http://https//globalexplorer.in/महात्मा गांधी, इंग्लैंड में शिक्षा, आत्मसंयम और संघर्ष की यात्रा

महात्मा गांधी का इंग्लैंड में शिक्षा और संघर्ष एक प्रेरणादायक कहानी है, जो उनकी पूरी जीवन यात्रा और उनके व्यक्तित्व को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह कहानी केवल शिक्षा के बारे में नहीं है, बल्कि इसमें उनके जीवन के महत्वपूर्ण मोड़, आत्म-संयम की शिक्षा, पश्चिमी संस्कृति के साथ उनके संघर्ष, और एक मजबूत नैतिक आधार के विकास की भी कहानी छिपी हुई है।

प्रारंभिक पृष्ठभूमि और इंग्लैंड जाने का निर्णय

मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को पोरबंदर, गुजरात में हुआ था। उनका परिवार एक मध्यमवर्गीय व्यापारी और प्रशासनिक पृष्ठभूमि से था। गांधी जी के पिता, करमचंद गांधी, पोरबंदर के दीवान थे और उनकी माता पुतलीबाई धार्मिक प्रवृत्ति की थीं। गांधी जी के बाल्यकाल में ही उनकी शादी कस्तूरबा से हो गई थी, जो भारतीय समाज में उस समय की एक सामान्य प्रथा थी।

गांधी जी की प्रारंभिक शिक्षा राजकोट में हुई। उनके परिवार को उनसे बहुत उम्मीदें थीं और वे चाहते थे कि गांधी जी बड़े होकर एक सफल वकील बनें। जब गांधी जी के पिता का देहांत हो गया, तो परिवार पर आर्थिक जिम्मेदारियों का बोझ आ गया। इस समय उनके बड़े भाई लक्ष्मीदास ने उन्हें इंग्लैंड जाकर वकालत की पढ़ाई करने की सलाह दी। गांधी जी ने यह प्रस्ताव स्वीकार किया, लेकिन उनकी मां को इंग्लैंड भेजने के लिए सहमत करना एक बड़ी चुनौती थी। अंततः, पुतलीबाई ने इस शर्त पर अनुमति दी कि गांधी जी मांस, शराब और अनैतिकता से दूर रहेंगे।

इंग्लैंड का सफर और प्रारंभिक कठिनाइयाँ

1888 में, 19 वर्षीय गांधी जी इंग्लैंड गए। यह सफर उनके लिए कई मायनों में एक बड़ा परिवर्तन था। इंग्लैंड की संस्कृति, जीवनशैली और सामाजिक वातावरण भारत से बिल्कुल अलग था। लंदन पहुँचने के बाद, गांधी जी को कई प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। एक ओर, वे अपनी मां को दिए वचन को निभाने का प्रयास कर रहे थे, तो दूसरी ओर, वे इंग्लैंड की समाज और संस्कृति में खुद को ढालने की कोशिश कर रहे थे।

गांधी जी के शुरुआती दिन बहुत संघर्षपूर्ण रहे। उन्हें यह समझने में समय लगा कि अंग्रेजी जीवनशैली में ढलने के लिए कौन-कौन से समायोजन आवश्यक हैं। वे नए परिधान और खानपान के तरीकों से परेशान थे। उन्होंने एक बार मांसाहार का प्रयास किया, लेकिन जल्द ही उन्होंने इसे छोड़ दिया और शाकाहार पर दृढ़ता से टिके रहे। उनका यह निर्णय इंग्लैंड में उनके लिए एक नैतिक और सांस्कृतिक संघर्ष का कारण बना, क्योंकि उस समय शाकाहार बहुत ही अल्पसंख्यक था और इस पर अक्सर लोग हंसते थे।

शाकाहार और आत्म-संयम का विकास

इंग्लैंड में गांधी जी ने शाकाहारी समाजों के साथ जुड़कर अपने शाकाहार को और मजबूती दी। वे शाकाहार से संबंधित पुस्तकों और लेखों को पढ़ते रहे और अपने विचारों को विस्तार दिया। उन्होंने “लंदन वेजिटेरियन सोसाइटी” के कुछ आयोजनों में भाग लिया और उस समय के प्रमुख शाकाहारी नेताओं से मिले, जिन्होंने उन्हें गहनता से प्रेरित किया। इस अनुभव ने गांधी जी को आत्म-संयम और अनुशासन के महत्व का गहरा बोध कराया।इंग्लैंड में शाकाहार का पालन करने से उन्हें आत्मनियंत्रण की शिक्षा मिली और यह उनके जीवन के बड़े सिद्धांतों में से एक बन गया। यहां पर ही उन्होंने आत्मशुद्धि और आत्मानुशासन के मार्ग को अपनाना शुरू किया, जो आगे चलकर उनके सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों का आधार बना।

