ISRO ने अपने आरंभिक समय से ही अपने सभी उद्देश्यों पर बहुत मेहनत की है। ISRO ने अपनी कार्य सूची में केवल अंतरिक्ष परिवहन प्रणाली तथा अनुप्रयोग कार्यक्रम को ही नहीं बल्कि संचार तथा सुदूर संवेदन के लिये उपग्रह जैसे विषयों को भी सम्मिलित किया है। ISRO ने कहा है कि ‘ राष्ट्रीय विकास में उपग्रह प्रणाली सहायक है’ जिसका तात्पर्य यह है कि ISRO ने यह अनुमति दी कि विकास की पहल में अपने स्वयं के उपग्रहों की इंतजार करने की जरूरत नहीं है; विदेशी उपग्रहों का प्रयोग कर सकते हैं। इसके बाद इसरो ने अपने मिशन पर तेजी से काम करना शुरू किया और कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा। हमारे अंतरिक्ष संस्थान ISRO ने बहुत विकास कर लिया है जिसमें इसे बहुत सारी उबलब्धियां प्राप्त हुईं हैं और उन्हीं में से कुछ प्रमुख उपलब्धियाँ इस प्रकार हैं-
•19 अप्रैल 1975 को भारत ने अपना पहला उपग्रह ‘आर्यभट्ट’ रूस के प्रक्षेपण केंद्र से सफलतापूर्वक प्रक्षेपित कर अंतरिक्ष की दुनिया में प्रथम बार अपनी सफलता दिखाई और अपना नाम दर्ज कराया। यह प्रयोग एक प्रायोगिक उपग्रह था परन्तु इसी उपग्रह ने भारत के सुनहरे भविष्य के लिये मज़बूत आधार तैयार किया।
•आर्यभट्ट उपग्रह का निर्माण, ISRO के लिये एक बहुत बड़ी चुनौती थी क्योंकि उस समय भारतीय वैज्ञानिकों के पास किसी भी प्रकार की आधारभूत सुविधाएँ नहीं थीं और न ही पर्याप्त संसाधन थे। लेकिन भारतीय वैज्ञानिकों के लगन और कुछ कर दिखाने की चाहत के सामने सभी समस्याएँ बहुत छोटी हो गईं और ISRO के तत्कालीन अध्यक्ष प्रोफेसर सतीश धवन के मार्गदर्शन में युवा टीम ने आर्यभट्ट का निर्माण किया।
• विशेष बात यह थी कि उपग्रह के निर्माण में जुटी युवा टीम ने पहले कभी भी अंतरिक्ष हार्डवेयर नहीं बनाया था। यह एक छोटा उपग्रह था; इसका वजन मात्र 360 किलो था, परंतु इसे बनाने में लगभग 3 साल का समय लगा था। इस उपग्रह को बनाने से लॉन्च करने तक में 3 करोड़ रुपये से अधिक की लागत लगी थी।
• ISRO ने 18 जुलाई 1980 को SLV-3 का सफल परीक्षण कर भारत का नाम उन देशों में शामिल कर दिया था, जो अपने उपग्रहों को खुद प्रक्षेपित कर सकते थे। इसके सहायता से ही रोहिणी उपग्रह RS-1 को कक्षा में स्थापित किया गया था। साल 1983 में इनसैट-1बी को प्रक्षेपित किया गया। इसने भारत के दूर संचार, दूरदर्शन प्रसारण और मौसम पूर्वानुमान के क्षेत्र में क्रांति लाने में विशेष भूमिका अदा की। साल 1994 में ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (PSLV) के सफल प्रक्षेपण से स्वदेशी प्रक्षेपण क्षमता में वृद्धि हुई और साथ ही इसके जरिए अब तक 50 से अधिक सफल मिशन प्रक्षेपित किए जा चुके हैं।
•22 अक्टूबर 2008 को ISRO द्वारा चंद्रयान-1 जिसका वजन 1380 किलोग्राम था जिसे अंतरिक में भेजा गया, जो 14 नवंबर 2008 को चंद्रमा की सतह पर सफलतापूर्वक पहुंचा। अपना अंतरिक का सफर पूरा कर जब उसने चाँद पर तिरंगा लहराया तभी भारत ऐसा करने वाला विश्व का चौथा देश बन गया। चंद्रयान-1 ने ही चाँद पर पानी की खोज की थी।
• साल 2014 में ISRO ने मंगलयान को मंगल की धरती पर उतारकर कीर्तिमान स्थापित किया। मंगल ग्रह तक पहुंचने वाला भारत विश्व चौथा देश बना गया। ISRO के इस मिशन में केवल 450 करोड़ रूपए की लागत लगी थी। विशेष बात तो यह है कि भारत एकमात्र ऐसा देश था, जिसे पहली बार में ही मंगलयान को मंगल पर भेजने में सफलता प्राप्त हुईं थी।
•15 फरवरी 2017 को ISRO ने विश्व रिकॉर्ड बनाया। क्योंकि उसने PSLV-C 37 द्वारा एक साथ 104 उपग्रहों को अंतरिक्ष की कक्षा में स्थापित किया था।
•5 जून 2017 को ISRO ने देश का सबसे भारी रॉकेट GSLV MK 3 लॉन्च किया था और वह अपने साथ 3,136 किग्रा का उपग्रह जीसैट-19 लेकर गया था।
• इससे पूर्व ISRO को 2,300 किग्रा से भारी उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिए विदेशी प्रक्षेपकों पर निर्भर रहना पड़ता था। जिसके बाद ISRO ने 11 अप्रैल 2018 को स्वदेशी तकनीक से निर्मित एक नेवीगेशन उपग्रह IRNSS लॉन्च किया। इसके साथ ही भारत के पास अब अमेरिका के GPS सिस्टम की तरह अपना खुद का एक नेवीगेशन सिस्टम है।
• साल 2019 में 27 मार्च को ISRO ने एक और बड़ी उपलब्धि हासिल की। इस दिन एंटी सैटेलाइट (A-SAT) से एक लाइव भारतीय सैटेलाइट को नष्ट करने में सफलता प्राप्त की। अंतरिक्ष में सैटेलाइट को मार गिराने वाला भारत विश्व का ऐसा चौथा देश बन गया है।
• ISRO का प्रयास इतना ही सीमित नहीं रहा। ISRO ने 1 अप्रैल 2019 को इलेक्ट्रॉनिक इंटेलीजेंस उपग्रह समेत 29 उपग्रहों को एक साथ प्रक्षेपित किया, जिसमें 28 विदेशी उपग्रह शामिल थे। पहली बार ISRO ने एक ही मशीन से तीन अलग-अलग कक्षाओं में उपग्रहों को स्थापित किया है।
•ISRO का विकास कार्यक्रम यहीं नहीं रुका, 22 जुलाई 2019 को उसने ने दूसरे मूनमिशन चंद्रयान-2 को रवाना किया। इसे ‘बाहुबली’ नाम के सबसे ताकतवर और विशाल राकेट GSLV-MARK ।।। के ज़रिये प्रक्षेपित किया गया। हालांकि यह मिशन असफल रहा लेकिन देश ने इसे एक उपलब्धि के तौर पर देखा।