डॉ. राजेंद्र प्रसाद और महात्मा गांधी के बीच के विचार संबंध भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय है। इन दोनों महान नेताओं के बीच एक गहरी विचारधारा की साझेदारी थी, जिसने न केवल भारत की स्वतंत्रता के संघर्ष को एक नई दिशा दी, बल्कि देश के भविष्य के निर्माण में भी अहम भूमिका निभाई।
प्रारंभिक परिचय और संबंध
डॉ. राजेंद्र प्रसाद और महात्मा गांधी का संबंध उनके व्यक्तिगत जीवन के शुरुआती दिनों में स्थापित हुआ। डॉ. राजेंद्र प्रसाद बिहार के एक शिक्षित परिवार से आते थे, और एक वकील के रूप में कार्यरत थे। गांधीजी का प्रभाव उनके जीवन में तब पड़ा जब गांधी ने 1917 में चंपारण सत्याग्रह का नेतृत्व किया। यह घटना भारत में गांधीजी के अहिंसात्मक आंदोलन का प्रारंभिक दौर था। डॉ. राजेंद्र प्रसाद इस सत्याग्रह के दौरान गांधीजी के संपर्क में आए और उनसे बहुत प्रभावित हुए। गांधीजी के सरल जीवन, सादगी, और निष्ठा ने डॉ. प्रसाद को गहरे रूप से प्रभावित किया, और उन्होंने अपने जीवन को स्वतंत्रता संग्राम के लिए समर्पित करने का निर्णय लिया।
विचारधारात्मक समानता
महात्मा गांधी और डॉ. राजेंद्र प्रसाद के बीच विचारधारात्मक समानता का एक महत्वपूर्ण पहलू था उनका भारत के प्रति दृष्टिकोण। गांधीजी का विश्वास था कि भारतीय समाज को सशक्त बनाने के लिए गांवों का विकास और आत्मनिर्भरता महत्वपूर्ण है। डॉ. प्रसाद ने भी इसी विचारधारा का समर्थन किया। वह मानते थे कि भारत की असली शक्ति उसके ग्रामीण क्षेत्रों में निहित है, और उनका विकास ही देश को आत्मनिर्भर बना सकता है। गांधीजी का ‘स्वराज’ और ‘स्वदेशी’ का विचार, जिसमें विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार और भारतीय वस्त्रों को अपनाने का आह्वान था, डॉ. प्रसाद के हृदय के करीब था। उन्होंने इस विचार को न केवल अपने जीवन में अपनाया, बल्कि इसे व्यापक जनसमुदाय तक पहुंचाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
अहिंसा और सत्य का सिद्धांत
गांधीजी के विचारों में सबसे महत्वपूर्ण तत्व था उनका अहिंसा और सत्य का सिद्धांत। डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने भी इस सिद्धांत को पूरी तरह से आत्मसात किया। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जब कई नेता हिंसा के मार्ग पर चलने का विचार कर रहे थे, तब गांधीजी और डॉ. प्रसाद ने अहिंसा के मार्ग को ही सही माना। उनका मानना था कि हिंसा से स्थायी समाधान नहीं निकाला जा सकता, और सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलकर ही भारत को सही मायने में स्वतंत्रता मिल सकती है।
धर्म और राजनीति का संबंध
गांधीजी के विचारों में धर्म का एक विशेष स्थान था। वह धर्म को राजनीति से अलग नहीं मानते थे, बल्कि उनके अनुसार, राजनीति का उद्देश्य नैतिक और धार्मिक मूल्यों के आधार पर होना चाहिए। डॉ. राजेंद्र प्रसाद भी इस विचार से सहमत थे। उन्होंने हमेशा धर्म को राजनीति से जोड़कर देखा और माना कि भारतीय समाज में धर्म की अहम भूमिका है। उनके लिए धर्म का मतलब केवल पूजा या अनुष्ठान नहीं था, बल्कि यह जीवन के हर पहलू में नैतिकता और सत्य के पालन का प्रतीक था।
स्वतंत्रता के बाद की दृष्टि
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी गांधीजी और डॉ. राजेंद्र प्रसाद के विचारों में गहरी समानता बनी रही। गांधीजी ने जहां भारत को एक नैतिक और आर्थिक रूप से सशक्त राष्ट्र बनाने का सपना देखा, वहीं डॉ. प्रसाद ने देश के पहले राष्ट्रपति के रूप में इस दृष्टि को साकार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने हमेशा गांधीजी के विचारों को अपने कार्यों में सर्वोपरि रखा और उनके सिद्धांतों का पालन किया।
गांधीजी के निधन के बाद भी, डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने उनके विचारों और सिद्धांतों को आगे बढ़ाने का कार्य जारी रखा। उन्होंने हमेशा इस बात का ख्याल रखा कि भारतीय संविधान और राजनीति में गांधीजी के सिद्धांतों का सम्मान हो। डॉ. प्रसाद का मानना था कि गांधीजी के बिना भारत की स्वतंत्रता की कल्पना भी नहीं की जा सकती, और उनके विचारों के बिना देश का सही मार्गदर्शन संभव नहीं है।
डॉ. राजेंद्र प्रसाद और महात्मा गांधी के बीच का विचार संबंध भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण स्तंभ था। दोनों ही नेताओं के विचारों में गहरी समानता और आदर्शों का सामंजस्य था, जिसने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को एक नया आयाम दिया। जहां गांधीजी ने देश को सत्य, अहिंसा और नैतिकता के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी, वहीं डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने इन सिद्धांतों को अपने जीवन और कार्यों में उतारकर स्वतंत्र भारत के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।डॉ. राजेंद्र प्रसाद के लिए गांधीजी केवल एक राजनीतिक नेता नहीं थे, बल्कि एक गुरु, मार्गदर्शक और प्रेरणास्रोत थे। गांधीजी के विचारों ने उनके जीवन को पूरी तरह से परिवर्तित किया और उन्हें एक महान नेता के रूप में स्थापित किया। भारतीय इतिहास में इन दोनों नेताओं के बीच के इस विचार संबंध को हमेशा एक प्रेरणा के रूप में याद किया जाएगा।