Thursday, November 21, 2024
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मध्युगीन काल के स्मार्थ संप्रदाय का दर्शन, एकेश्वरवाद की ओर

स्मार्त संप्रदाय हिंदू धर्म की एक प्रमुख शाखा है, जिसकी स्थापना आदि शंकराचार्य ने 8वीं शताब्दी में की थी। इस संप्रदाय का नाम “स्मार्त” शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ है “स्मृति” या “पारंपरिक ज्ञान”। स्मार्त संप्रदाय के अनुयायी वेदों और उपनिषदों के अलावा स्मृति ग्रंथों को भी महत्व देते हैं।

स्मार्त संप्रदाय के मुख्य सिद्धांत:

एकेश्वरवाद:

स्मार्त संप्रदाय का एकेश्वरवाद एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है, जो इस संप्रदाय की आध्यात्मिक आधारशिला है। एकेश्वरवाद का अर्थ है कि एक ही परमेश्वर है, जो सभी जीवों में व्याप्त है और जो सभी कुछ का नियंता है।

एकेश्वरवाद के मुख्य बिंदु:

  • एक ही परमेश्वर: स्मार्त संप्रदाय में माना जाता है कि एक ही परमेश्वर है, जो सभी जीवों में व्याप्त है।
  • सर्वशक्तिमान: परमेश्वर सर्वशक्तिमान है, जो सभी कुछ का नियंता है।
  • सर्वज्ञ: परमेश्वर सर्वज्ञ है, जो सभी कुछ को जानता है।
  • निराकार: परमेश्वर निराकार है, जो किसी भी रूप में नहीं बंधा है।
  • निर्विकार: परमेश्वर निर्विकार है, जो किसी भी परिवर्तन से मुक्त है।

एकेश्वरवाद के महत्व:-

  • एकता की भावना: एकेश्वरवाद एकता की भावना को बढ़ावा देता है, जो सभी जीवों को एक दूसरे से जोड़ता है।
  • आध्यात्मिक एकता: एकेश्वरवाद आध्यात्मिक एकता को बढ़ावा देता है, जो सभी जीवों को परमेश्वर से जोड़ता है।
  • नैतिक मूल्यों की स्थापना: एकेश्वरवाद नैतिक मूल्यों की स्थापना करता है, जो सभी जीवों को अच्छे और बुरे के बीच के अंतर को समझने में मदद करता है।
  • मोक्ष की प्राप्ति: एकेश्वरवाद मोक्ष की प्राप्ति के लिए मार्गदर्शन करता है, जो सभी जीवों को परमेश्वर के साथ एकता की प्राप्ति में मदद करता है।

एकेश्वरवाद के प्रमुख ग्रंथ:-

  • उपनिषद
  • भगवद्गीता
  • ब्रह्मसूत्र
  • वेद
  • स्मृति ग्रंथ

एकेश्वरवाद के प्रमुख आचार्य:

  • आदि शंकराचार्य
  • रामानुजाचार्य
  • मध्वाचार्य
  • निम्बार्काचार्य
  • वल्लभाचार्य

एकेश्वरवाद स्मार्त संप्रदाय की आध्यात्मिक आधारशिला है, जो एक ही परमेश्वर की अवधारणा को बढ़ावा देता है। यह सिद्धांत एकता, आध्यात्मिक एकता, नैतिक मूल्यों की स्थापना, और मोक्ष की प्राप्ति के लिए मार्गदर्शन करता है।

स्मार्त संप्रदाय में एकेश्वरवाद को माना जाता है, जिसके अनुसार एक ही परमेश्वर है, जो सभी जीवों में व्याप्त है।

पंचायतन पूजा:

पंचायतन पूजा स्मार्त संप्रदाय की एक महत्वपूर्ण पूजा पद्धति है, जिसमें पांच देवताओं की पूजा की जाती है। यह पूजा वेदों और उपनिषदों के आधार पर की जाती है।

पंचायतन पूजा के पांच देवता:-

  • शिव
  • विष्णु
  • देवी (पार्वती या लक्ष्मी)
  • सूर्य
  • गणेश

पंचायतन पूजा का महत्व:– पंचायतन पूजा का महत्व निम्नलिखित है:

