वर्तमान समय में हमारे भारत पर बहुत बड़ा कर्ज चढ़ा हुआ है। जिसके बारे में कुछ विपक्षी दलों का मानना है कि प्रधानमंत्री मोदी के राज में भारत सबसे ज्यादा कर्ज में डूब गया है। विपक्षी दलों का मानना है कि अर्थव्यवस्था की इस अवस्था के जिम्मेदार मोदी सरकार के ‘आर्थिक कुप्रबंधन की नीति’ है। आइए जानते हैं कि ऐसा क्यों माना जा रहा है?
कांग्रेस द्वारा लगाए गए आरोप क्या हैं?
जून 2023 में कांग्रेस पार्टी ने यह दावा किया था कि मोदी सरकार ने भारत को सिर्फ नौ सालों के अंदर तीन गुना अधिक कर्जे में डुबा दिया है।
पिछले वर्ष जून 2023 को जब मोदी सरकार अपने नौ वर्ष पूर्ण होने का जश्न मना रही थीं और मोदी सरकार के कैबिनेट मंत्री, बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्री , पार्टी कार्यकर्ता देश के सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में सरकार की उपलब्धियों के बारे में भी बता रही थीं।
इसी जश्न पर कांग्रेस की प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेता ने कहा कि “मोदी सरकार नौ साल का जश्न मना रही है तो ज़रूरी है कि आईना भी दिखाया जाए। नरेंद्र मोदी जी ने वो कीर्तिमान स्थापित किया है, जो इस देश के 14 प्रधानमंत्री उनसे पहले नहीं कर पाए हैं.”
‘इस देश के 14 प्रधानमंत्रियों ने कुल मिलाकर मात्र 55 लाख करोड़ रुपए का कर्ज़ा लिया। 67 साल में 14 प्रधानमंत्रियों ने कुल 55 लाख करोड़ रुपए का कर्ज़ा लिया और हर बार रेस में आगे रहने की चाहत वाले नरेंद्र मोदी जी ने पिछले नौ सालों में हिन्दुस्तान का क़र्ज़ा तिगुना कर दिया। 100 लाख करोड़ से ज़्यादा का क़र्ज़ा उन्होंने मात्र नौ साल में ले लिया.”
कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया का दावा है कि साल 2014 तक देश पर कुल 55 लाख करोड़ का कर्ज था जो की अब 155 लाख का हो चुका है।
BJP ने आरोप पर क्या दी सफाई?
कांग्रेस के आरोपों पर बीजेपी दल ने कहा है कि कर्ज़ को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के संदर्भ में रखकर देखा जाना चाहिए। बीजेपी आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने ट्वीट कर लिखा, ”अर्थव्यवस्था की सेहत को राजकोषीय घाटे के संदर्भ में मापा जाता है, जिसे हमेशा जीडीपी के प्रतिशत के रूप में कर्ज़ के तौर पर देखा जाता है। कर्ज़ अपने आप में पर्याप्त संकेतक नहीं हैं, जब तक कि इसे जीडीपी के संदर्भ में न देखा जाए.”अमित मालवीय लिखते हैं, ”2013-14 से 2022-23 तक भारत की जीडीपी 113.45 लाख करोड़ रुपए से बढ़कर 272 लाख करोड़ रुपए पहुँच गई। यह 139 फ़ीसदी की भारी वृद्धि है। कर्ज़ के बावजूद, मोदी सरकार ने 2014 से अब तक वित्तीय घाटे को कम किया है.””हालाँकि, 2020-21 में यह थोड़े समय के लिए बढ़ा था। ऐसा उस वक़्त कोविड-19 के कारण लिए गए वित्तीय फ़ैसलों के कारण हुआ था। अब यह दोबारा नीचे आ गया है और वर्ष 2023 में सरकार का लक्ष्य इसे (जीडीपी का) 6.4 फ़ीसदी तक रखना है।
2014 तक केंद्र सरकार पर कितना कर्ज था?
