छात्र आंदोलन और महात्मा गांधी की भूमिका भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण अध्याय है। गांधी जी ने छात्र शक्ति को समझा और इसे स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण हथियार के रूप में प्रयोग किया। उनके नेतृत्व में छात्र आंदोलन ने भारतीय समाज में जागरूकता फैलाने और अंग्रेजी हुकूमत को चुनौती देने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
गांधी जी का दृष्टिकोण और छात्रों की भागीदारी
महात्मा गांधी ने छात्रों को भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना। वे मानते थे कि छात्र समाज का एक जागरूक और ऊर्जावान वर्ग है, जो राष्ट्र निर्माण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। उन्होंने छात्रों को स्वराज्य की लड़ाई में शामिल होने के लिए प्रेरित किया और उन्हें अहिंसा, सत्य और सत्याग्रह के मार्ग पर चलने के लिए प्रोत्साहित किया।
गांधी जी का मानना था कि शिक्षा का उद्देश्य केवल नौकरी प्राप्त करना नहीं होना चाहिए, बल्कि इससे समाज की सेवा करनी चाहिए। इसीलिए उन्होंने छात्रों को अपने अध्ययन के साथ-साथ समाज सेवा के कार्यों में भी शामिल होने का आह्वान किया। उनका कहना था कि अगर देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ है, तो ऐसे में पढ़ाई का कोई अर्थ नहीं है। इस विचारधारा ने छात्रों को स्वतंत्रता आंदोलन की ओर आकर्षित किया और उन्होंने बड़ी संख्या में स्वदेशी आंदोलन, असहयोग आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया।
असहयोग आंदोलन और छात्रों की भूमिका
1920 में महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन की शुरुआत की, जिसमें छात्रों की भागीदारी अद्वितीय थी। गांधी जी के आह्वान पर हजारों छात्रों ने सरकारी स्कूलों और कॉलेजों का बहिष्कार किया और स्वदेशी शिक्षा संस्थानों की स्थापना की। यह आंदोलन छात्रों के लिए एक बड़ा प्लेटफॉर्म बना, जिसमें उन्होंने अंग्रेजी शासन के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की। इस आंदोलन ने ब्रिटिश सरकार को हिलाकर रख दिया और छात्रों की संगठित शक्ति को पहली बार इतने बड़े पैमाने पर देखा गया।
सविनय अवज्ञा आंदोलन और छात्र
1930 के दशक में जब महात्मा गांधी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत की, तब भी छात्रों ने सक्रिय रूप से भाग लिया। गांधी जी ने जब नमक सत्याग्रह के माध्यम से ब्रिटिश कानूनों का उल्लंघन करने का आह्वान किया, तो छात्रों ने विभिन्न आंदोलनों में शामिल होकर इस कानून का विरोध किया। वे न केवल रैलियों और धरनों में शामिल हुए, बल्कि ब्रिटिश संस्थानों और वस्त्रों का भी बहिष्कार किया। इस आंदोलन में छात्रों की भागीदारी ने उन्हें एक सामाजिक और राजनीतिक चेतना से भर दिया, जो भविष्य के नेताओं के रूप में विकसित हुए।
भारत छोड़ो आंदोलन और छात्र आंदोलन
1942 में जब महात्मा गांधी ने “करो या मरो” का नारा देकर भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की, तो छात्रों ने इस आंदोलन में बड़े पैमाने पर भाग लिया। इस आंदोलन के दौरान, छात्रों ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ खुलकर विद्रोह किया। उन्होंने भूमिगत संगठनों का निर्माण किया, गुप्त संदेशों का आदान-प्रदान किया, और कई जगहों पर विद्रोही गतिविधियों का नेतृत्व किया। इस समय, छात्र आंदोलन ने एक क्रांतिकारी रूप ले लिया और छात्रों ने बड़े पैमाने पर गिरफ्तारी, लाठीचार्ज और गोलियों का सामना किया। गांधी जी ने इस आंदोलन के दौरान छात्रों की साहस और समर्पण की सराहना की और उन्हें राष्ट्र की स्वतंत्रता की दिशा में योगदान करने के लिए प्रेरित किया।
गांधी जी की शिक्षा और छात्र आंदोलन का प्रभाव
महात्मा गांधी की शिक्षा ने छात्रों को न केवल स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के लिए प्रेरित किया, बल्कि उनके चरित्र निर्माण और नैतिकता में भी सुधार किया। गांधी जी के सिद्धांतों पर आधारित शिक्षा ने छात्रों में आत्म-संयम, सत्य, अहिंसा और सेवा भाव को विकसित किया। उनके विचारों ने छात्रों को न केवल स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए प्रेरित किया, बल्कि उन्हें समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी का भी एहसास कराया।
महात्मा गांधी की भूमिका और छात्र आंदोलन का संबंध भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अत्यधिक महत्वपूर्ण है। गांधी जी ने छात्रों को जागरूक किया, उन्हें संगठित किया, और उन्हें एक उद्देश्यपूर्ण दिशा प्रदान की। उनके नेतृत्व में छात्र आंदोलन ने न केवल अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष किया, बल्कि समाज में एक नए परिवर्तन की नींव भी रखी। आज भी गांधी जी की शिक्षा और उनके सिद्धांत छात्रों के लिए प्रेरणास्रोत हैं, जो उन्हें एक बेहतर नागरिक और जिम्मेदार समाज सेवक बनने की दिशा में मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।