हमारा भारत को पूरे विश्व में हिंदुओं के देश के नाम सी भी जाना जाता है। हमारे भारत में अधिकांश लोग सनातनी हैं, जो हिंदू धर्म में मान्यता रखते हैं और पुरी श्रद्धा भी रखते हैं। सनातन धर्म को सबसे प्राचीन धर्म माना जाता है। प्राचीन भारत के कुछ ऐसे साक्ष्य हैं जो हमें बताते हैं कि सनातन धर्म सबसे प्राचीन धर्म है, जैसे कि की सिंधु घाटी सभ्यता, जिसमें हिन्दू धर्म के कई चिह्न और साक्ष्य मिलते हैं, जो बताते हैं कि यह धर्म, ज्ञात रूप से लगभग 12000 वर्ष पुराना है जबकि कुछ पौराणिक मान्यताओं के अनुसार हिंदू धर्म 90 हजार वर्ष पुराना है। सबसे प्राचीन धर्म होने के कारण बहुत सी मान्यताएं और परंपराएं हैं। इस लेक में आप ऐसे ही कुछ प्रमुख अवधारणाएं और परंपराएं जानेंगे।
हिंदू धर्म की प्रमुख अवधारणाएं और परंपराएं
•ब्रम्हा
ब्रह्म को सर्वव्यापी एकमात्र सत्ता निर्गुण तथा सर्वशक्तिमान माना गया है, वास्तव में यह एकेश्वरवाद के परब्रह्म है, जो अजर अमर अनंत और इस जगत का जन्मदाता पालनहार व कल्याण करता है। अर्थात सारी दुनिया को चलाने वाला मालिक केवल एक ही है, जो कि अमर है और जिसका कोई अंत नहीं है।
•आत्मा
ब्रह्म को सर्वव्यापी माना गया है अतः जीवो में भी उसका अंश विद्यमान है जीवो में विद्यमान ब्रह्मा के यह अंश ही आत्मा है जो जीव की मृत्यु के बावजूद समाप्त नहीं होती और किसी नवीन देह को धारण कर लेती है अंततः मोक्ष प्राप्ति के पश्चात वह ब्रह्म में लीन हो जाती है। अर्थात पृथ्वी के हर जीव में ब्रम्हा जी वास करते हैं और अगर किसी जीव की मृत्यु हो जाती है तब भी उसके भीतर की आत्मा अर्थात ब्रह्म शक्ति जीवित रहती है और जब उस शक्ति को मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है तब वह वास्तविक ब्राह्म शक्ति में जाकर मिल जाती है।
•पुनर्जन्म
आत्मा के अमरत्व की अवधारणा से ही पुनर्जन्म की भी अवधारणा बलवती होती है। एक जीव की मृत्यु के पश्चात उसकी आत्मा नवीन देह् को धारण करती है अर्थात उसका पुनर्जन्म होता है। इस प्रकार देह् आत्मा का माध्यम मात्र है। अर्थात एक आत्मा शरीर का सहारा लेकर ही पृथ्वी पर अलग-अलग रूप में विद्यमान रहती है।
• योनि
आत्मा के प्रत्येक जन्म द्वारा प्राप्त जीव रूप को योनि कहते हैं। ऐसी 84 करोड़ योनियों की कल्पना की गई है, जिसमें कीट पतंगे पशु पक्षी वृक्ष और मानव आदि सभी सम्मिलित हैं। योनि को आधुनिक वैज्ञानिक भाषा में जैव प्रजातियां कहा जा सकता है। अर्थात् एक योनि में मृत्यु हो जाने के बाद आत्मा 84 करोड़ योनियों में से किसी का भी रूप पुनर्जन्म में दुबारा धारण कर सकती है।
•कर्मफल
प्रत्येक जन्म के दौरान जीवन भर किए गए कृत्यों का फल आत्मा को अगले जन्म में भुगतना पड़ता है। अच्छे कर्मों के फल स्वरुप अच्छी योनि में जन्म होता है।इस दृष्टि से मनुष्य योनी सर्वश्रेष्ठ योनि है। परंतु कर्म फल का अंतिम लक्ष्य मोक्ष प्राप्ति अर्थात आत्मा का ब्रह्मलीन हो जाना ही होता है। अर्थात् हम अपने सम्पूर्ण जीवन में जितने भी अच्छे बुरे कार्य करते हैं, उन सभी का फल हमें अगले जन्म में भोगना पड़ता है।
