Wednesday, November 27, 2024
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350 वर्ष पुराना भारत का एक ऐसा किला जिस पर कोई विजय प्राप्त नहीं कर सका

हमारे भारत का इतिहास हमारे देश का बच्चा-बच्चा जानता है और हमारे भारत का इतिहास पूरी दुनिया में मशहूर है। परंतु हमारे भारत के इतिहास के कुछ ऐसे पन्ने भी हैं, जिसके विषय में हमारे देश के बहुत से लोग जानते भी नहीं हैं। हमारे देश के भारतीय इतिहास में अधिकतर मुगलों, पुर्तगालियों और अंग्रेजों के विषय ही बताया गया है। हमारे भारत के बहुत से ऐसे गौरवशाली इतिहास के किस्से हैं जिनके विषय में बहुत ही कम चर्चा की गई है। जिसमें से एक किस्सा ‘जंजीरा किला’ भी है।

यह किला भारतीय इतिहास का गौरवशाली किला है, जिसका किस्सा भारत के बहुत कम ही लोग जानते हैं। यह किला 350 – 400 साल पुराना है। जिसकी बनावट और इसकी सुरक्षा के लिए किए गए इंतजाम इतने अच्छी थे की इस किले को कोई भी हमलावर जीत भी पाया। उस समय के इस किले की इंजीनियरिंग के आगे वर्तमान के अच्छे से अच्छे तकनीक भी फीके पड़ जाते हैं।

भारत का यह गौरवशाली किला महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले में मरूद नाम के गांव के पास बना हुआ है।यह किला चारों तरफ से अरब सागर से घिरा हुआ है। यह किला एक टापू के समान बना हुआ है। इस किले तक जाने के लिए सिर्फ एक ही रास्ता है, वह है पानी का रास्ता। इसकी सुरक्षा के बंदूबस्त भी इतने अच्छे बने हुए थे की इस किले पर कोई भी विजय प्राप्त नहीं कर सका। इस किले की बहुत सारी खासियत है। यह किला 22 एकड़ में फैला हुआ है।

इस किले की दीवारें 40 फीट ऊंची है इसके लिए मैं 19 बुर्ज से बने हुए हैं जिसमें से हर बुर्ज के बीच 90 फुट का अंतर है। बुर्ज यानी टावर जिसकी सहायता से इस किले की  निगरानी की जाती थी। इस किले की सुरक्षा के लिए 500 तोपों का इंतजाम रखा जाता था इन दोनों के लिए 26 टावर अलग से बनाए गए थे। इस किले के लिए तीन प्रवेश द्वार बनाए गए थे जो दूर से दिखाई ही नहीं देते थे क्योंकि उन प्रवेश द्वारों को दीवार की आड़ में बनाया जाता था जिसके कारण हमलावरों को इस किले में प्रवेश करने के लिए प्रवेश द्वार मिलती ही नही थी। इस किले की कारीगरी इतनी सुंदर थी कि हमलावरों को हमला करने के लिए पहले बहुत ही ज्यादा विचार विमर्श करने की आवश्यकता होती थी। ऐसा इसलिए क्योंकि एक तो यह किला तटीय इलाकों से बहुत दूर था और समुद्र से चारों तरफ से घिरा हुआ है, यहां जाने का साधन केवल नाव और जहाज ही हो सकते हैं। इसके अलावा और कोई साधन ही नहीं था जो इस किले तक पहुंचा सके। कड़ी मशक्कत के बाद अगर कोई हमलावर इस किले तक पहुंच भी जाए तो इस किले के अंदर प्रवेश नहीं कर पाता था। क्योंकि इस किले का प्रवेश द्वार दूर से दिखाई ही नहीं देता है और हर प्रवेश द्वार पर निगरानी के लिए सेना हमेशा तैयार रहती थी।

   पुराने समय में जंजीरा किले के अंदर 550 से अधिक परिवार बसे हुए थे। इस किले के अंदर मोहल्ले भी बनाए हुए थे। इन मोहल्लों में लोगों को उनके पदानसार विभाजित किया गया था। इस किले में विद्यालय भी बनाए गए थे और यहां के लोग यहीं पर खेती भी किया करते थे।

