हमारे देश के बापू महात्मा गांधी जी ने गुजरात के एक सामान्य परिवार में जन्म लेकर भी अपने असाधारण कर्मों एवं अहिंसावादी विचारों से पूरे विश्व की मानसिकता बदल दी। उन्होंने सत्य एवं अहिंसा के विचारों को आत्मसात कर सम्पूर्ण जीवन मानवता के कल्याण के लिए समर्पित कर दिया था। आज़ादी एवं शांति की स्थापना ही उनके जीवन का एक मात्र लक्ष्य था। गाँधी जी द्वारा स्वतंत्रता और शांति के लिए शुरू की गई इस लड़ाई ने भारत और दक्षिण अफ्रीका में कई ऐतिहासिक आंदोलनों को एक नई दिशा प्रदान की थी। उन्होंने सादगी, निर्लिप्तता, और आत्मा के साथ संबंध को महत्वपूर्ण धारणाओं में जिया। गाँधी जी अहिंसा के प्रति कट्टर विचारधारा रखते थे और उनका मानना था कि न्याय तथा स्वतंत्रता के संघर्ष में यह उनका सबसे शक्तिशाली हथियार है।
उनका यह भी मानना था कि अहिंसा जीवन का एक अभिन्न अंग होना चाहिये, न कि केवल एक राजनीतिक रणनीति, जो हमें स्थायी शांति एवं सामाजिक सद्भाव की ओर ले जाएगी। उनके जीवन और चिंतन का सबसे महत्त्वपूर्ण पक्ष साध्य और साधन की पवित्रता थी। उनका दृढ़ विश्वास था कि पश्चिमी सभ्यता मनुष्य को उपभोक्तावाद का रास्ता दिखा कर नैतिक पतन की ओर ले जाती है; नैतिक उत्थान सदैव आत्मसंयम और त्याग की भावना की मांग करता है। चंपारण आंदोलन(1917), खेड़ा सत्याग्रह(1918), अहमदाबाद मिल हड़ताल(1918) में सफल नेतृत्व की बदौलत गाँधी जी भारत आगमन के चार सालों के अंदर ही प्रभावशाली राष्ट्रीय नेता के तौर पर उभरने लगे थे। उनकी नैतिकतावादी भाषा, जटिल व्यक्तित्व, स्पष्ट दृष्टि, सांस्कृतिक प्रतीकों का उपयोग, आचरण और असाधारण आत्मविश्वास ने जन-जन को आकर्षित और प्राभावित करती थी।
असहयोग आंदोलन(1920), सविनय अवज्ञा आंदोलन(1930) और भारत छोड़ो आंदोलन(1942) जैसे आंदोलनों से भारतीय जनता का ब्रिटिश उपनिवेशवादी सत्ता के प्रति आक्रोश को अभिव्यक्त करने का हथियार बना। आजादी के आंदोलन में सर्व सामान्य लोगों को सहभागी होने के लिए उन्होंने चरख़ा जैसा सहज उपलब्ध साधारण से साधन और सत्याग्रह जैसा सहज स्वीकार्य तरीका दिया। ग्राम स्वराज्य, स्वदेशी, गौरक्षा, अस्पृश्यता निर्मूलन आदि विषय भारत के मूलभूत चिंतन से उनका लगाव उनकी भारत को जड़ों से जुड़े होने का प्रदर्शन कृत है, यह विचारधारा उनके पूरे जीवन भर रही।
गांधीजी ने कहा था कि,”मैं एक ऐसे भारत का निर्माण करने का प्रयास करूंगा जिसमें सबसे गरीब व्यक्ति भी महसूस करेगा कि यह उनका देश है और मैं इसके निर्माण में पूरी तरह से शामिल हूं।” उनका मानना था कि स्वराज लोकतंत्र और जनमत पर आधारित होना चाहिए। गॉंधीजी की स्वराज की अवधारणा व्यापक थी, जिसमें न केवल विदेशी शासन से राजनीतिक स्वतंत्रता, बल्कि सांस्कृतिक और नैतिक स्वायत्तता भी सम्मिलित थी। गांधी का स्वराज गरीबों की भलाई पर केंद्रित था और ग्राम स्वराज के माध्यम से सत्ता के विकेंद्रीकरण को बढ़ावा देता था और आज भी यह विचारधारा कायम है। उन्होंने सर्वोदय का समर्थन किया, जिसका लक्ष्य सभी का कल्याण है।