•स्वर्ग नर्क
यह कर्म फल से संबंधित दो लोक हैं। स्वर्ग में देवी-देवता अत्यंत ऐश्वर्य पूर्ण जीवन व्यतीत करते हैं, जबकि नर्क अत्यंत कष्टदायक अंधकार में और निकृष्ट होता है।अच्छे कर्म करने वाला प्राणी मृत्यु के बाद स्वर्ग में और बुरे कर्म करने वाला नर्क में स्थान पाता है। अर्थात् हम हमेशा यह देखते हैं कि अगर कोई व्यक्ति अच्छा कार्य कर रहा होता है तो लोग उसे स्वर्ग प्राप्त होने का आशीर्वाद देते हैं, वहीं अगर कोई बुरा काम करता है तो उसे नर्क प्राप्त होने का श्राप दिया जाता है।
•मोक्ष
मोक्ष का आशय है आत्मा का जीवन मरण के दुष्चक्र से मुक्त हो जाना अर्थात परम ब्रह्म में लीन हो जाना इसके लिए निर्विकार भाव से सत्कर्म करना और ईश्वर की आराधना करना हिंदू धर्म में मार्ग बताए गए हैं।
•चार युग
हिंदू धर्म में काल (समय) को चक्रीय बताया गया है इस प्रकार एक कालचक्र में चार युग होते हैं — कृत (सतयुग), त्रेता, द्वापर, तथा कलयुग।इन चारों युगों में कृत सर्वश्रेष्ठ और कलयुग निकृष्टतम माना गया है। इन चारों युगों में मनुष्य की शारीरिक और नैतिक शक्ति क्रमशः क्षीण होती जाती है। चारों युगों को मिलाकर एक महायुग बनता है, जिसकी अवधि 4320000 वर्ष होती है, जिसके अंत में पृथ्वी पर महाप्रलय होता है और फिर से सृष्टि की नवीन रचना ईश्वर द्वारा होती है।
•चार वर्ण
हिंदू समाज को चार वर्णों में विभाजित किया गया है— ब्राह्मण, क्षत्रिय ,वैश्य और शूद्र यह वर्ण प्रारंभ में कर्म के आधार पर विभाजित किए गए थे ब्राह्मण का कर्तव्य विद्यार्जन शिक्षण पूजन कर्मकांड संपादन आदि होता था। क्षत्रिय का धर्मानुसार शासन करना तथा देश व धर्म की रक्षा हेतु युद्ध करना था वैश्य का कृषि और व्यापार द्वारा समाज की आर्थिक आवश्यकताएं पूर्ण करना तथा शूद्रों का अन्य तीनों वर्णों की सेवा करना एवं अन्य जरूरतें पूरी करना दायित्व था। कालांतर में वर्ण व्यवस्था जटिल होती गई और यह वंशानुगत तथा शोषण परक् हो गई शुद्रो को अछूत माना जाने लगा। बाद में विभिन्न वर्णों के बीच दैहिक संबंधों से अन्य मध्यवर्ती जातियों का जन्म हुआ वर्तमान में जाति व्यवस्था अत्यंत विकृत रूप में विद्यमान है।
•चार आश्रम
प्राचीन हिंदू धर्म ग्रंथ में मानव जीवन को 100 वर्ष की आयु का माना गया है और इसी आधार पर उसे 4 चरणों या आश्रमों में विभाजित किया गया है। ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास प्रत्येक की अवधि 25 वर्ष निर्धारित है। ब्रह्मचर्य आश्रम में व्यक्ति गुरु के आश्रम में जाकर विद्या अध्ययन करता है। गृहस्थ आश्रम में विवाह संतानोत्पत्ति अर्थ उपार्जन दान तथा अन्य भोग विलास करता है। वानप्रस्थ में व्यक्ति धीरे-धीरे सांसारिक उत्तरदायित्व अपने पुत्रों को सौंपकर उनसे विरक्त होता है, और अंततः सन्यास आश्रम में गृह त्याग कर निर्विकार होकर ईश्वर की उपासना में लीन हो जाता है।
