Thursday, November 21, 2024
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गोपाल कृष्ण गोखले का देश के प्रति जिवन समर्पण

गोपाल कृष्ण गोखले जी हमारे भारत के एक महान समाजसुधारक रहे हैं। इनकी शिक्षा ने उनके राजनीतिक जीवन को प्रभावित किया। उनके समय के समकालीन नेता बालगंगाधर तिलक , दादाभाई नौरोजी , बिपिन चंद्र पाल, लाला लाजपत राय और एनी बेसेंट जैसे अन्य समाजसुधारक और स्वतंत्रता सेनानी थे। उनकी अंग्रेजी भाषा पर पकड़ बहुत अच्छी थी। जिससे उन्हें भारतीयों की ओर से ब्रिटिश सरकार के समक्ष मुद्दे पेश करने में अच्छे सहायता मिलती थी।

गोखले जी ने प्रोफेसर के रूप में अपने करियर की शुरुआत की थी, लेकिन बाद में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए जो उनके करियर का महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। वे ब्रिटिश काउंसिल में भारतीयों के अधिक प्रतिनिधित्व की वकालत किया करते थे। साल 1894 में गोखले जी ने कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में आयरिश राष्ट्रवादी अल्फ्रेड वेब को नियुक्त किया था। उसके बाद साल 1895 में वे लोकमान्य तिलक के साथ कांग्रेस के संयुक्त सचिव बने। वह डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी के एक महत्वपूर्ण सदस्य भी थे। गोखले जी और एमजी रानाडे जी ने पूना सार्वजनिक सभा पर एक साथ काम किया था। उन्होंने अंग्रेजी साप्ताहिक पत्रिका “महराट्टा” में भी अपना योगदान दिया था। साल 1893 में उन्हें एक और सफलता मिली, जिसमें उन्हें बॉम्बे विश्वविद्यालय का सीनेट नियुक्त किया गया। उन्होंने रानाडे जी की सहायता से 1905 में “सर्वेन्ट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी” की स्थापना की। इस सोसायटी के अंतर्गत कई स्कूल, कॉलेज, औद्योगिक श्रमिकों के लिए सुविधाएं और रात्रि कक्षाएं स्थापित किए गए थे। इस सोसायटी का महत्वपूर्ण उद्देश्य भारतीयों को सामाजिक अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने तथा अपने देश की सेवा करने के लिए शिक्षित करना था।

गोखले और रानाडे ने एकजुट होकर त्रैमासिक पत्रिका “सार्वजनिक” पर भी सहयोग किया। गोखले जी को तिलक के बहिष्कार और आंदोलन के विपरीत उदारवादी विचारधारा के लिए भी जाना जाता है। साल 1907 में उदारवादियों और गरमपंथियों के बीच मतभेद अपने चरम बिंदु पर था। साल 1908 में उन्होंने रानाडे इंस्टीट्यूट ऑफ इकोनॉमिक्स की स्थापना की।” सूरत विभाजन 1907 ” इसी मतभेद का परिणाम था। जिसे श्री नेविसन ने दर्ज किया था। उन्होंने नमक कर हटाने और सार्वजनिक सेवा में अधिकाधिक भारतीयों को शामिल करने के लिए आंदोलन चलाया।

भारत के महान समाजसुधारक

गोखले जी ने भारत में शिक्षा को भी बहुत बढ़ावा दिया था और इसी लिए उन्होंने भारत में “सर्वेंट्स ऑफ़ द इंडिया सोसाइटी” की स्थापना की थी। इस सोसाइटी ने कई स्कूल, पुस्तकालय, उद्योग कर्मचारी और रात्रि कक्षाएं स्थापित कीं। उस समय में सरकार सेना पर भारी खर्च कर रही थी और कपास पर उच्च कर लगा रही थी, इसलिए गोखले ने इसके लिए सरकार की आलोचना की। भारत में ब्रिटिश शासन आने के सालों बाद भी, भारतीय आबादी का केवल एक छोटा भाग ही साक्षर था। इस विषय को ध्यान में रखते हुए उन्होंने ब्रिटिश सरकार पर दबाव डाला कि भारत में शिक्षा को अनिवार्य बनाया जाए। परंतु सर हरकोर्ट बटलर ने इस प्रस्ताव को नकार दिया और कहा कि भारत में यह संभव नहीं है क्योंकि वह इसके लिए तैयार नहीं है।

गोपाल कृष्ण गोखले एक प्रमुख भारतीय राष्ट्रवादी नेता और समाज सुधारक थे जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम और सामाजिक सुधार आंदोलनों में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। जैसे

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस: गोखले ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी । साल 1905 में इसके अध्यक्ष के रूप में उन्होंने कार्य किया। वह उदारवादी राजनीति के एक मजबूत समर्थक थे और उन्होंने एक व्यापक आधार वाला राष्ट्रीय आंदोलन बनाने के लिए जमकर काम किया था।

शिक्षा सुधार: गोखले की भारत में शिक्षा पर सुधार के भी प्रबल समर्थक थे। उनका मानना था कि शिक्षा सामाजिक और आर्थिक प्रगति की कुंजी है। इसलिए उन्होंने भारत में शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के लिए हर सार्थक प्रयास किए।

विधान परिषद: गोखले जी ने इंपीरियल विधान परिषद के सदस्य के रूप में भी कार्य किया था और उन्होंने इस मंच का उपयोग ब्रिटिश भारतीय सरकार में अधिक से अधिक भारतीयों के प्रतिनिधित्व की वकालत करने के लिए किया। उन्होंने विशेष रूप से निर्णय लेने की प्रक्रिया में भारतीयों की आवाज़ और भागीदारी बढ़ाने के लिए काम किया।

श्रम सुधार: गोखले भारत में मजदूरों की कार्य स्थितियों में सुधार के लिए गहराई से प्रतिबद्ध थे। उन्होंने ऐसे श्रम कानूनों की वकालत की जो श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा करते थे और उनके वेतन और जीवन स्थितियों को बेहतर बनाने के लिए काम करते थे।

संवैधानिक सुधार: गोखले जी ने साल 1909 के भारतीय परिषद अधिनियम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जिसने भारत में महत्वपूर्ण संवैधानिक सुधार पेश किए। इस अधिनियम ने विधान परिषदों के आकार का विस्तार किया और अधिक भारतीयों को सरकार में भाग लेने की अनुमति दिलाई।

गोखले जी हमारे भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी रहे। इनकी विचारधारा ने भारतीय इतिहास में गहरी छाप छोड़ी है, जो हर भारतीय को देश के प्रति प्रेम और सुधार की प्रेरणा देती है। इनके विचारधारा से अहिंसा की विचारधारा को एक अलग शक्ति भी प्राप्त होती है। देश के लिए दिया गया इनका प्रत्येक योगदान हर भारतीय के लिए प्रेरणा स्त्रोत है।

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