी अनुमति दी। इसके बाद दोराबजी टाटा, जॉर्ज लॉयड और कुछ अन्य लोगों ने एक समिति बनाई और पुणे के डेक्कन जिमखाना में ओलंपिक एथलीटों के चयन के लिए ट्रायल आयोजित करने का फैसला किया – जहां टाटा प्रेसिडेंट थे। एंटवर्प खेलों के लिए अप्रैल 1920 में समिति ने पांच सदस्यीय भारतीय दल का चयन किया था। पहले भारतीय ओलंपिक दल में पुरमा बनर्जी (100 मीटर और 400 मीटर), फडेप्पा चौगुले (10000 मीटर और मैराथन), सदाशिव दातार (मैराथन), कुमार नवाले और दिनका राव शिंदे (कुश्ती) शामिल थे।

भारतीय ध्वज के साथ नेतृत्व करने की जिम्मेदारी पुरमा बनर्जी को सौंपा गई थी और इस तरह से वह ओलंपिक उद्घाटन समारोह में देश की पहली भारतीय फ्लैग-बियरर बनीं। ओलंपिक खेल में दिनका राव शिंदे ने मेंस फेदरवेट (54 किग्रा) में ग्रेट ब्रिटेन के हेनरी इनमैन को हराकर ओलंपिक में भारत की पहली जीत दर्ज की। उन्होंने 1920 के ओलंपिक में भारत के लिए सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए चौथे स्थान प्राप्त किया था। साथी पहलवान कुमार नवाले मेंस मिडिलवेट (69 किग्रा) वर्ग में राउंड ऑफ-16 से बाहर हो गए थे। एथलेटिक्स में पुरमा बनर्जी 100 मीटर और 400 मीटर दोनों हीट्स में बाहर हो गईं थीं। साथ ही फडेप्पा चौगुले भी 10,000 मीटर फाइनल में जगह नहीं बना पाए थे, लेकिन मैराथन में उन्होंने 19वां स्थान प्राप्त कर लिया था। जबकि सदाशिव दातार मैराथन खत्म करने में विफल रहे।

स्वतंत्रता के बाद ओलंपिक में भारत की पहली उपस्थिति

सन् 1947 में अंग्रेजों से स्वतंत्रता हासिल करने के बाद, 1948 के लंदन ओलंपिक में भारत की भागीदारी देश के इतिहास में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी। सन् 1948 में भारत ने लंदन में 86 एथलीटों को नौ अलग-अलग खेलों – एथलेटिक्स, बॉक्सिंग, साइकिलिंग, हॉकी, फुटबॉल, तैराकी, वाटर पोलो, वेटलिफ्टिंग और कुश्ती में भाग लेने के लिए भेजा था। एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अपना पहला ओलंपिक स्वर्ण पदक जीतने में सन् 1948 के लंदन ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम ने लगातार अपना चौथा स्थान बनाया था। इससे पूर्व भारत ने अपने पिछले तीन हॉकी स्वर्ण पदक – 1928, 1932 और 1936 में जीते थे, परंतु तब भारत अंग्रेज़ों के अधीन था। भारतीय हॉकी ने अगले तीन दशकों में चार अन्य स्वर्ण पदक, एक रजत और दो कांस्य पदक जीते। रेसलर केडी जाधव स्वतंत्र भारत के पहले व्यक्तिगत ओलंपिक पदक विजेता थे, जिन्होंने 1952 के हेलसिंकी ओलंपिक में कांस्य पदक जीता था।

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