Thursday, November 21, 2024
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ऑस्ट्रेलिया में पाया गया ऐसा मेंढक जिसकी त्वचा का रंग नीला है

हम सभी ने अभी तक बहुत सरे मेंढकों को देखा है। हम सभी अक्सर बरसात के दिनों में रंग बिरंगे मेंढकों को देखते हैं जैसे हरे रंग का, पीले रंग का, काई रंग का आदि। लेकिन ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों ने एक ऐसा मेंढक खोज निकला है, जिनकी त्वचा का रंग नीला है।

ऑस्ट्रेलिया में एक ऐसा मेंढक पाया गया है, जिसकी त्वचा नीली है। मेढ़क का ऐसा रंग कारण जेनेटिक म्यूटेशन है। ऐसा कहा जा सकता है कि मानो ऑस्ट्रेलिया में कुदरत का एक बेहतरीन नमूना देखने को मिला है। क्योंकि यहां एक खास तरह का मेंढक पाया गया है, जिसकी त्वचा नीली है। इस मेंढक का नाम लिटोरिया स्प्लेंडिडा है। इस मेंढक को लेकर विशेषज्ञों का कहना है कि यह नीला रंग एक दुर्लभ जेनेटिक म्यूटेशन के कारण है। मतलब कि इस मेंढक में एक तरह का जेनेटिक म्यूटेशन है, जिसे एक्सेनथिज्म कहा जाता है। इस म्यूटेशन में पीले रंग की कमी हो जाती है। जबकि दूसरे मेंढको में पीले रंग के पिगमेंट पाए जाते हैं। म्यूटेंट एक तरह का परिवर्तन है जो किसी जीव के जीन में होता है।

मेंढक खुद चलकर पहुंचा लैब

इस मेंढक के सिर पर हरे रंग की एक ग्रंथी पाई गई है। मेंढक पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के किंबरले में मौजूद वाइल्डलाइफ सैंक्चुरी में मिला है। इसमें हैरानी की बात ये है कि इस मेंढक को खोजा नहीं गया है बल्कि यह खुद लैब में चल रही वैज्ञानिकों की वर्कशॉप में आ पहुंचा था। इस मेंढक पर फिलहाल वैज्ञानिक खोज जारी है, इस मेंढक की जानकारी इंस्टाग्राम अकाउंट पर Australian Wildlife Conservancy द्वारा दी गई है।

आमतौर पर कुछ ऐसे होते हैं ये मेंढक

AWC के अनुसार, आमतौर पर लिटोरिया स्प्लेंडिडा नामक मेंढक हरे रंग के होते हैं और उनकी पीठ पर सफेद धब्बे होते हैं। वे लगभग 4 इंच (10 सेंटीमीटर) लंबे होते हैं और उनके सिर के ऊपर एक विशिष्ट जहर ग्रंथि होती है। जहर का स्वाद बेहद कड़वा होता है और यह बड़े उभयचरों, सरीसृपों, पक्षियों और स्तनधारियों जैसे शिकारियों के खिलाफ रक्षा तंत्र के रूप में काम करता है। यह मेंढक 20 साल तक जीवित रह सकते हैं और उत्तरी किम्बरली क्षेत्र और पास के उत्तरी क्षेत्र में कम वर्षा वाले क्षेत्रों में रहते हैं। यह पहली बार है जब शोधकर्ताओं ने नीली त्वचा वाले शानदार लिटोरिया स्प्लेंडिडा नामक मेंढक को देखा है। मेंढक के सिर पर जैतून-हरे रंग की जहरीली ग्रंथि थी, पीठ पर कुछ सफेद धब्बे और पीले रंग के पंजे थे।

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