  • आध्यात्मिक विकास: पंचायतन पूजा आध्यात्मिक विकास को बढ़ावा देती है।
  • शांति और सुख: पंचायतन पूजा से घर में शांति और सुख की प्राप्ति होती है।
  • संपूर्णता: पंचायतन पूजा से जीवन में संपूर्णता की प्राप्ति होती है।
  • कर्म और धर्म: पंचायतन पूजा कर्म और धर्म के महत्व को समझाती है।
  • एकेश्वरवाद: पंचायतन पूजा एकेश्वरवाद को बढ़ावा देती है।

पंचायतन पूजा की विधि:- पंचायतन पूजा की विधि निम्नलिखित है:

  • स्नान और शुद्धि
  • पूजा स्थल की तैयारी
  • देवताओं की स्थापना
  • पूजा की विधि
  • आरती और मंत्रों का जाप
  • प्रसाद का वितरण।

पंचायतन पूजा के लाभ:- पंचायतन पूजा के लाभ निम्नलिखित हैं:

  • आध्यात्मिक शांति
  • जीवन में संपूर्णता
  • कर्म और धर्म की समझ
  • एकेश्वरवाद की समझ
  • घर में शांति और सुख

पंचायतन पूजा स्मार्त संप्रदाय की एक महत्वपूर्ण पूजा पद्धति है, जिसमें पांच देवताओं की पूजा की जाती है। यह पूजा आध्यात्मिक विकास, शांति और सुख, संपूर्णता, कर्म और धर्म, और एकेश्वरवाद को बढ़ावा देती है।

कर्म और धर्म:

स्मार्त संप्रदाय में कर्म और धर्म दो महत्वपूर्ण सिद्धांत हैं, जो व्यक्ति के जीवन को निर्देशित करते हैं। ये दोनों सिद्धांत व्यक्ति को अपने जीवन में उचित मार्ग का अनुसरण करने में मदद करते हैं।

कर्म:- कर्म का अर्थ है कि व्यक्ति के कार्यों के परिणाम उसके भविष्य को निर्धारित करते हैं। स्मार्त संप्रदाय में कर्म के तीन प्रकार हैं:

  • संचित कर्म:- व्यक्ति के पिछले जन्मों में किए गए कार्यों के परिणाम।
  • प्रारब्ध कर्म:- व्यक्ति के वर्तमान जन्म में किए गए कार्यों के परिणाम।क्रियमाण कर्म:- व्यक्ति के वर्तमान जन्म में किए जा रहे कार्यों के परिणाम।

धर्म:- धर्म का अर्थ है व्यक्ति के जीवन में उचित मार्ग का अनुसरण करना। स्मार्त संप्रदाय में धर्म के चार प्रकार हैं:

  • वर्ण धर्म:एच व्यक्ति के वर्ण (जाति) के अनुसार उसके कर्तव्यआ।
  • श्रम धर्म:- व्यक्ति के आश्रम (जीवन के चरण) के अनुसार उसके कर्तव्य।कुल धर्म:- व्यक्ति के परिवार के अनुसार उसके कर्तव्य।
  • स्वधर्म:- व्यक्ति के अपने धर्म के अनुसार उसके कर्तव्य।

कर्म और धर्म के बीच संबंध:- कर्म और धर्म दोनों एक दूसरे के साथ जुड़े हुए हैं। व्यक्ति के कर्म उसके धर्म को निर्धारित करते हैं, और उसके धर्म उसके कर्मों को निर्देशित करते हैं।

महत्व:- कर्म और धर्म के सिद्धांतों का महत्व इस प्रकार है:

  • जीवन के उद्देश्य की प्राप्ति:- कर्म और धर्म व्यक्ति को अपने जीवन के उद्देश्य की प्राप्ति में मदद करते हैं।
  • नैतिक मूल्यों की स्थापना:- कर्म और धर्म व्यक्ति को नैतिक मूल्यों की स्थापना में मदद करते हैं।
  • मोक्ष की प्राप्ति:- कर्म और धर्म व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति में मदद करते हैं।

कर्म और धर्म स्मार्त संप्रदाय के दो महत्वपूर्ण सिद्धांत हैं, जो व्यक्ति के जीवन को निर्देशित करते हैं। ये दोनों सिद्धांत व्यक्ति को अपने जीवन में उचित मार्ग का अनुसरण करने में मदद करते हैं और मोक्ष की प्राप्ति में मदद करते हैं।

