सेव साइलेंट वैली आंदोलन भारतीय पर्यावरण संरक्षण इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जिसने पर्यावरणीय जागरूकता और संरक्षण के लिए मजबूत नींव रखी। यह आंदोलन 1970 और 1980 के दशक में केरल राज्य के पलक्कड़ जिले के साइलेंट वैली में शुरू हुआ, जो पश्चिमी घाट की गहरी और हरी-भरी घाटी है। यह क्षेत्र अपने अद्वितीय पारिस्थितिकी तंत्र, जैव विविधता और दुर्लभ वनस्पतियों व जीवों के लिए प्रसिद्ध है। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य साइलेंट वैली के वन क्षेत्र को एक बड़े हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट से बचाना था, जिससे वहां का संपूर्ण पर्यावरणीय संतुलन खतरे में पड़ सकता था।
1960 के दशक के अंत में केरल राज्य विद्युत बोर्ड ने कुंतीपुझा नदी पर एक हाइड्रोइलेक्ट्रिक परियोजना का प्रस्ताव रखा, जिसमें साइलेंट वैली के वनों को जलमग्न करना शामिल था। इस परियोजना का उद्देश्य बिजली उत्पादन था, जो उस समय राज्य की बढ़ती बिजली की मांग को पूरा करने के लिए आवश्यक माना गया था। हालांकि, इस परियोजना के कारण साइलेंट वैली के विशाल वन क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा नष्ट हो सकता था, जो कई दुर्लभ और लुप्तप्राय प्रजातियों का घर था।
पर्यावरणीय चिंता और प्रारंभिक विरोध
परियोजना की घोषणा के बाद, पर्यावरणविदों, वन्यजीव प्रेमियों और वैज्ञानिकों ने इसके संभावित पर्यावरणीय प्रभावों के बारे में चिंता जताई। इस आंदोलन के लिए प्रेरणा स्रोत के रूप में एम.के. प्रसाद, एक प्रमुख पर्यावरणविद्, सामने आए। उन्होंने इस परियोजना के खिलाफ आवाज उठाई और जनता को इसके विनाशकारी प्रभावों के प्रति जागरूक किया। इसके साथ ही, प्रसिद्ध वैज्ञानिकों और प्रकृतिवादियों ने भी इस आंदोलन में सक्रिय भागीदारी की, जिनमें प्रमुख थे के.एस. मंजुनाथन, आर.एस. सुंदरलाल बहुगुणा, और इंदिरा गांधी की तत्कालीन सरकार में पर्यावरण सचिव, माधव गाडगिल।
राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय समर्थन
सेव साइलेंट वैली आंदोलन को न केवल स्थानीय स्तर पर बल्कि राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी समर्थन मिला। इस आंदोलन के माध्यम से भारतीय पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में एक नई लहर की शुरुआत हुई। 1976 में, इंदिरा गांधी ने परियोजना की समीक्षा के लिए एक समिति का गठन किया, जिसने अपनी रिपोर्ट में बताया कि इस परियोजना से साइलेंट वैली का पारिस्थितिकी तंत्र गंभीर रूप से प्रभावित होगा। इस रिपोर्ट के आधार पर, 1980 में इंदिरा गांधी ने इस परियोजना को रोकने का आदेश दिया, जो इस आंदोलन की एक महत्वपूर्ण जीत थी।
साइलेंट वैली नेशनल पार्क की स्थापना
आंदोलन की सफलता के बाद, 1984 में साइलेंट वैली को राष्ट्रीय उद्यान के रूप में घोषित किया गया और इसे ‘साइलेंट वैली नेशनल पार्क’ का दर्जा दिया गया। इस पार्क का कुल क्षेत्रफल 89.52 वर्ग किलोमीटर है और इसे यूनाइटेड नेशंस द्वारा मान्यता प्राप्त है। साइलेंट वैली नेशनल पार्क को बाद में 1986 में बायोस्फीयर रिजर्व के रूप में भी घोषित किया गया, जिससे यह क्षेत्र और भी सुरक्षित हो गया।
आंदोलन की शिक्षा और धरोहर
सेव साइलेंट वैली आंदोलन ने भारतीय पर्यावरणीय आंदोलनों को एक नई दिशा दी। यह आंदोलन दर्शाता है कि एकजुट और संगठित जनसमर्थन के माध्यम से बड़ी से बड़ी पर्यावरणीय समस्याओं का समाधान निकाला जा सकता है। इस आंदोलन ने दिखाया कि विकास और पर्यावरणीय संतुलन के बीच सामंजस्य स्थापित करना आवश्यक है। यह आंदोलन भारतीय पर्यावरण संरक्षण के इतिहास में एक प्रेरणादायक घटना के रूप में याद किया जाता है।
सेव साइलेंट वैली आंदोलन केवल एक वन क्षेत्र को बचाने का संघर्ष नहीं था, बल्कि यह पर्यावरणीय जागरूकता और संरक्षण की दिशा में एक बड़ा कदम था। इस आंदोलन ने साबित किया कि यदि जनता संगठित होकर अपने पर्यावरण के संरक्षण के लिए खड़ी होती है, तो कोई भी विकास परियोजना उनके अधिकारों और पर्यावरणीय संतुलन को खतरे में नहीं डाल सकती। साइलेंट वैली आज भी अपनी जैव विविधता और प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है, और इसका श्रेय उस आंदोलन को जाता है जिसने इसे विनाश से बचाया।