हमारा भारत वैसे तो दुनियां में अपनी अलग अलग खूबियों से जाना जाता है, उन्हीं में एक एक खूबी यह भी है कि, भारत में एक ऐसी जगह भी विद्यमान है जहां दुनियां की सबसे ज्यादा बारिश होती है। भारत के मेघालय राज्य का मासिनराम, जिसे दुनिया में सबसे ज्यादा बारिश वाली जगह के नाम से जाना जाता है। दुनिया में सबसे ज्यादा गीली जगह के तौर पर गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में मेघालय के मासिनराम का नाम दर्ज किया गया है। यहां औसतन सालाना बारिश 11,802 मिलीमीटर होती है। ये बारिश इतनी है कि रियो डि जेनेरियो स्थित क्राइस्ट की 30 मीटर ऊंचे स्टेच्यू के घुटनों तक पानी आ जाएगा। चेरापूंजी की जगह अब उसी से लगभग 15 किलोमीटर दूर बसा मासिनराम ले चुका गिनीज बुक में दर्ज है कि साल 1985 में मासिनराम में 26,000 मिलीमीटर बारिश हुई थी जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है।
चेरापूंजी, जिसे स्थानीय लोग सोहरा के नाम से भी जानते हैं। मौसम विभाग के 1974 से लेकर 2022 तक के रिकॉर्ड तो यही कहते हैं कि वहां मासिनराम की तुलना में अब सालभर में 500 मिलीमीटर के आसपास कम बारिश होने लगी है। इसीलिए अब सबसे ज्यादा बारिश वाली जगह में दूसरी पायदान पर आ गया है। वैसे अगर हम इतिहास को देखें तो सबसे अधिक बारिश में अब भी चेरापूंजी पहले नंबर पर ही आता है। साल 2014 के अगस्त महीने में चेरापूंजी में 26,470 मिलीमीटर की बारिश हुई थी जो मासिनराम से अधिक थी। लेकिन अगर हम साल भर का औसत निकालें तो मासिनराम दुनिया का सबसे अधिक बारिश वाला स्थान माना जा सकता है।
मेघालय के मासिनराम और चेरापूंजी के अलावा कोलंबिया के दो ऐसे गांव हैं जो सबसे अधिक बारिश के मामले में इनके बराबरी में आते हैं। उत्तर पश्चिमी कोलंबिया के शहर लाइओरो और लोपेज डे मिसी ये दो शहर हैं, जहां साल भर बारिश होती है। साल 1952 और 1954 के बीच में यहां सालाना 13,473 मिलीमीटर बारिश हुई थी जो मासिनराम की औसत बारिश से अधिक है। लेकिन मौसमविदों का मनाना है कि उस समय बारिश को मापने के जो पैमाने प्रयोग किए जाते थे उनको अब नकार दिया गया है।
साथ ही कोलंबिया के इन गांवों की बारिश का कई सालों का रिकॉर्ड भी अब गुम हो चुके हैं। अब पिछले 30 सालों के रिकॉर्ड के आधार पर भारत के मेघालय में स्थित मासिनराम ही प्रथम स्थान पर आता है। लेकिन फिर भी कोलंबियाई जगहों पर सालाना लगभग 300 दिनों तक बारिश होती रहती है।
जीवनयापन
किसी भी स्थान पर रहने वाले लोगों का जीवन वहां की जलवायु पर बहुत अधिक निर्भर करता है। मावसिनराम और चेरापूंजी में जहां हमेशा मौसम नमी भरा रहता है। इसलिए यहां लोगों का पहनावा, खान-पान और काम-काज सब कुछ रेगिस्तान में रहने वालों से बिलकुल विपरीत होता है। इन हिस्सों में लगातार बारिश होती रहती है इसलिए यहां खेती करने की संभावना ही नहीं होती। इसीलिए यहां की अर्थव्यवस्था अधिकांश जुरूरी वस्तुओं के लिए दूसरे गांव और शहरों पर निर्भर रहते है। इसलिए यहां सामानों को प्लास्टिक में लपेटकर ड्रायर से सुखाकर बेचा जाता है। यहां खाने के ड्राई सामानों और सब्जियों को प्लास्टिक की पन्नियों में लपेटकर रखा जाता है। यहां लोग हमेशा अपने साथ बांस से बनी छतरियां रखते हैं, जिन्हें कनूप कहा जाता है। यहां लोग काम पर जाने के लिए लोग प्लास्टिक पहनकर जाते हैं। यहां लगातार बरसात की वजह से सड़कें बहुत जल्दी खराब हो जाती हैं। इसीलिए लोगों का बहुत सा समय इनकी मरम्मत में ही चला जाता है। यहां पर लोगों जीवनयापन करना बहुत मुश्किल है और बारिश इसे और मुश्किल बनाती है।
पेड़ों की मद्द से बनाए जाते हैं पुल
दैनिक जीवन के परेशानियों के अलावा यहां बने पुल भी हमेशा जर्जर हालात में रहते हैं। यही देखते हुए हर साल स्थानीय लोग पेड़ की जड़ों को बांधकर उनका पुल बनाकर एक से दूसरे जगह जाने-आने का मार्ग बनाते हैं। अधिकतर यहां मजबूरी को देखते हुए रबर या बांस के पुल बनाए जाते हैं, जो कि पानी में जल्दी खराब होते या भार से टूटते नहीं हैं। अगर अच्छी तरह से बनाया जाए तो बांस का पुल लगभग एक दशक चल जाता है।
मनमोहक होती है प्राकृतिक सुंदरता
मसिनराम की एक अपनी प्राकृतिक सुन्दरता के लिए भी बहुत प्रसिद्ध मानी जाती है। वर्षा में यहां ऊंचाई से गिरते पानी के फ़व्वारे और कुहासे जैसे घने बादलों को क़रीब से देखने का अपना एक अलग ही आनन्द है। मासिनराम के निकट ही मावजिम्बुइन की प्राकृतिक गुफाएं हैं, जो अपने स्टैलैगमाइट के लिये प्रसिद्ध हैं। स्टैलैग्माइट गुफा की छत के टपकाव से फर्श पर जमा हुआ चूने का स्तंभ होता है।
भारी बारिश का कारण
क्यों होती है यहां इतनी बारिश? आप सभी के मन में यह प्रश्न अवश्य ही आता होगा। यहां भारी बारिश इसलिए होती है क्योंकि यहां ‘बंगाल की खाड़ी’ का मानूसन दक्षिणी हिन्द महासागर की स्थायी पवनों की वह शाखा है, जो भूमध्य रेखा को पार करके भारत में पूर्व की ओर प्रवेश करती है। ये मानसून सबसे पहले म्यांमार की अराकान योमा तथा पीगूयोमा पर्वतमालाओं से टकराते है, जिससे यहां उत्तर पूर्व में तेज बारिश होती है। फिर ये मानसूनी हवाएं सीधे उत्तर की दिशा में मुड़कर गंगा के डेल्टा क्षेत्र से होकर खासी पहाड़ियों तक पहुंचती हैं। लगभग 15,00 मीटर की ऊंचाई तक उठकर मेघालय के चेरापूंजी तथा मासिनराम नामक स्थानों पर घनघोर वर्षा करती हैं।