मोक्ष:

मोक्ष स्मार्त संप्रदाय का परम लक्ष्य है, जो व्यक्ति को जन्म, मृत्यु और पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति दिलाता है। मोक्ष का अर्थ है व्यक्ति की आत्मा की मुक्ति, जो परमेश्वर के साथ एकता की प्राप्ति के रूप में होती है।

मोक्ष के सिद्धांत:-

  • आत्मा की मुक्ति: मोक्ष का उद्देश्य आत्मा को कर्मों के बंधन से मुक्त करना है।
  • परमेश्वर के साथ एकता: मोक्ष में व्यक्ति की आत्मा परमेश्वर के साथ एकता की प्राप्ति करती है।
  • जन्म, मृत्यु और पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति: मोक्ष में व्यक्ति जन्म, मृत्यु और पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त हो जाता है।

मोक्ष के मार्ग:

  • ज्ञान मार्ग: ज्ञान मार्ग में व्यक्ति वेदों और उपनिषदों के अध्ययन के माध्यम से मोक्ष की प्राप्ति करता है।
  • भक्ति मार्ग: भक्ति मार्ग में व्यक्ति परमेश्वर की भक्ति के माध्यम से मोक्ष की प्राप्ति करता है।
  • कर्म मार्ग: कर्म मार्ग में व्यक्ति अपने कर्मों के माध्यम से मोक्ष की प्राप्ति करता है।

मोक्ष के महत्व:

  • आत्मा की मुक्ति: मोक्ष आत्मा को कर्मों के बंधन से मुक्त करता है।
  • परमेश्वर के साथ एकता: मोक्ष में व्यक्ति की आत्मा परमेश्वर के साथ एकता की प्राप्ति करती है।
  • शांति और सुख: मोक्ष में व्यक्ति शांति और सुख की प्राप्ति करता है।

मोक्ष स्मार्त संप्रदाय का परम लक्ष्य है, जो व्यक्ति को जन्म, मृत्यु और पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति दिलाता है। मोक्ष के सिद्धांत, मार्ग और महत्व व्यक्ति को आत्मा की मुक्ति और परमेश्वर के साथ एकता की प्राप्ति में मदद करते हैं।

स्मार्त संप्रदाय के प्रमुख ग्रंथ

स्मार्त संप्रदाय के प्रमुख ग्रंथ:स्मार्त संप्रदाय के प्रमुख ग्रंथ वेदों, उपनिषदों, भगवद्गीता, ब्रह्मसूत्र और स्मृति ग्रंथों पर आधारित हैं। ये ग्रंथ स्मार्त संप्रदाय के दर्शन, धर्म और आध्यात्मिक मार्गदर्शन के लिए महत्वपूर्ण हैं:

वेद:- वेद स्मार्त संप्रदाय के सबसे प्राचीन और पवित्र ग्रंथ हैं। वेदों में चार प्रमुख वेद हैं:- ऋग्वेद: इसमें देवताओं की स्तुति और ज्ञान के सिद्धांत हैं।- यजुर्वेद: इसमें यज्ञ और हवन के विधान हैं।- सामवेद: इसमें संगीत और ध्वनि के सिद्धांत हैं।- अथर्ववेद: इसमें जादू-टोना और आध्यात्मिक सिद्धांत हैं।

उपनिषद:- उपनिषद वेदों के अंत में रखे गए हैं और इनमें आध्यात्मिक ज्ञान के सिद्धांत हैं। उपनिषदों में 108 प्रमुख उपनिषद हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं:- चांदोग्य उपनिषद- तैत्तिरीय उपनिषद- ऐतरेय उपनिषद- बृहदारण्यक उपनिषद।

भगवद्गीता:- भगवद्गीता भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए उपदेश का संग्रह है। इसमें कर्म, धर्म और मोक्ष के सिद्धांत हैं। भगवद्गीता में 18 अध्याय हैं और इसमें 700 श्लोक हैं।

ब्रह्मसूत्र:- ब्रह्मसूत्र वेदांत दर्शन का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है। इसमें 555 सूत्र हैं और इसमें ब्रह्म, आत्मा और जगत के सिद्धांत हैं। ब्रह्मसूत्र की व्याख्या करने वाले कई आचार्य हुए हैं, जिनमें आदि शंकराचार्य प्रमुख हैं।