इस किले के अंदर ही पूरा शहर बसा हुआ था। इस शहर के निवासियों के लिए हर तरह की सुविधाओं की व्यवस्था की गई थी। किले के अंदर दो मीठे पानी की झील भी बनाई गई थी, ताकी लोगों को पीने के पानी की कठिनाई न झेलनी पड़े। आश्चर्य की बात तो यह है कि समुद्र के बीचों बीच होने के बाद भी इस किले के अंदर मीठे पानी की झील कैसे बनाई गई थी। क्योंकि समुद्र का पानी तो खारा होता है। इस किले के अंदर की व्यवस्था आज की सोसाइटी की व्यवस्था के जैसी थी। जैसे आज की सोसाइटी में प्लेग्राउंड, मार्केट, स्कूल आदि सुविधाएं सोसाइटी के अंदर ही मिल जाती है। परंतु यह  किला तो 350 – 400 साल पुराना है। इसकी इन्हीं सब खासियतों से ही तो हमारे भारत के  इतिहास के बुद्धिमान अभियंताओं (इंजिनियर) की अभियांत्रिकी (इंजीनियरिंग) का पता चलता है। इस किले की सबसे बड़ी खासियत यहां की सुरक्षा व्यवस्था थी।

एक तो इस किले का दरवाजा ही इस तरह से बनाया गया था कि दूर से किसी व्यक्ति को दिखता ही नहीं था। इस किले के अंदर व बाहर जाने वालों के लिए गेट पास जारी किया जाता था, जैसे वर्तमान समय में किसी भी सुरक्षित जगहों पर जाने के लिए किया जाता है। इस किले के बाहर जाने के लिए अगर किसी व्यक्ति को आवश्यकता पड़ती थी तो उसे बाहर जाने से पहले प्रवेश द्वार पर एक मोहर दी जाती थी, जो कि एक गेटपास का काम करती थी और लौटते समय इस मोहर को देखने के बाद ही उस व्यक्ति को किले में पुनः प्रवेश करने की इजाजत मिलती थी। अगर किसी व्यक्ति से यह मोहर खो जाती थी और अगर वह व्यक्ति दोबारा किले में प्रवेश करना चाहता था तो प्रवेश करने नहीं दिया जाता था तो। उसे प्रवेश द्वार पर ही मार दिया जाता था, क्योंकि अगर किसी व्यक्ति को बिना मोहर के किले में घुसने दिया जाता तो उससे  किले के सुरक्षा नियमों का उल्लंघन होता था। इस किले का नि

र्माण इस प्रकार से किया गया था कि यहां के निवासियों को किसी भी तरह की परेशानी ना हो यहां पर जनता की सुविधाओं के लिए अच्छी खेती का इंतजाम था, मीठे पानी की झील थी आदि बहुत सी सुविधाएं थी। इस किले के विषय पर विचार करने वाली बात तो यह है कि समुद्र के बीचो-बीच इस किले के निर्माण के लिए कच्चे माल को इस स्थान तक कैसे पहुंचाए गए होंगे। दूसरा की  यहां की सुरक्षा के लिए जो भरी भरकम तोप हैं उसे किले में कैसे लाए गए होंगे। सबसे आश्चर्य की बात तो यह है की  इन तोपों को यहां लाने के बाद 40 फीट की ऊंचाई तक कैसे पहुंचाया गया होगा। इसकी  इतनी सख्त सुरक्षा और बादुबस्त ही था जो इसके अभेद्य होने का इतिहास बना , जिसपर कोई भी हमलावर जीत हासिल नही कर पाया।