शिक्षा और अध्ययन

गांधी जी ने इंग्लैंड के “इनर टेम्पल” में कानून की पढ़ाई के लिए दाखिला लिया। यहां पर उन्हें अंग्रेजी कानून और विधि की गहनता से शिक्षा मिली। उनके अध्ययन का उद्देश्य केवल एक सफल वकील बनना नहीं था, बल्कि वे न्याय और नैतिकता के गहरे अर्थों को भी समझने का प्रयास कर रहे थे।गांधी जी का जीवन बहुत साधारण और अनुशासित था। वे ज्यादातर समय पढ़ाई में लगाते थे और उन्होंने कभी भी अनावश्यक शानो-शौकत या विलासिता में समय व्यर्थ नहीं किया। हालांकि इंग्लैंड में रहने वाले अन्य भारतीय छात्रों के मुकाबले उनका जीवन बहुत ही सरल और मर्यादित था, लेकिन उन्होंने कभी किसी को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया।

संघर्ष और आत्म-साक्षात्कार

गांधी जी के लिए इंग्लैंड में अध्ययन का समय केवल शिक्षा का नहीं, बल्कि आत्म-साक्षात्कार और आत्ममंथन का भी समय था। उन्होंने देखा कि अंग्रेजी समाज में नस्लभेद और सामाजिक अन्याय गहरे रूप से व्याप्त थे। इसने उनके अंदर एक प्रकार की संवेदनशीलता और न्याय के प्रति जागरूकता पैदा की। हालांकि गांधी जी का यह संघर्ष प्रारंभिक रूप से बाहरी संघर्ष नहीं था, बल्कि यह उनके अंदर चलने वाला नैतिक और सांस्कृतिक संघर्ष था।

गांधी जी ने अपने समय का उपयोग न केवल विधिक शिक्षा प्राप्त करने में किया, बल्कि उन्होंने स्वयं को एक आध्यात्मिक और नैतिक व्यक्ति के रूप में विकसित करने का भी प्रयास किया। वे योग, ध्यान और आत्म-चिंतन में लगे रहते थे। यह समय उनके लिए एक प्रकार की तैयारी का समय था, जो आगे चलकर उन्हें एक महात्मा के रूप में प्रतिष्ठित करेगा।

इंग्लैंड से भारत वापसी

1891 में, तीन साल की शिक्षा के बाद, गांधी जी ने इंग्लैंड से वकालत की डिग्री प्राप्त की और भारत वापस लौटे। इंग्लैंड में बिताए गए यह तीन साल उनके जीवन के सबसे महत्वपूर्ण वर्षों में से एक थे। इन वर्षों ने न केवल उन्हें एक सफल वकील बनाया, बल्कि उनके जीवन को एक नया दृष्टिकोण और दिशा दी।

इंग्लैंड में गांधी जी ने जो अनुभव और शिक्षा प्राप्त की, उसने उनके विचारों को गहराई और व्यापकता दी। उन्होंने पश्चिमी संस्कृति की अच्छाइयों और बुराइयों को समझा और एक सशक्त नैतिक आधार के साथ भारत लौटे। इंग्लैंड में बिताए गए समय ने उनके व्यक्तित्व को बहुत ही सकारात्मक तरीके से प्रभावित किया, और यह अनुभव उनकी भविष्य की जीवन यात्रा के लिए मार्गदर्शक सिद्ध हुआ।

महात्मा गांधी का इंग्लैंड में शिक्षा और संघर्ष का अनुभव उनके जीवन का महत्वपूर्ण अध्याय है। यह अनुभव उन्हें आत्मसंयम, शाकाहार, नैतिकता और आत्म-साक्षात्कार की दिशा में ले गया। इंग्लैंड में उन्होंने केवल कानून की शिक्षा ही नहीं प्राप्त की, बल्कि अपने जीवन के मूल्यों और सिद्धांतों की नींव भी रखी। उनका यह संघर्ष और शिक्षा उन्हें एक महान नेता और स्वतंत्रता सेनानी के रूप में उभारा, जिन्होंने आगे चलकर सत्याग्रह और अहिंसा के माध्यम से भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी।गांधी जी के इंग्लैंड प्रवास से हमें यह सीख मिलती है कि संघर्ष और चुनौतियाँ व्यक्ति को मानसिक और आत्मिक रूप से मजबूत बनाती हैं। शिक्षा केवल पुस्तकों और डिग्री तक सीमित नहीं होती, बल्कि यह जीवन के अनुभवों और नैतिक विकास का भी हिस्सा होती है। गांधी जी का जीवन इस बात का प्रतीक है कि सच्ची शिक्षा वही है जो हमें एक बेहतर इंसान बनने में मदद करे।

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