https//globalexplorer.in महात्मा गांधी और डॉ. अंबेडकर विचारधाराओं के संघर्ष और सामाजिक सुधार की दिशा
डॉ. भीमराव अंबेडकर और महात्मा गांधी, भारत के स्वतंत्रता संग्राम और सामाजिक सुधार के दो प्रमुख चेहरे, दोनों का भारतीय समाज के प्रति दृष्टिकोण और संघर्ष अलग था। दोनों ही महापुरुष सामाजिक अन्याय के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे थे, लेकिन उनके विचारों में कई बार गहरे मतभेद उभरकर सामने आए। विशेष रूप से जाति व्यवस्था और अस्पृश्यता के मुद्दे पर उनकी सोच भिन्न थी। यह लेख उन दोनों के संबंधों की जटिलताओं और उनके मतभेदों को समझने का प्रयास करेगा।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
महात्मा गांधी का जन्म 1869 में गुजरात के पोरबंदर में हुआ था। गांधी का जीवन उनके बचपन से ही धार्मिकता और सामाजिक कार्यों के प्रति जागरूकता से प्रभावित रहा। उनका अध्ययन इंग्लैंड में हुआ, जहाँ उन्होंने कानून की पढ़ाई की। इसके बाद वे दक्षिण अफ्रीका गए, जहाँ उन्होंने भारतीय समुदाय के अधिकारों के लिए संघर्ष किया। गांधी का दर्शन सत्य और अहिंसा पर आधारित था, और उनका मानना था कि सामाजिक सुधार अहिंसा और सत्याग्रह के माध्यम से होना चाहिए।
वहीं, डॉ. भीमराव अंबेडकर का जन्म 1891 में महाराष्ट्र के महार जाति में हुआ था, जिसे तत्कालीन समाज में “अछूत” माना जाता था। अंबेडकर ने बचपन में ही सामाजिक भेदभाव का सामना किया। लेकिन उनकी विलक्षण बुद्धिमत्ता ने उन्हें उच्च शिक्षा प्राप्त करने का अवसर दिया। वे कोलंबिया विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से अध्ययन करके वापस लौटे। अंबेडकर के जीवन का मुख्य उद्देश्य जातिगत भेदभाव और अस्पृश्यता के खिलाफ लड़ाई लड़ना था।
गांधी और अंबेडकर का सामाजिक दृष्टिकोण
महात्मा गांधी और अंबेडकर दोनों का उद्देश्य भारतीय समाज में सुधार लाना था, लेकिन उनके तरीकों और विचारों में काफी भिन्नता थी।गांधी जी जाति व्यवस्था को पूरी तरह समाप्त करने के पक्ष में नहीं थे, बल्कि वे इसमें सुधार करना चाहते थे। उनका मानना था कि जातियों का अस्तित्व रह सकता है, लेकिन इसमें भेदभाव नहीं होना चाहिए। गांधी जी ने ‘हरिजन’ शब्द का इस्तेमाल किया और अछूतों के लिए समाज में सम्मानजनक स्थान दिलाने की कोशिश की। वे मानते थे कि हिंदू धर्म में रहकर ही जातिगत अन्याय को समाप्त किया जा सकता है। उनके लिए छुआछूत एक पाप था, लेकिन वे वर्ण व्यवस्था को पूरी तरह से नकारते नहीं थे।
वहीं, अंबेडकर जाति व्यवस्था के पूरी तरह से उन्मूलन के पक्षधर थे। अंबेडकर का मानना था कि जाति व्यवस्था हिंदू धर्म की बुनियादी संरचना में इतनी गहराई से जुड़ी हुई है कि इसके भीतर सुधार संभव नहीं है। उन्होंने तर्क दिया कि जब तक जाति प्रथा रहेगी, तब तक दलितों और अन्य पिछड़े वर्गों के साथ भेदभाव होता रहेगा। उनका मानना था कि दलितों को अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करना होगा और हिंदू धर्म से बाहर आकर बौद्ध धर्म जैसे धर्मों को अपनाना होगा।
पूना पैक्ट और मतभेद
