Saturday, November 16, 2024
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भारत पर ब्रिटिश शासन की शुरुआत: व्यापार से साम्राज्य तक का सफर

भारत पर ब्रिटिश सरकार की शुरुआत कई चरणों में हुई और यह प्रक्रिया लगभग दो शताब्दियों तक चली। इस अवधि में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का व्यापारिक संगठन से एक राजनीतिक शक्ति में रूपांतरण और अंततः ब्रिटिश साम्राज्य का प्रत्यक्ष शासन स्थापित हुआ। इस इतिहास को समझने के लिए हमें 1600 ई. से शुरू होने वाली घटनाओं पर ध्यान देना होगा

ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना और व्यापारिक शुरुआत

ब्रिटेन में 1600 ई. में महारानी एलिजाबेथ I ने ईस्ट इंडिया कंपनी को चार्टर प्रदान किया, जिससे उसे भारत और पूर्वी एशिया में व्यापार करने का विशेषाधिकार मिला। इस कंपनी का मुख्य उद्देश्य भारतीय उपमहाद्वीप से मसाले, रेशम, कपास, और अन्य मूल्यवान वस्तुओं का व्यापार करना था। 1615 में, सर थॉमस रो को मुग़ल सम्राट जहांगीर के दरबार में भेजा गया, जिसने कंपनी को भारत में व्यापार करने की अनुमति दी।

कंपनी ने भारत में अपने व्यापारिक ठिकानों की स्थापना की, जिनमें सूरत, मद्रास (वर्तमान चेन्नई), बंबई (मुंबई) और कलकत्ता (कोलकाता) शामिल थे। धीरे-धीरे, कंपनी ने अपने आर्थिक हितों की सुरक्षा के लिए सैन्य शक्ति का इस्तेमाल शुरू किया। इसके तहत स्थानीय शासकों के साथ संधियाँ की गईं और अपनी सुरक्षा के लिए ब्रिटिश सेना को भी संगठित किया गया।

राजनीतिक हस्तक्षेप की शुरुआत

18वीं शताब्दी में भारत में मुगल साम्राज्य कमजोर होने लगा, और इस दौरान विभिन्न प्रांतीय शासकों के बीच सत्ता संघर्ष बढ़ गया। इसी अवसर का लाभ उठाते हुए, ईस्ट इंडिया कंपनी ने स्थानीय राजाओं और नवाबों के साथ संबंध बनाना शुरू किया। यह कंपनी व्यापारिक मुनाफा बढ़ाने के लिए भारतीय राजनीति में हस्तक्षेप करने लगी। 1757 में हुए प्लासी के युद्ध में कंपनी ने नवाब सिराजुद्दौला को हराया। इसके बाद बंगाल में कंपनी का प्रभुत्व स्थापित हो गया, और यहीं से ब्रिटिश सरकार की स्थापना की प्रक्रिया तेज हो गई।

बक्सर का युद्ध और दीवानी का अधिकार

1764 में हुए बक्सर के युद्ध में ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल, अवध और मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय की संयुक्त सेना को हराया। इस विजय के बाद 1765 में मुगल बादशाह ने कंपनी को बंगाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी (राजस्व वसूलने का अधिकार) सौंप दी। इसके साथ ही कंपनी को वित्तीय संसाधनों पर अधिकार मिल गया और वह एक व्यापारिक संगठन से एक राजनीतिक शक्ति बन गई।

कंपनी का विस्तार और प्रशासनिक नियंत्रण

1773 में ब्रिटिश संसद ने रेग्युलेटिंग एक्ट पारित किया, जिसने ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन पर नियंत्रण स्थापित किया। इस अधिनियम के तहत बंगाल के गवर्नर-जनरल की नियुक्ति की गई, और वॉरेन हेस्टिंग्स को इस पद पर नियुक्त किया गया। यह कदम ब्रिटिश सरकार के भारत में प्रत्यक्ष हस्तक्षेप की शुरुआत थी। धीरे-धीरे, कंपनी ने भारत के विभिन्न हिस्सों में अपना प्रभाव बढ़ाया और मैसूर, मराठा, और सिखों के खिलाफ लड़ाइयों में विजय प्राप्त की। इन संघर्षों के बाद, लगभग पूरे भारत पर कंपनी का नियंत्रण हो गया।

1857 का विद्रोह और ब्रिटिश सरकार का प्रत्यक्ष शासन

ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन 1857 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के बाद समाप्त हो गया। इस विद्रोह को सिपाही विद्रोह या प्रथम स्वतंत्रता संग्राम भी कहा जाता है। इस विद्रोह के कारण कंपनी के प्रति भारतीयों में बढ़ते असंतोष का पता चलता है।

हालांकि यह विद्रोह असफल रहा, लेकिन इसने ब्रिटिश सरकार को ईस्ट इंडिया कंपनी के कार्यों की समीक्षा करने पर मजबूर कर दिया।इसके बाद 1858 में ब्रिटिश संसद ने गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट पारित किया, जिसके तहत भारत का शासन ईस्ट इंडिया कंपनी से छीनकर सीधे ब्रिटिश क्राउन को सौंप दिया गया। महारानी विक्टोरिया को भारत की सम्राज्ञी घोषित किया गया, और भारत में ब्रिटिश राज की शुरुआत हुई। लॉर्ड कैनिंग भारत के पहले वायसराय नियुक्त किए गए।

निष्कर्ष

भारत पर ब्रिटिश शासन का विस्तार एक लंबी और जटिल प्रक्रिया थी, जिसकी शुरुआत एक व्यापारिक कंपनी के रूप में ईस्ट इंडिया कंपनी के आगमन से हुई। मुगल साम्राज्य के पतन और क्षेत्रीय शासकों के बीच सत्ता संघर्षों ने कंपनी को राजनीतिक और सैन्य हस्तक्षेप करने का मौका दिया।प्लासी (1757) और बक्सर (1764) के युद्धों ने ब्रिटिशों को भारत में निर्णायक बढ़त दिलाई। इसके बाद कंपनी ने बंगाल और अन्य प्रांतों पर शासन करने का अधिकार प्राप्त किया और भारतीय अर्थव्यवस्था पर नियंत्रण कर लिया।

धीरे-धीरे, कंपनी का शासन एक व्यापारिक गतिविधि से हटकर राजनीतिक प्रभुत्व की ओर बढ़ने लगा। कंपनी ने अपनी सैन्य ताकत और कूटनीति के बल पर मैसूर, मराठा, सिख और अन्य क्षेत्रीय शक्तियों को हराकर लगभग पूरे भारत पर प्रभुत्व स्थापित कर लिया।हालांकि, 1857 के विद्रोह ने इस शासन के खिलाफ भारतीयों के असंतोष को प्रकट किया।

इस विद्रोह के बाद, ब्रिटिश सरकार ने ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन को समाप्त करके भारत को सीधे ब्रिटिश क्राउन के अधीन कर लिया।निष्कर्षतः, भारत पर ब्रिटिश शासन की स्थापना एक व्यापारिक संबंध से शुरू हुई और धीरे-धीरे यह एक औपनिवेशिक शासन में बदल गया, जिसका भारतीय समाज, राजनीति और अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ा।

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