स्मृति ग्रंथ:- स्मृति ग्रंथ वेदों के आधार पर लिखे गए हैं और इनमें धर्म, कर्म और आध्यात्मिक मार्गदर्शन के सिद्धांत हैं। स्मृति ग्रंथों में कुछ प्रमुख हैं:- मनुस्मृति- याज्ञवल्क्य स्मृति- अपरार्क स्मृति- व्यास स्मृतिइन ग्रंथों का अध्ययन करने से स्मार्त संप्रदाय के दर्शन, धर्म और आध्यात्मिक मार्गदर्शन की गहरी समझ मिलती है।

स्मार्त संप्रदाय के प्रमुख आचार्य:

स्मार्त संप्रदाय के प्रमुख आचार्यों ने वेदांत दर्शन की व्याख्या करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। ये आचार्य अपने ज्ञान, आध्यात्मिक अनुभव और लेखन के माध्यम से स्मार्त संप्रदाय को आगे बढ़ाने में मदद की है:

आदि शंकराचार्य (788-820 ईस्वी):- आदि शंकराचार्य स्मार्त संप्रदाय के सबसे प्रमुख आचार्य हैं। उन्होंने अद्वैत वेदांत की स्थापना की और वेदांत की व्याख्या करने वाले कई ग्रंथ लिखे। उनके प्रमुख ग्रंथ हैं:- ब्रह्मसूत्र भाष्य- भगवद्गीता भाष्य- उपनिषद भाष्य

रामानुजाचार्य (1017-1137 ईस्वी):- रामानुजाचार्य ने विशिष्टाद्वैत वेदांत की स्थापना की। उन्होंने भगवद्गीता और ब्रह्मसूत्र पर अपनी व्याख्या लिखी। उनके प्रमुख ग्रंथ हैं:- श्री भगवद्गीता भाष्य- श्री ब्रह्मसूत्र भाष्य- वेदार्थ संग्रह

मध्वाचार्य (1238-1317 ईस्वी):- मध्वाचार्य ने द्वैत वेदांत की स्थापना की। उन्होंने भगवद्गीता और ब्रह्मसूत्र पर अपनी व्याख्या लिखी। उनके प्रमुख ग्रंथ हैं:- भगवद्गीता भाष्य- ब्रह्मसूत्र भाष्य- अनुभव सार।

निम्बार्काचार्य (1162-1333 ईस्वी):- निम्बार्काचार्य ने द्वैताद्वैत वेदांत की स्थापना की। उन्होंने भगवद्गीता और ब्रह्मसूत्र पर अपनी व्याख्या लिखी। उनके प्रमुख ग्रंथ हैं:- भगवद्गीता भाष्य- ब्रह्मसूत्र भाष्य- वेदांत कामधेनु

वल्लभाचार्य (1479-1531 ईस्वी):- वल्लभाचार्य ने शुद्धाद्वैत वेदांत की स्थापना की। उन्होंने भगवद्गीता और ब्रह्मसूत्र पर अपनी व्याख्या लिखी। उनके प्रमुख ग्रंथ हैं:- भगवद्गीता भाष्य- ब्रह्मसूत्र भाष्य- श्री सुबोधिनी।

इन आचार्यों के लेखन और उपदेशों ने स्मार्त संप्रदाय को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

स्मार्त संप्रदाय का महत्व:

  • हिंदू धर्म की एकता और समरसता को बढ़ावा देना।
  • वेदों और उपनिषदों के अध्ययन और अनुसंधान को प्रोत्साहित करना।पंचायतन पूजा के माध्यम से देवताओं की पूजा को प्रोत्साहित करना।
  • कर्म और धर्म के महत्व को समझाना।
  • मोक्ष की प्राप्ति के लिए मार्गदर्शन करना।

निष्कर्ष

स्मार्त संप्रदाय हिंदू धर्म की एक महत्वपूर्ण शाखा है, जो एकेश्वरवाद, पंचायतन पूजा, कर्म और धर्म, और मोक्ष के सिद्धांतों पर आधारित है। इस संप्रदाय के प्रमुख ग्रंथ और आचार्य हिंदू धर्म के इतिहास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

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