   इस किले का निर्माण क्यों किया गया इसका इतिहास भी बहुत ही रोचक है, जिसे जानकर आप आश्चर्यचकित रह जायेंगे। इसके निर्माण करने की बुनियाद 15वीं  शताब्दी में रखी गई थी। इस किले का निर्माण मछुआरों के राजा रामराव पाटिल ने करवाया था। महाराष्ट्र के रायगढ़ के मरुद गांव के पास कुछ मछुआरे रहते थे, जिसके राजा रामराव पाटील थे। मछुआरों के राजा रामराव पाटिल ने अपनी बस्ती को लुटेरों से बचाने के लिए किले की योजना बनाई थी।इस किले के निर्माण के लिए रामराव पाटिल ने अहमदनगर के सुल्तान निजाम खान से इजाजत ली थी। रामराव पाटिल ने निजाम की इजाजत के बाद समुद्र के किनारे से कुछ दूर जाकर लकड़ी का किला बनवाया और उसे मेधेकोट नाम दिया गया। जब इस किले का निर्माण पूरा हो गया तब अहमदनगर के सुल्तान निजाम की नजर इस किले पर पड़ी और उसने रामराव पाटिल  को किले को खाली करने का आदेश दिया पर रामराव पाटिल ने इसे खाली करने से साफ इनकार कर दिया। जो  सुल्तान निजाम को बहुत ही ज्यादा बुरी लगी और उसने इस किले को भेदने की योजना बनाई। जिसके बाद उसमें अपने सेनापति पिरम खान को इस किले को खाली करवाने का आदेश दिया। परंतु पिरम खान और उसकी सेना इस किले को भेद ही नहीं पाए।

क्योंकि इस किले की सुरक्षा के इंतजाम बहुत सख्त थे। जिसके कारण उनको किले में प्रवेश करने का मौका ही नहीं मिला। जब पीरम खान के लाख कोशिशों के बाद व किले में प्रवेश नहीं कर पाया तब उसने एक चाल चली। वीरम खान और उसकी सेना एक शराब व्यापारी बनकर उसके लिए के बाहर डीलर डाल कर बैठ गई और रामराव पाटिल के लिए कुछ शराबी के बेरम (डब्बे) अंदर भिजवाए और यह शराब रामराव पाटील को बहुत पसंद आई। रामराव पाटिल ने पिरम खान और उसकी सेना को शराब व्यापारी मान लिया। जब रामराव पाटिल को यह शराब पसंद आया तब पीरम खान ने इस किले को अंदर से देखने की इच्छा उसके समक्ष रखी तब रामराव पाटिल ने पिराम खान की इस बात को मान लिया और उसने पीरम खान को शराब व्यापारी समझकर अंदर आने का आदेश दे दिया। जिसके बाद पीराम खान शराब के कुछ बेरम के साथ किले के अंदर चला गया जिसके कुछ बेरम में शराब थी और कुछ बैरम में उसकी सेना छुपी हुई थी। उस रात जब रामराव पाटिल और उसकी सेना शराब के नशे में धुत्त थी तब पीरम खान ने इस किले पर हमला बोल दिया और इस पर जीत हासिल कर ली जिसके बाद यह किला निजाम के कब्जे में हो गया। परंतु सुल्तान निजाम ने अपने सेनापति वीरम खान की जगह दूसरे सेनापति बुरहान खान को सेनापति बना कर इस किले में भेज दिया जिसके बाद बुरहान खान ने इस किले को पत्थरों का बनवाया जब बुरहान खान ने रामराव पाटिल के इस किले को पत्थरों से और मजबूत बनवा दिया।

तब सुल्तान निजाम को यह खबर लगी कि यह किला उसके लिए बहुत ही ज्यादा जरूरी है क्योंकि उस समय में गुजरात, दमन और बेंगलुरु में व्यापार करने का समुंद्री केंद्र जंजीरा किला था। जंजीरा किला अफका और खाड़ी देशों का व्यापार इसी मार्ग से होता था और यूरोप से भी व्यापारी इसी मार्ग से सबसे पहले जंजीरा किला ही आते थे। अफ्रीका के यूथोपिया से आए व्यापारियों को सिद्धि कहा जाता था 15वीं शताब्दी में सुल्तान निजाम ने रामराव पाटील से इस किले को जीतने के बाद एक सिद्धि व्यापारिक को ही इस किले का कमांडर बना दिया जिसके बाद इस किले की शासन व्यवस्था 1947 तक सिद्धियों के अधीन ही रही जिसके बाद जब भारत को आजादी मिली तब यह भारत सरकार के अधिकार क्षेत्र में आ गया महाराष्ट्र के छत्रपति शिवाजी भी इस किले के महत्व को समझते थे, जिसके कारण उन्होंने इस किले को जीतने के लिए तीन बार प्रयास किए पर छत्रपति शिवाजी इस किले की दीवार लंबी होने के कारण वह इस किले को जीत नहीं पाए। छत्रपति शिवाजी के बाद उनके पुत्र संभाजी महाराज ने इस किले को जीतने का प्रयास किया।

