पौराणिक काल में पुराणों की रचना एक महत्वपूर्ण घटना थी, जिसने हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पुराणों की रचना का समय लगभग 500 ईसा पूर्व से 500 ईस्वी तक माना जाता है। यह समय पौराणिक काल के अंत और मध्ययुगीन काल की शुरुआत का समय है।
पुराणों के लेखक विभिन्न थे, लेकिन अधिकांश पुराणों की रचना वेद व्यास द्वारा की गई मानी जाती है। वेद व्यास एक महान ऋषि और लेखक थे, जिन्होंने वेदों और पुराणों की रचना की।पुराणों की संख्या:पुराणों की संख्या 18 मानी जाती है, जिनमें से प्रत्येक पुराण एक विशिष्ट देवता या विषय पर केंद्रित है।
पुराणों के लेखक:
वेद व्यास
वेद व्यास हिंदू धर्म के एक सबसे पवित्र ग्रंथों के लेखक माने जाते है।वेद व्यास एक महान ऋषि और लेखक थे, जिन्होंने वेदों और पुराणों की रचना की। उनका जन्म लगभग 3000 ईसा पूर्व हुआ था। वे हिंदू धर्म के सबसे पवित्र ग्रंथों के लेखक माने जाते हैं।
वेद व्यास का जीवन:वेद व्यास का जन्म सत्यवती और पराशर ऋषि के घर हुआ था। उनका असली नाम कृष्ण द्वैपायन था, लेकिन उन्हें वेद व्यास के नाम से जाना जाता है। वे अपनी माता के साथ रहते थे और उन्होंने अपनी शिक्षा अपने पिता से प्राप्त की।
वेद व्यास की रचनाएं:वेद व्यास ने कई महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं:
- महाभारत: यह हिंदू धर्म का सबसे बड़ा और सबसे पवित्र ग्रंथ है।
- वेद: वेद व्यास ने वेदों की रचना की, जो हिंदू धर्म के सबसे पवित्र ग्रंथ हैं।
- पुराण: वेद व्यास ने 18 पुराणों की रचना की, जो हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण ग्रंथ हैं।
- ब्रह्मसूत्र: यह ग्रंथ हिंदू धर्म के दर्शनशास्त्र पर आधारित है।
- भगवद्गीता: यह ग्रंथ भगवान कृष्ण के उपदेशों पर आधारित है।
वेद व्यास का महत्व:वेद व्यास का महत्व हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति में बहुत अधिक है। उन्होंने हिंदू धर्म के मूल सिद्धांतों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनके ग्रंथ आज भी हिंदू समाज में बहुत प्रभावशाली हैं।
वेद व्यास की मृत्यु:वेद व्यास की मृत्यु लगभग 2700 ईसा पूर्व हुई थी। उनकी मृत्यु के बाद, उनके शिष्यों ने उनके ग्रंथों को संरक्षित किया और उन्हें आगे पीढ़ियों तक पहुंचाया।
कल्हण
कल्हण एक प्रसिद्ध इतिहासकार और लेखक थे, जिन्होंने राजतरंगिणी नामक ग्रंथ की रचना की। यह ग्रंथ कश्मीर के इतिहास पर आधारित है।
कल्हण का जीवन:कल्हण का जन्म लगभग 11वीं शताब्दी में हुआ था। उनका असली नाम कल्हण पंडित था। वे एक ब्राह्मण परिवार से थे और उनके पिता का नाम श्री कन्थ था।
कल्हण की रचनाएं:कल्हण ने कई महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं:
- राजतरंगिणी: यह ग्रंथ कश्मीर के इतिहास पर आधारित है।
- तरंगिनी वृत्तांत: यह ग्रंथ कश्मीर के इतिहास पर आधारित है।
- कल्हण की कविताएं: कल्हण ने कई कविताएं लिखीं, जो हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति पर आधारित हैं।
कल्हण का महत्व:कल्हण का महत्व इतिहास और साहित्य में बहुत अधिक है। उन्होंने कश्मीर के इतिहास को संरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनके ग्रंथ आज भी इतिहासकारों और साहित्यकारों के लिए महत्वपूर्ण स्रोत हैं।