•चार पुरुषार्थ
ग्रंथों में चार पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को जीवन का वांछित उद्देश्य बताया गया है। उपयुक्त आचरण व्यवहार और कर्तव्य परायणता ही धर्म है अपनी बौद्धिक और शारीरिक क्षमता अनुसार परिश्रम तथा धन अर्जित करना और उनका उचित उपभोग करना अर्थ है। शारीरिक आनंद भोग ही काम है तथा धर्मानुसार आचरण करके जीवन मरण से मुक्ति प्राप्त कर लेना ही मोक्ष है। धर्म मनुष्य के जीवन का मार्गदर्शक होता है जबकि अर्थ और काम गृहस्थाश्रम के दो मुख्य कार्य हैं और मोक्ष संपूर्ण जीवन का अंतिम लक्ष्य।
•चार योग
ज्ञान योग, भक्ति योग, कर्म योग और राजयोग यह 4 योग हैं जो आत्मा को ब्रह्म से जोड़ने का मार्ग प्रशस्त करते हैं जहां ज्ञान योग दार्शनिक एवं तार्किक विधि का अनुसरण करता है, वही भक्ति योग आत्मसमर्पण और सेवा भाव का कर्म योग समाज के दिन हीन् की सेवा तथा राजयोग शारीरिक एवं मानसिक साधना का अनुसरण करता है यह चारों परस्पर विरोधी नहीं है बल्कि एक दूसरे के सहायक और पूरक हैं।
•चार धाम
चारों दिशाओं में पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण स्थित चार हिंदू धाम क्रमशः बद्रीनाथ, रामेश्वरम, जगन्नाथ पुरी और द्वारका है। यहां की यात्रा करना प्रत्येक हिंदू का पुनीत और मोक्ष से जुड़ा हुआ कर्तव्य है।
•हिंन्दू धर्मग्रन्थ
हिंदू धर्म में प्रमुख ग्रंथ चार वेद है ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद, और अथर्ववेद 13 उपनिषद है व 18 पुराण है रामायण, महाभारत और गीता, रामचरितमानस, आदि प्रमुख ग्रंथ हैं इसके अलावा अनेक कथाएं, अनुष्ठान ग्रंथ, आदि भी हैं।
•सोलह संस्कार
मनुष्य के जन्म से लेकर मृत्यु तक 16 अथवा 17 पवित्र संस्कार किए जाते हैं। यह संस्कार मनुष्य के मोक्ष प्राप्ति में सहायक होते हैं।
- i) गर्भाधान
- ii) पुंसवन (गर्भ के तीसरे माह तेजस्वी पुत्र प्राप्ति हेतु किया गया संस्कार)
- iii) सीमंतोनयन (गर्भ के चौथे महीने में गर्भवती स्त्री के सुख और शांति बना हेतु)
- iv) जातकर्म (जन्म के समय)
- v) नामकरण
- vi) निष्क्रमण (बच्चे के प्रथम घर से बाहर लाने पर)
- vii) अन्नप्राशन (5 महीने की आयु में सर्वप्रथम अन्न् ग्रहण करवाने पर)
- viii) चूड़ाकरण (मुंडन)
- ix) कर्नछेदन
- x) विद्यारंभ
- xi) उपनयन (यगोपवित धारण एवं गुरु आश्रम की और प्रस्थान)
- xii) वेद आरंभ
- xiii) केशांत अथवा गोदान (दाढ़ी को सर्वप्रथम काटना)
- xiv) सावित्री
- xv) समावर्तन (शिक्षा समाप्त करके ग्रह की वापसी)
- xvi) विवाह
- xvii) अंत्येष्टि
इस प्रकार विश्व का सबसे प्राचीनतम धर्म हिंदू धर्म बहु धर्म आयामी है। इसमें विविधता जटिलता और सरलता का बेजोड़ मिश्रण है। वर्तमान वैज्ञानिक शोधों से हिंदू धर्म की वैज्ञानिक पद्धति और विचार से सारा विश्व प्रभावित हो रहा है। धर्म के जानने वाले विद्वानों के अनुसार भविष्य में यह धर्म और अधिक विकसित होगा और सारे विश्व को जीवन जीने का मार्ग दिखाएगा।