भारत सरकार ने कर्ज को लेकर केंद्रीय बजट की आधिकारिक वेबसाइट पर स्थिति स्पष्ट की। केंद्रीय बजट की आधिकारिक वेबसाइट पर 2014 तक की ‘भारत सरकार ऋण स्थिति’ के सभी दस्तावेज उपलब्ध हैं। जिन दस्तावेजों के मुताबिक 31 मार्च 2014 तक भारत सरकार पर कुल मिलाकर 55.87 लाख करोड़ रुपए का कर्ज था। जिसमें से आंतरिक ऋण 54.04 लाख करोड और 1.82 लाख करोड़ विदेशी ऋण शामिल थे।
विदेशी ऋण, जिसे वाणिज्यिक बैकों, दूसरे देशों की सरकारों और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों सहित विदेशी कर्ज़दाताओं से उधार लिया जाता है। आंतरिक ऋण में खुले बाज़ार में जुटाए जाने वाले कर्ज़, रिज़र्व बैंक को जारी विशेष शेयर्स, क्षतिपूर्ति और अन्य बॉन्ड शामिल होते हैं।
2014-2023 तक कितना कर्ज बढ़ा?
वर्ष 2022-23 के अंत तक क़र्ज़ की कुल कर्ज का अनुमान 152.61 लाख करोड़ रुपए लगाया गया था। इसमें आंतरिक ऋण लगभग 148 लाख करोड़ रुपए और विदेशी ऋण लगभग पाँच लाख करोड़ रुपए था। अगर इसमें अतिरिक्त बजटीय संसाधन (ईबीआर) और कैश बैलेंस को शामिल किया जाता है, तो कुल अनुमानित कर्ज़ 155.77 लाख करोड़ रुपए होगा। सरकार ईबीआर को बजट में लिखित कामों से अलग ज़रूरतों को पूरा करने के लिए रखती है और इमरजेंसी में इस्तेमाल करने के लिए कैश बैलेंस अतिरिक्त पैसा होता है।
वित्त मंत्री का आधिकारिक बयान
2023 के संसद के बजे सत्र के दौरान भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) के सांसद नामा नागेश्वर राव ने लिखित में प्रश्न वित्त मंत्रालय और भारत सरकार से पूछा था। जिसके जवाब में 20 मार्च 2023 को लिखित में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण जवाब दिया था। वित्त मंत्री ने बताया था, “31 मार्च, 2023 तक की स्थिति के अनुसार केंद्र सरकार के ऋण/देनदारियों की कुल राशि लगभग 155.8 लाख करोड़ रुपए (जीडीपी का 57.3 फ़ीसदी) होने का अनुमान है’’। “इसमें से वर्तमान विनिमय दर पर विदेशी ऋण 7.03 लाख करोड़ रुपए (जीडीपी का 2.6 फ़ीसदी) अनुमानित है।’’
मोदी राज में सचमुच कर्ज बढ़ा!
