Tuesday, December 3, 2024
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हमारे देश के पहले सैटलाइट का नाम ‘अर्यभट्ट’ कैसे पड़ा?

1970 के दशक में दुनिया बहुत आगे बढ़ चुकी थी और पूरी दुनिया में अंतरिक्ष के क्षेत्र में प्रतिद्वंदिता की स्तिथि बन चुकी थी। अंतरिक्ष के विकास मार्ग पर अमेरिका सबसे आगे चल रहा था क्योंकि उस समय तक वह चंद्रमा पर अपने मानव अभियान भेज रहा था। ऐसे में हमारा भारत कैसे पिछे रह सकता था इसलिए उस दौरान हमारी राष्ट्रीय अंतरिक्ष संस्था ‘भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान’ (ISRO) ने भी अंतरिक्ष के क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के सपने पर काम शुरु कर दिया था। जिसके बाद भारत ने साल 1975 में 19 अप्रैल को सोवियत संघ की सहायता से स्वदेश में विकसित आर्यभट्ट नाम का पहला उपग्रह (Satellite) अंतरिक्ष में सफलतापूर्वक स्थापित किया था, जो ISRO के एक लंबे सफर का पहला कदम माना जाता है।

उपग्रह का नाम ‘आर्यभट्ट’

हमारे देश के इस पहले उपग्रह का नाम भारत के प्रसिद्ध खगोलशास्त्री और गणितज्ञ आर्यभट्ट के नाम पर रखा गया था। आर्यभट्ट उन पहले व्यक्तियों में से थे जिन्होंने बीजगणित का प्रयोग किया था। इसके अलावा उन्होंने पाई का सही मान 3.1416 निकाला था। ऐसा बताया जाता है कि उपग्रह को आर्यभट्ट नाम तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने चुना था।

कैसे चुना गया नाम

ISRO के पूर्व चेयरमैन यू आर राव के मुताबिक उनकी टीम ने सैटेलाइट के लिए सरकार को तीन नामों का प्रस्ताव दिया। उन सभी नामों में आर्यभट्ट सबसे ऊपर था। उपग्रह के लिए प्रस्तावित तीन नामों में से आर्यभट्ट के अलावा अन्य दो नाम मैत्री और जवाहर थे, जिस नामों पर काफी चर्चा हुई थी। तब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन तीनों नामों में से आर्यभट्ट नाम का चयन किया था।

आर्यभट्ट की विशेष बातें

केवल 360 किलोग्राम के वजन के उपग्रह की कक्षा का जीवन करीब 17 साल था। इसकी लागत उस समय 3 करोड़ से ज्यादा थी। इसे चलाने के लिए 46 वाट की ऊर्जा की जरूरत थी। वैसे तो इसके जीवन छह महीने ही निर्धारित था, लेकिन यह मार्च 1981 यानी करीब छह साल तक देश के संपर्क में था।

प्रक्षेपण में सोवियत संघ बना सहायक

इस उपग्रह के प्रक्षेपण की तकनीक उस समय भारत में नहीं थी इसलिए इसमें सोवियत संघ का सहयोग लिया गया और इसका प्रक्षेपण रूस के अस्तरखान ओब्लास्ट की कैपूस्तिन यार साइट से कोसमोस-3एम प्रक्षेपण यान के जरिए किया गया था। इसके लिए साल 1972 में भारत और सोवियत संघ के बीच एक समझौता भी हुआ था।

आर्यभट्ट का उद्देश्य

आर्यभट्ट का उद्देश्य एक्स रे एस्ट्रोनॉमी, एरोनॉमिक्स और सौर भौतिकी में प्रयोग करना था। इसके कक्षा में स्थापित होने के बाद ऊर्जा बंद होने से यह चार दिन अपने कक्षा में बिना काम किए घूमता रहा और इसके काम करने के 5 दिन बाद इससे सभी संपर्क टूट गए थे। फिर 17 साल बाद 11 फरवरी 1992 में इसने दोबारा पृथ्वी के वातावरण में प्रवेश किया था।

टॉयलेट में ही रिसीविंग सेंटर

आर्यभट्ट का नियंत्रण कक्ष के लिए अधोसंरचना अच्छी नहीं थी। इसरो के पूर्व चेयरमैन यू. आर. राव ने एक इंटरव्यू में बताया था कि मिशन के दौरान सेंटर में जगह की किल्लत थी, जिसके चलते वैज्ञानिकों ने टॉयलेट को ही डाटा रिसिविंग सेंटर के तौर पर उपयोग में करना पड़ा था।

सहायता के बदले में सोवियत संघ को क्या मिला?

इस उपग्रह को पीन्या में तैयार किया गया था लेकिन सोवियत संघ के साथ हुए समझौते के अनुसार सोवियत संघ (रूस) भारतीय बंदरगाहों का इस्तेमाल जहाजों को ट्रैक करने के लिए कर सकता था। वास्तव में इस उपग्रह का निर्माण इसरो द्वारा कृत्रिम उपग्रहों के निर्माण और अंतरिक्ष में उनके संचालन में अनुभव पाने के मकसद से किया गया था। साल 1975 में इस सैटेलाइट के प्रक्षेपण के अवसर पर इस ऐतिहासिक क्षण को भारतीय रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने साल 1976 में दो रुपये के नोट के पिछले हिस्से पर छापा था। साल 1997 तक दो रुपये के नोट पर आर्यभट्ट उपग्रह की तस्वीर छापी गई, बाद में इसके डिजाइन में बदलाव हो गया।

इसरो ने आर्यभट्ट उपग्रह का निर्माण किया और इसे सोवियत इंटरकोस्मोस कार्यक्रम के एक भाग के रूप में सोवियत संघ के माध्यम से लॉन्च किया गया था। भारत के इस सैटलाइट ने मित्र देशों के लिए अंतरिक्ष तक पहुंच प्रदान की। उपग्रह का निर्माण भारत को एक्स-रे ज्योतिष, कृषि विज्ञान और सौर भौतिकी के प्रयोग में मदद करने के लिए किया गया था। उपग्रह एक 26-तरफा बहुफलक (26- sided polyhedron) था जिसका व्यास 1.4 मीटर था।

जब सैटलाइट के साथ संपर्क टूट गया था तो चार दिनों तक प्रयोग रुका रहा और ऑपरेशन के पांच दिनों के बाद उपग्रह से सभी सिग्नलों के साथ 60 कक्षाएँ खो गईं। मार्च 1981 तक अंतरिक्ष यान का मेनफ्रेम सक्रिय रहा। आर्यभट्ट सैटेलाइट एस्ट्रोफिजिक्स मिशन प्रकार के अंतर्गत था। आर्यभट्ट सैटेलाइट के संचालक और आविष्कारक ISRO था। आर्यभट्ट उपग्रह के कक्षा पैरामीटर 563 किमी की उपभू ऊंचाई, अपोजी ऊंचाई 619 किमी, समय 96.46 मिनट और झुकाव 50.7 डिग्री थे।

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