उन्होंने विचार बनाया कि इस किले पर सुरंग के माध्यम से प्रवेश किया जाएगा जिसके लिए उन्होंने इस किले के पास पद्मदुर्ग नाम का एक और किला बनवाया। उन्होंने ऐसा सोचा कि पानी के अंदर ही अंदर सुरंग बनाकर इस किले में प्रवेश कर लिया जाएगा।  लेकिन ऐसा हो नहीं पाया क्योंकि जंजीरा किले की नींव पानी ने इतनी गहराई तक थी कि इस किले में सुरंग के लिए छेद ही नहीं किया जा सका। यह कितने आश्चर्य की बात है कि इतने पुराने समय में भी इस किले कि नीव पानी के बहुत ही गहराइयों तक बनाई गई थी और इतनी मजबूत बनाई गई थी कि सभी प्रयासों के बाद भी कोई इस किले को भेद नहीं पाया।

इन सभी के प्रयासों से और इनके योजनाओं से प्रेरणा लेकर मराठों ने एक योजना बनाई जिससे मराठों ने आखिरकार इस किले पर जीत हासिल कर ली। साल 1736 में पेशवा बाजीराव प्रथम ने जंजीरा पर हमले के लिए एक योजना बनाई।

जिसके बाद चीवाजीराव अप्पा के नेतृत्व में मराठों ने जंजीरा किले पर हमला किया और

 मराठा सेना ने सिद्धियों को हराया और किले के अंदर प्रवेश करने में सफल हो गए। परंतु किले को जीतने के बाद भी मराठों का अधिकार जंजीरा किले पर नहीं हो पाया क्योंकि किले को जीतने के बाद मराठों ने सिद्धियों  के साथ एक शांति संधि कर ली,  जिसके तहत उन्होंने यह किला सिद्धियों को वापस कर दिया। अगर देखा जाए तो इस हादसे से किले के अभेद्य रहने का इतिहास बरकरार रहा। यह किला ऐसा है जिसे जीतकर भी नहीं जीता जा सकता है। उस समय में कहा जाता था कि शिवाजी महाराज जो ठानते हैं, उसे पूरा करके रहते हैं। इसलिए शिवाजी महाराज ने जब इस किले को जीतने की सोची थी तो मराठा सेना ने इसे जीत कर ही दम लिया। मराठा सेना के इस किले को जीतने के बाद सिद्धियों को वापस कर दिया। लेकिन इस किले पर हमले की कहानी रुकी नहीं थी। इस किले पर भारत आए बहुत से विदेशियों ने भी अपनी भारी-भरकम सेना के साथ इस पर हमला किया पर किले पर जीत हासिल नहीं कर पाए। यहां तक कि भारत आए  पुर्तगालियों ने भी इसको हासिल करने के लिए इस पर हमला किया और जीतने के प्रयास किए पर किले को जीत नहीं पाए। इसलिए इस किले को स्थानीय लोगों द्वारा अजिंक्य किला कहा जाता है, जिसका अर्थ है जिसे कभी नहीं जीता जा सकता है।
 लेकिन आश्चर्य की बात तो यह है कि इस किले की बनावट और इसकी सुरक्षा व्यवस्था इतनी अच्छी थी किस सुल्तान निजाम से लेकर अंग्रेजों तक भी इस किले पर  कोई विजय प्राप्त नहीं कर सका। आश्चर्य की बात यह भी है कि हमारे देश के सुंदर और गौरवशाली इतिहास को हमारे देश के बहुत से लोग नहीं जानते ही नहीं है। हमारे देश के इतिहास में तो मुगलों और अंग्रेजों की कहानियां ज्यादातर बताई जाती है पर हमारे खुद के गौरवशाली इतिहास का वर्णन भारतीय इतिहास में बहुत कम है।
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