आज़ादी के बाद से अब तक भारत ने अंतरिक्ष का सफर शानदार तरीके से तय किया है। साइकिल व बैलगाड़ी से शुरू हुई हमारी अंतरिक्ष यात्रा मंगल और चाँद तक पहुँच गई है। आज भारत मंगल ग्रह की ऊंचाइयों तक पहुंच गया है। परंतु यह सफर इतना आसान नहीं थी।
साल 1947 में जब हमारा देश आज़ाद हुआ, तब स्थिति इतनी दयनीय थी कि हमारे देश के पास खाने के लिये पर्याप्त अनाज भी नहीं था, ऐसे में भारत के लिए अंतरिक्ष की कल्पना करना तो बहुत दूर की बात थी। लेकिन हम साहस के साथ सभी चुनौतियों को स्वीकार कर आगे बढ़ते रहे। अंतत: साल 1962 में वह घड़ी आई जब भारत ने अंतरिक्ष का सफर करने का फैसला किया और देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति (INCOSPAR) की स्थापना की। साल 1969 में इस INCOSPAR ने ‘भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन’ (ISRO) का रूप धारण कर लिया। वर्तमान समय में में ISRO दुनिया की 6 सबसे बड़ी अंतरिक्ष एजेंसियों में से एक है।
साल 1969 में हुआ इसरो का जन्मजब भारत में अंतरिक्ष अनुसंधान गतिविधियों की शुरुआत हुई उस समय अमेरिका और रूस में उपग्रहों का परीक्षण शुरू हो चुका था। साल 1962 में भारत सरकार ने अंतरिक्ष अनुसंधान के लिये भारतीय राष्ट्रीय समिति (INCOSPAR) का गठन कर अंतरिक्ष के रास्ते पर अपना पहला कदम रखा और साल 1963 में थुंबा से पहले साउंडिंग रॉकेट के साथ भारत के औपचारिक अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरुआत हुई। बाद में, डॉक्टर विक्रम साराभाई ने उन्नत प्रौद्योगिकी के विकास के लिये 5 अगस्त 1969 को INCOSPAR के स्थान पर इसरो की स्थापना की। इसी कड़ी में भारत सरकार ने जून 1972 में अंतरिक्ष आयोग का गठन किया और अंतरिक्ष विभाग (DOS) की स्थापना की। सितंबर 1972 में इसरो को अंतरिक्ष विभाग के अंतर्गत कर दिया गया।भारत में आधुनिक अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक कहे जाने वाले साराभाई का मानना था कि अंतरिक्ष के संसाधनों से मनुष्य व समाज की वास्तविक समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। उन्होंने भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का नेतृत्व करने के लिये देश के सक्षम व उत्कृष्ट वैज्ञानिकों, मानवविज्ञानियों, समाजविज्ञानियों और विचारकों के एक दल का गठन किया था।