Thursday, November 21, 2024
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केदारनाथ मंदिर में आया एवलांच, डर से सहम गए लोग

रविवार सुबह केदारनाथ मंदिर के पीछे एक बार फिर एवलांच आया। इसे देखकर वहां पर रुके सभी लोगों का दिल सहम गया। हालांकि किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचा है। बताया जा रहा है कि सुबह के 5:6 बजे गांधी सरोवर के पहाड़ों से ग्लेशियर टूटकर गिरने लगे। इसी देख लोगों में हलचल मच उठी क्योंकि यह काफी नीचे तक आ चुका था।

उत्तराखंड राज्य में तमाम ग्लेशियरों में हैंगिंग ग्लेशियर मौजूद हैं। प्राकृतिक घटनाओं व भौगोलिक परिस्थितियों के चलते ये ग्लेशियर बनते हैं। इस तरह के ग्लेशियरों के प्रति वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के पूर्व विज्ञानी हिमनद विशेषज्ञ डॉ. डीपी डोभाल ने पूर्व चेतावनी दी है।

ऋषिगंगा कैचमेंट क्षेत्र से निकली तबाही का कारण रौंथी पर्वत के हैंगिंग ग्लेशियर को माना गया है। यह ग्लेशियर अचानक से टूटकर नीचे आ गिरा था। जिसके चलते उसके साथ बड़े बोल्डर व भारी मलबा भी खिसक कर आ गिरा। उत्तराखंड में तमाम ग्लेशियरों में इस तरह के हैंगिंग ग्लेशियर मौजूद हैं। प्राकृतिक घटनाओं व भौगोलिक परिस्थितियों के चलते ये ग्लेशियर बनते हैं और कुछ समय बाद स्वयं टूट भी जाते हैं।

हिमनद विशेषज्ञ डॉ. डीपी डोभाल का कहना है कि केदारनाथ मंदिर के पीछे की चोटी पर भी हैंगिंग ग्लेशियर हैं। कई सालों से इन्हें देखा जा रहा है। वर्ष 2007 में जब वह चौराबाड़ी ग्लेशियर पर अध्ययन कर रहे थे, तब हैंगिंग ग्लेशियर की तरफ से एवलांच भी आया था। जहां भी यू-शेप की वैली होती हैं, वहां इन्हें बनने में सहायता मिलती है। इसके साथ ही ढालदार पत्थरों पर भी हैंगिंग ग्लेशियर तेजी से बनने लगते हैं।

उत्तराखंड में ग्लेशियर 3800 मीटर से अधिक की ऊंचाई पर स्थित हैं और हैंगिंग ग्लेशियर करीब चार हजार मीटर की ऊंचाई पर बनने लगते हैं। इनकी लंबाई उसके आधार या सपोर्ट के कारण कितनी भी हो सकती है, जबकि मोटाई 20 से 60 मीटर तक हो जाती है। निचले आधार के बाद भी यह बाहर की तरफ बढ़ने लगते हैं। जब इनकी मोटाई बढ़ती है, या अधिक बर्फ इनके ऊपर जमा होने लगती है तो यह अधिक भार सहन नहीं कर पाते और टूट जाते हैं।

अधिक ऊंचाई पर बनने के कारण हैंकिंग ग्लेशियर आबादी क्षेत्रों से कई किलोमीटर दूर होते हैं। सीधे तौर पर यह आबादी को नुकसान नहीं पहुंचा सकते हैं। मगर, किसी गदरे या नदी में गिरने के चलते यह कृत्रिम झील का निर्माण कर सकते हैं। ऋषिगंगा कैचमेंट क्षेत्र में भी यही स्थिति बनी। यदि ऐसा होता है तो यह बड़ा खतरा भी बन सकते हैं।

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