Thursday, November 21, 2024
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जब 2026 में ‘गंगा जल बंटवारा संधि 1996’ समाप्त होगा तो क्या होगा?

बांग्लादेश की सीमा पर बने फरक्का बैराज जो 16.5 किलोमीटर के उच्च प्रवाह का निर्माण भारत और बांग्लादेश के विवादित मुद्दे में शामिल एक विषय है। बैराज के निर्माण का मूल उद्देश्य फीडर नहर के माध्यम से भागीरथी-हुगली चैनल (गंगा की एक वितरिका) के प्रवाह को बढ़ाकर तलछट को बाहर निकालकर कोलकाता बंदरगाह को पुनर्जीवित करना था। जिसे 1975 में चालू किया गया था। बहाव के साथ वाले यानी डाउनस्ट्रीम बांग्लादेश ने हमेशा यह तर्क दिया है कि यह मोड़ शुष्क मौसम में मुख्यधारा के प्रवाह को कम करके उनकी शुष्क मौसम में होने वाली कृषि को काफी नुकसान पहुंचाने वाला साबित होगा।

इसी जल से संबंधी राजनीतिक गतिरोध से बचने के लिए 1996 में बांग्लादेश और भारत के बीच गंगा जल बंटवारा संधि (जीडब्ल्यूटी) पर हस्ताक्षर करवाया गया था। इस संधि को सफल कहा जा सकता है, क्योंकि भारत ने संधि में किए गए वादे के अनुसार फरक्का बैराज से वर्ष के जनवरी-मई के दौरान प्रवाह की समय सारिणी का सख्ती से पालन किया। इस के विपरीत, हाल के आंकड़ों से यह पता चलता है कि बांग्लादेश को फरक्का बैराज से छोड़े गए पानी की तुलना में हार्डिंग ब्रिज पर 10-15 प्रतिशत अधिक पानी मिलता है। जिसे अच्छी बात ही कहा जा सकता है।

लेकिन जीडब्ल्यूटी समझौते को लेकर चिंता का विषय है क्योंकि यह समझौता 2026 में समाप्त होने वाला है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि इसके बाद क्या होगा? इसके बाद फरक्का बैराज को कैसे देखा जाएगा? इसके जल का बंटवारा कैसे होगा? इसके लिए हमें सबसे पहले, यह मानने करने की जरूरत ज़्यादा है कि फरक्का बैराज और जीडब्ल्यूटी दोनों एक रिडक्शनिस्ट अर्थात न्यूनीकरणवादी इंजीनियरिंग के एक उदाहरण हैं।

इन दोनों ने दक्षिण एशिया के जल शासन में ‘‘अंकगणितिय जल विज्ञान’’ (पानी को केवल इसकी मात्रा के माध्यम से देखे हुए, प्रवाह शासन समेत अन्य सभी मापदंडों की अनदेखी करके) को गहराई से शामिल करने में अहम भूमिका निभाई है। जैसे गंगा जैसी हिमालयी नदी अपने पानी के साथ उच्च स्तर के तलछट ले जाती हैं जो महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र कार्य अर्थात इकोसिस्टम सर्विसेस में मसलन मिट्टी का निर्माण और उसकी उर्वरकता को बढ़ाने में अहम भूमिका निभाते हैं। गंगा-ब्रह्मपुत्र-मेघना (जीबीएम) डेल्टा का निर्माण नदियों द्वारा लाए गए तलछट से ही होता है। यह एक ऐसी बात है, जिसके बारे में समझौते में कोई उल्लेख दिखाई नहीं देता।

ऐसा बताया जा रहा है कि गंगा के तलछट के बड़े घटक फरक्का बैराज के ऊपरी प्रवाह की ओर फंस रहे हैं और यह डेल्टा के मिट्टी के निर्माण को बाधित कर रहा है। दूसरी ओर, डेल्टा के सुंदरबन वाले भारतीय इलाके में समुद्र के स्तर में वृद्धि हो रही है और लवणता का प्रवेश हो रहा है। इसके परिणामस्वरूप समकालीन भूमि पुनर्जीवन नहीं हो पा रहा है, जिसकी वजह से भूमि का नुकसान हो रहा है। जबकि पहले तलछट की वजह से इस इलाके में समकालीन भूमि पुनर्जीवन होता था। इसी प्रकार फरक्का बैराज के उच्च प्रवाह वाले क्षेत्र में तलछट के जमाव के कारण बैकवॉटर के प्रभाव से बिहार में बाढ़ की स्थिति भी गंभीर होने की बात कही जा रही है।ऐसा तब होता है जब बिहार की कोसी नदी से निकलने वाला ऊंचा बहाव गंगा के मुख्य प्रवाह में मिलता होता है। इन दोनों नदियों के जल को वहां मौजूद तलछट की वजह से आगे बढ़ने का रास्ता नहीं मिल पाता है, जिसके कारणवश प्रस्तावित संयुक्त तकनीकी समिति (विवरण में उल्लेखित) के अध्ययन के दायरे को केवल जल आवंटन तक सीमित न रख कर तलछट और डेल्टा की चिंता को भी अपने अध्ययन में अनिवार्य रूप से शामिल करना चाहिए। जब हम 2026 की में इस संधि की समाप्ति होगा तो नई संधि दोनों देशों के लिए हितकारी होनी चाहिए।

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