कल्हण की मृत्यु: कल्हण की मृत्यु लगभग 12वीं शताब्दी में हुई थी। उनकी मृत्यु के बाद, उनके ग्रंथों को संरक्षित किया गया और उन्हें आगे पीढ़ियों तक पहुंचाया गया।
आदि शंकराचार्य
आदि शंकराचार्य एक महान दार्शनिक और लेखक थे, जिन्होंने अद्वैत वेदांत के सिद्धांतों को प्रस्तुत किया। उन्होंने कई ग्रंथों की रचना की, जिनमें ब्रह्मसूत्र भाष्य और भगवद्गीता भाष्य प्रमुख हैं।उनका जन्म 788 ईस्वी में केरल के कालडी में हुआ था।
आदि शंकराचार्य का जीवन:आदि शंकराचार्य के पिता शिवगुरु और माता आर्याम्बा थीं। उनके पिता की मृत्यु उनके बचपन में ही हो गई थी। आदि शंकराचार्य ने अपनी शिक्षा अपने गुरु गोविंद भागवतपाद से प्राप्त की।
आदि शंकराचार्य की रचनाएं:आदि शंकराचार्य ने कई महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं:
- ब्रह्मसूत्र भाष्य
- भगवदगीता भाष्य
- उपनिषद भाष्य
- आत्मबोध
- विवेकचूड़ामणि
आदि शंकराचार्य का महत्व:आदि शंकराचार्य का महत्व हिंदू धर्म और भारतीय दर्शनशास्त्र में बहुत अधिक है। उन्होंने अद्वैत वेदांत के सिद्धांतों को प्रस्तुत किया, जो हिंदू धर्म के मूल सिद्धांतों में से एक है। उनकी रचनाएं आज भी हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए महत्वपूर्ण स्रोत हैं।
आदि शंकराचार्य की मृत्यु:आदि शंकराचार्य की मृत्यु 820 ईस्वी में केदारनाथ में हुई थी। उनकी मृत्यु के बाद, उनके शिष्यों ने उनकी शिक्षाओं को संरक्षित किया और उन्हें आगे पीढ़ियों तक पहुंचाया।
तुलसीदास
तुलसीदास एक महान कवि और लेखक थे, जिन्होंने रामचरितमानस नामक ग्रंथ की रचना की। यह ग्रंथ भगवान राम की कथा पर आधारित है।
कबीरदास
तुलसीदास एक महान कवि और संत थे, जिन्होंने हिंदू धर्म के सबसे पवित्र ग्रंथ, रामचरितमानस की रचना की। उनका जन्म 1532 ईस्वी में उत्तर प्रदेश के राजापुर में हुआ था।
तुलसीदास का जीवन:तुलसीदास के पिता आत्माराम दुबे और माता हुलसी थीं। उनके पिता की मृत्यु उनके बचपन में ही हो गई थी। तुलसीदास ने अपनी शिक्षा अपने गुरु नरहरिदास से प्राप्त की।
तुलसीदास की रचनाएं:तुलसीदास ने कई महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं:
- रामचरितमानस
- दोहावली
- कवितावली
- गीतावली
- विनय पत्रिका
तुलसीदास का महत्व: तुलसीदास का महत्व हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति में बहुत अधिक है। उन्होंने रामचरितमानस के माध्यम से भगवान राम की कथा को जन-जन तक पहुंचाया। उनकी रचनाएं आज भी हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए महत्वपूर्ण स्रोत हैं।
तुलसीदास की मृत्यु:तुलसीदास की मृत्यु 1623 ईस्वी में वाराणसी में हुई थी। उनकी मृत्यु के बाद, उनके शिष्यों ने उनकी शिक्षाओं को संरक्षित किया और उन्हें आगे पीढ़ियों तक पहुंचाया।
तुलसीदास के कुछ प्रसिद्ध दोहे:“जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरति देखी तिन तैसी।””राम नाम को जपत ह्रदय में, ताहि सम नहीं कोई दुख का डर।””अवधि अतीत अनंत गुनें, जाकी रही भावना जैसी।”
सूरदास