कांग्रेस द्वारा लिए गए दावों के मुताबिक हर व्यक्ति के मन में बस एक ही सवाल उठ रहा होगा कि क्या सच में मोदी सरकार के राज में भारत पर कर्ज तीन गुना कर्ज ज्यादा बढ़ गया? पिछली पाँच सरकारों की ओर से अपने कार्यकालों के अंतिम वर्ष में जारी बजट के दौरान दिए गए कर्ज़ के आँकड़ों का निरीक्षण करने पर पता चलता है कि हर पाँच साल में सरकार पर कर्ज़ में लगभग 70 फ़ीसदी की बढ़त देखी गई है।
अर्थशास्त्री अरुण कुमार के वजह के मुताबिक, ‘’सरकार का क़र्ज़ इस बात पर निर्भर करता है कि उसकी आमदनी कितनी है और ख़र्चे कितने हैं. अगर ख़र्चा आमदनी से ज़्यादा है तो सरकार को उधार या क़र्ज़ लेना पड़ता है. इसका सीधा असर सरकार के राजकोषीय घाटे पर पड़ता है।”
‘’1980 के बाद हमें बजट में राजस्व घाटा हो रहा है. राजस्व घाटे का मतलब है जो आपका वर्तमान ख़र्च है वो आपके राजस्व से ज़्यादा है. इसलिए मौजूदा ख़र्च को चलाने के लिए के लिए क़र्ज़ लेना पड़ रहा है. राजस्व घाटे का मतलब है कि जिसके लिए आप उधार ले रहे हैं उस पर रिटर्न नहीं आएगा. जैसे- सब्सिडी या डिफ़ेंस पर होने वाला ख़र्च. बजट का एक बड़ा हिस्सा इन पर ख़र्च होता है और फिर हमारा क़र्ज़ बढ़ता चला जाता है।”
वर्तमान में राजकोषीय घाटे की स्थिति
बजट में केंद्र सरकार ने वित्त वर्ष 2022-23 के लिए राजकोषीय घाटा (संशोधित) जीडीपी का 6.4 फ़ीसद रहने का अनुमान लगाया था, जोकि 17.55 लाख करोड़ रुपए है। वित्त वर्ष 2003-04 में राजकोषीय घाटा जीडीपी का 4.5 फ़ीसदी, 2013-14 में जीडीपी का 4.4 फ़ीसद और 2018-19 में 3.4 फ़ीसद था।
कोविड काल के शुरुआती दौर में वित्तीय वर्ष 2020-21 में राजकोषीय घाटे में अप्रत्याशित वृद्धि देखने को मिली थी, जिस दौरान राजकोषीय घाटा जीडीपी का 9.2 फ़ीसद तक पहुंच गया था।
पिछले चार सालों का औसत साल 2019 से लेकर 2023 तक देखें तो राजकोषीय घाटा जीडीपी के 6.7 फ़ीसद के आस-पास पहुंचता है।
कर्ज के पैसों का इस्तेमाल कहां करती है सरकार?
एक इंटरव्यू के दौरान अर्थशास्त्री परंजॉय गुहा ठाकुरता बताते हैं कि, साल 2014 में मोदी सरकार ने सत्ता में आने के बाद से काई सारी मुफ्त की योजनाओं की शुरुआत की। जैसे कि -80 करोड़ लोगों को हर महीने मुफ्त अनाज, करीब 10 करोड़ महिलाओं को उज्जवला योजना के तहत मुफ्त गैस सिलेंडर, करीब 9 करोड़ किसानों को सालाना 6 हजार रुपए, PM आवास योजना के तहत दो करोड़ लोगों को घर बनाने में आर्थिक सहायता, आदि।
आपका विचार क्या है?
साल 2014 में मनमोहन सिंह की सरकार तक भारत पर कर्ज 55 लाख करोड़ तक का था परंतु मोदी सरकार काल में यह कर्ज तीन गुना बढ़ गया है। वर्तमान समय में आर्थिक विकास की गति धीमी होने के साथ-साथ देश की आम जनता पार महंगाई के बोझ बढ़ता जा रहा है, इतना ही नही भारत के गोल्ड रिजर्व कम होते जा रहे हैं ओर विदेशी मुद्राओं में भी कमी देखी जा रही है। विचार करने योग्य कुछ मुद्दे ऐसे भी हैं- सरकार जताती है कि उनके पास देश के युवाओं के अच्छी शिक्षा के लिए उपयुक्त फंड नही है, उन्हें नौकरियां मुहाया कराने का फंड नही है, खाली पड़े सरकाई पदों की नियुक्ति नहीं हो पा रही है, रेल यात्रा में वृद्धजनो को रियातें भी नहीं मिल पा रही हैं, अन्य बहुत से मुद्दे हैं जो विचार करने योग्य है। आपने विचार हमारे साथ साझा जरूर करें।