हम सभी भारतवासी यह जानते हैं कि हमारे भारत में लोकतंत्र है। हमारे भारत में जनता ही अपनी सरकार को चुनती है। हमारे देश में ‘एक व्यक्ति, एक मत’ की विधि अपनाई जाती है, जिसके अंतर्गत प्रत्येक व्यस्क व्यक्ति चाहे वह महिला हो या पुरुष वह एक ही मतदान कर सकता है। हमरा देश जनसंख्या अनुसार बहुत बड़ा देश है ऐसे में चुनाव करना और निर्वाचन करना बहुत बड़ी जिम्मेदारी भरा दायित्व है, जिसे हमारे देश की चुनाव आयोग समिति निभाती है। आज इस लेख में आप यही जानेंगे कि लोक सभा के लिए कौन कौन सी निर्वाचन प्रक्रिया अपनाई जाती है।
निर्वाचन हमारे भारतीय लोकतान्त्रिक संरचना का बेहद ही महत्वपूर्ण भाग है। संवैधानिक प्रावधानों व संसद द्वारा बनाए गए कानूनों के अनुसार भारत में लोक सभा, राज्य सभा,राज्य विधान सभाओं व विधान परिषदों के लिए निर्वाचन संपन्न कराए जाते हैं। वैसे तो विश्व में अनेक प्रकार की निर्वाचन प्रणालियां प्रचलित हैं, जिन्हें हम दो निम्नलिखित दो प्रकारों में बाँटते हैं- बहुमत प्रणाली और आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली।
हमारे संविधान में अनुच्छेद 324 से लेकर 329 तक भारतीय निर्वाचन प्रणाली की रुपरेखा प्रस्तुत की गयी है। जिसमें विस्तार से निर्वाचन प्रक्रिया का वर्णन किया गया है।
लोकसभा निर्वाचन प्रक्रिया
लोक सभा का गठन वयस्क मताधिकार पर आधारित प्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली के माध्यम से चुने गए जन-प्रतिनिधियों से मिलकर होता है।संविधान के अनुसार इसमें अधिकतम सदस्यों की संख्या 552 ही हो सकती हैं, जिसमें 530 सदस्य राज्यों और 20 सदस्य संघशासित क्षेत्रों से होंगे। इसके अलावा राष्ट्रपति आंग्ल-भारतीय समुदाय के दो सदस्यों को लोक सभा के लिए नामित कर सकता है। 2009 में हुए 95वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा लोक सभा हेतु आंग्ल-भारतीयों के नामांकन की अवधि को पुनः बढ़ाकर 2020 तक कर दिया गया है। लोक सभा निर्वाचन के आयाम निम्नलिखित हैं –
•प्रत्यक्ष निर्वाचन: लोक सभा के सदस्यों का निर्वाचन जनता द्वारा प्रत्यक्ष निर्वाचन के माध्यम से किया जाता है।कोई भी व्यस्क नागरिक अर्थात जिसकी आयु 18 वर्ष से अधिक है,जाति, धर्म,लिंग,सामाजिक स्थिति आदि के भेदभाव के बिना निर्वाचन में भागीदार बन सकता है।
•निर्वाचन क्षेत्र: प्रत्येक राज्य को निर्वाचन हेतु निर्वाचन क्षेत्रों में बांटा गया है। निर्वाचन क्षेत्रों व लोक सभा के सदस्यों की संख्या समान होती है। क्योंकि प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र से लोक सभा के लिए एक सदस्य का निर्वाचन किया जाता है।
• हर जनगणना के पश्चात निर्वाचन क्षेत्रों का पुनर्समायोजन: निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन क्षेत्र के आधार पर न कर जनसंख्या के आधार पर किया जाता है। इसलिए प्रत्येक जनगणना के बाद निर्वाचन क्षेत्रों के पुनर्समायोजन की आवश्यकता होती है।
• अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए सीटों का आरक्षण: संविधान में अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए लोक सभा में सीटें आरक्षित की गयीं हैं। 95वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2009 द्वारा लोक सभा में अनुसूचित जाति व जनजातियों के लिए सीटों के आरक्षण की अवधि को दुबारा 2020 तक बढ़ाया गया है।
हमारे संविधान में पृथक निर्वाचकमण्डल की व्यवस्था नहीं है, इसका तात्पर्य है क़ि सामान्य मतदाता भी अनुसूचित जाति/जनजाति के लिए आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों के मतदान में भाग ले सकता है। इसके साथ ही अनुसूचित जाति/जनजाति समुदाय का कोई भी सदस्य सामान्य निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव में लड़ सकता है। 2003 में हुए 87वें संविधान संशोधन अधिनियम, के अनुसार राज्य सभा व लोक सभा में अनुसूचित जातियों/जनजातियों के लिए सीटों का आरक्षण 2001 की जनगणना के आधार पर होगा।