सूरदास एक महान कवि और संत थे, जिन्होंने भगवान कृष्ण की प्रशंसा में कई सुंदर कविताएँ लिखीं। उनका जन्म 1478 ईस्वी के आसपास मथुरा-आगरा मार्ग पर स्थित “रुनकता” नामक गांव में हुआ था।
सूरदास का जीवन:सूरदास के पिता रामदास और माता के नाम के बारे में जानकारी नहीं है। वह जन्म से अंधे थे, लेकिन उनकी कविताओं में ऐसी स्पष्टता और सुंदरता है कि लगता है कि उन्हें सब कुछ दिखाई देता था।
सूरदास की रचनाएं:सूरदास ने कई महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं:
- सूरसागर
- सूरसारावली
- साहित्य लहरी
- नल-दमयन्ती
- ब्याहलो
सूरदास का महत्व:सूरदास का महत्व हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति में बहुत अधिक है। उन्होंने भगवान कृष्ण की प्रशंसा में कविताएँ लिखकर भक्ति आंदोलन को आगे बढ़ाया। उनकी कविताएं आज भी हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए महत्वपूर्ण स्रोत हैं।
सूरदास की मृत्यु:सूरदास की मृत्यु 1583 ईस्वी में वाराणसी में हुई थी। उनकी मृत्यु के बाद, उनके शिष्यों ने उनकी शिक्षाओं को संरक्षित किया और उन्हें आगे पीढ़ियों तक पहुंचाया।
सूरदास के कुछ प्रसिद्ध पद:“मुखिया मुख सो चाहिए, खान पान को एक राहिए।””कृष्ण के चरण कमल में, निष्ठा धरण को एक राहिए।””जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरति देखी तिन तैसी।”
सूरदास एक महान कवि और लेखक थे, जिन्होंने सूरसागर नामक ग्रंथ की रचना की। यह ग्रंथ भगवान कृष्ण की कथा पर आधारित है।
वाल्मीकि
वाल्मीकि एक महान कवि और ऋषि थे, जिन्होंने हिंदू धर्म के सबसे पवित्र ग्रंथ, रामायण की रचना की। उनका जन्म लगभग 500 ईस्वी पूर्व में हुआ था।
वाल्मीकि का जीवन:वाल्मीकि के पिता प्रचेता और माता अदिति थीं। वह जन्म से ब्राह्मण थे, लेकिन उनका जीवन एक डाकू के रूप में शुरू हुआ था। एक दिन, उन्होंने एक ऋषि की हत्या करने की कोशिश की, लेकिन ऋषि ने उन्हें जीवन के सही मार्ग पर चलने की शिक्षा दी। इसके बाद, वाल्मीकि ने अपना जीवन बदल दिया और भगवान राम की कथा को लिखने के लिए समर्पित हो गए।
वाल्मीकि की रचनाएं:वाल्मीकि की प्रमुख रचना है:
रामायण-रामायण में लगभग 24,000 श्लोक हैं, जो भगवान राम की कथा को विस्तार से बताते हैं। यह ग्रंथ हिंदू धर्म के सबसे पवित्र ग्रंथों में से एक है।
वाल्मीकि का महत्व:वाल्मीकि का महत्व हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति में बहुत अधिक है। उन्होंने रामायण के माध्यम से भगवान राम की कथा को जन-जन तक पहुंचाया। उनकी रचनाएं आज भी हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए महत्वपूर्ण स्रोत हैं।
वाल्मीकि की मृत्यु:वाल्मीकि की मृत्यु के बारे में जानकारी नहीं है, लेकिन माना जाता है कि उन्होंने अपना जीवन भगवान राम की सेवा में समर्पित कर दिया था।
वाल्मीकि के कुछ प्रसिद्ध श्लोक:
- “रामो विग्रहवान धर्मः”
- “जननी जन्मभूमिश्च स्वदेशः”
- “आत्मवान भवदात्मा हि”
पुराणों का महत्व
पुराणों का महत्व हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति में बहुत अधिक है। पुराणों ने हिंदू धर्म के मूल सिद्धांतों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। पुराणों में वर्णित कथाएं और उपदेश आज भी हिंदू समाज में बहुत प्रभावशाली हैं।