महात्मा गांधी और अंबेडकर के संबंधों में सबसे बड़ा विवाद 1932 में हुए पूना पैक्ट से जुड़ा है। अंग्रेजी शासन ने उस समय “कम्यूनल अवार्ड” की घोषणा की थी, जिसमें दलितों के लिए पृथक निर्वाचक मंडल का प्रावधान था। अंबेडकर ने इसका समर्थन किया, क्योंकि उनका मानना था कि यह दलितों को राजनीतिक रूप से सशक्त बनाने का एक महत्वपूर्ण कदम था। लेकिन गांधी जी ने इसका कड़ा विरोध किया। उन्होंने कहा कि पृथक निर्वाचक मंडल हिंदू समाज को बांट देगा और इससे समाज में और अधिक विभाजन होगा।
गांधी जी ने इस निर्णय के विरोध में यरवदा जेल में आमरण अनशन शुरू कर दिया। यह एक महत्वपूर्ण मोड़ था, क्योंकि अंबेडकर को भारी दबाव का सामना करना पड़ा। अंततः अंबेडकर को गांधी के साथ एक समझौता करना पड़ा, जिसे “पूना पैक्ट” के रूप में जाना जाता है। इस समझौते के तहत पृथक निर्वाचक मंडल को छोड़ दिया गया, लेकिन दलितों के लिए आरक्षित सीटों की संख्या बढ़ा दी गई। हालांकि, अंबेडकर इस समझौते से संतुष्ट नहीं थे। उन्हें लगता था कि यह समझौता दलितों के अधिकारों के साथ समझौता करने के समान था।
धर्म परिवर्तन और गांधी का दृष्टिकोण
डॉ. अंबेडकर ने 1956 में अपने अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म अपनाया। यह कदम उनके और गांधी जी के विचारों के बीच एक और महत्वपूर्ण विभाजन को दर्शाता है। अंबेडकर का मानना था कि दलितों के लिए सामाजिक और धार्मिक आज़ादी केवल तभी संभव है जब वे हिंदू धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म जैसे किसी और धर्म को अपनाएं, जो जातिवाद से मुक्त हो। अंबेडकर ने कहा था, “मैं हिंदू के रूप में पैदा हुआ हूं, लेकिन हिंदू के रूप में मरूंगा नहीं।
“गांधी जी ने अंबेडकर के इस कदम की आलोचना की थी। उनका मानना था कि धर्म परिवर्तन से दलितों की समस्याओं का समाधान नहीं होगा। गांधी जी को लगता था कि समाज सुधार के माध्यम से ही इन समस्याओं को हल किया जा सकता है। उनके लिए दलितों का उद्धार हिंदू धर्म के भीतर ही संभव था। गांधी जी का दृष्टिकोण धार्मिकता और आध्यात्मिकता से प्रेरित था, जबकि अंबेडकर का दृष्टिकोण वैज्ञानिकता और सामाजिक न्याय पर आधारित था।
समानताएँ और मतभेद
महात्मा गांधी और डॉ. अंबेडकर दोनों ही भारतीय समाज के महान सुधारक थे, लेकिन उनके दृष्टिकोण में बुनियादी अंतर था। गांधी जी सत्य, अहिंसा और आध्यात्मिकता के माध्यम से समाज सुधार का मार्ग अपनाते थे, जबकि अंबेडकर का ध्यान वैज्ञानिक और तार्किक दृष्टिकोण पर था। अंबेडकर का मुख्य उद्देश्य दलितों और पिछड़े वर्गों को सामाजिक और राजनीतिक रूप से सशक्त बनाना था, जबकि गांधी जी का ध्यान समाज में समरसता लाने पर था।
अंत में
डॉ. अंबेडकर और महात्मा गांधी के बीच मतभेदों के बावजूद, दोनों ही भारतीय समाज के लिए महत्वपूर्ण योगदान करने वाले नेता थे। गांधी जी के प्रयासों ने भारत को स्वतंत्रता दिलाने में मदद की, जबकि अंबेडकर ने भारतीय संविधान का निर्माण करके समाज में समानता और न्याय की नींव रखी। दोनों के संघर्ष और विचारधाराएँ भले ही अलग-अलग रही हों, लेकिन उनका अंतिम उद्देश्य समान था—एक बेहतर और न्यायपूर्ण समाज का निर्माण।
अंबेडकर और गांधी का संबंध जटिल और विरोधाभासों से भरा था, लेकिन इन दोनों महान हस्तियों का भारतीय समाज पर स्थायी प्रभाव रहा है। उनके योगदान और मतभेद भारतीय इतिहास के महत्वपूर्ण अध्याय हैं, जो आज भी प्रासंगिक हैं और आने वाली पीढ़ियों को मार्गदर्शन देते रहेंगे।