गांधी जी ने 1920 में भारत में वयस्क मताधिकार पर आधारित संसदीय शासन की आवश्यकता पर अपना विश्वास व्यक्त किया, जिसे उन्होंने “मेरा स्वराज” कहा। उन्होंने राजनीति, समाज, अर्थव्यवस्था और शिक्षा सहित जीवन के विभिन्न पहलुओं में ब्रिटिश प्रभाव का विरोध करने के लिए एक आंदोलन के रूप में स्वराज की कल्पना की। सांस्कृतिक दृष्टिकोण से, गॉंधी जी ने एक सुरक्षित और स्वतंत्र पहचान के महत्व पर जोर दिया, जहां विविध विचार स्वतंत्र रूप से प्रवाहित हो सकें और स्थिरता और हानी को रोक सकें।
आजादी के पश्चात् भारत ने प्रत्येक क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है। आजादी के अमृतकाल में भारत आर्थिक और बौद्धिक महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर है। भारत की आजादी के उपरांत विश्व में हुए अनेकों अहिंसक आंदोलन के प्रेरणास्रोत गाँधी जी रहे हैं। गांधी जी ने विश्व को अहिंसा की राह पर चलते हुए अपने विचारों को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित किया। जी-20 शिखर सम्मेलन के अवसर पर विश्व के सभी शक्तिशाली राष्ट्रों के राष्ट्रध्यक्ष उनकी समाधि पर श्रद्धांजलि अर्पित करने पहुंचे, इससे यह परिलक्षित होता है कि गाँधी जी के विचार मानवता के कल्याण और विश्व बंधुत्व को बढ़ावा देने वाले और सर्व स्वीकार्य हैं।
आजादी के कई वर्षों पश्चात् भी भारत में शिक्षा, अर्थतंत्र, राजतंत्र, न्यायतंत्र इत्यादि में ‘स्व’ का तंत्र स्थापित होना शेष है। केंद्र सरकार द्वारा पारित राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का लक्ष्य भारत-केंद्रित, सामाजिक रूप से टिकाऊ, विपणन योग्य, लचीली और समय पर शिक्षा प्रदान करना है। यह नीति भारत को एक गौरवशाली राष्ट्र और वैश्विक नेता बनने की दिशा में आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। ब्रिटिश शासन से पहले, भारत दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक था। अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए आत्मनिर्भर व्यवसायों और गांवों के साथ-साथ सकल राष्ट्रीय योगदान को बढ़ावा देना जरूरी है। न्याय प्रणाली में भी सुधार, सभी वर्गों के लिए समानता सुनिश्चित करने और तुष्टिकरण की नीति पर नियंत्रण की आवश्यकता है। दृढ़ संकल्प और दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ गरीबी और बेरोजगारी दूर करने का प्रयास करना होगा।
प्रकृति के प्रति लोगों का भावनात्मक लगाव और त्याग बहुत महत्वपूर्ण है। प्रत्येक भारतीय को देश के सौंदर्यबोध और शक्तिबोध को बढ़ावा उठाने का हर संभव प्रयास करना चाहिए। जब प्रत्येक नागरिक राष्ट्र के लिए समर्पण, त्याग, वसुधैव कुटुंबकम और सर्वे भवन्तु सुखिनः के भाव को अपनाएगा, तभी ‘स्व’ के तंत्र और स्वराज की मूल भावना स्थापित होने पर बापू के सपनों के भारत की परिकल्पना सही अर्थों में पूरी होगी।