Friday, November 22, 2024
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किसान आंदोलन संघर्ष, एकता और लोकतंत्र की जीत

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भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहां जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा कृषि पर निर्भर है। भारतीय कृषि क्षेत्र ने समय-समय पर कई चुनौतियों का सामना किया है, जिनमें से किसान आंदोलन एक प्रमुख मुद्दा रहा है। किसान आंदोलन एक ऐसा संघर्ष है जिसमें किसानों ने अपने अधिकारों, सुरक्षा और भविष्य की रक्षा के लिए सरकार के खिलाफ आवाज उठाई। वर्ष 2020-21 में केंद्र सरकार द्वारा पारित किए गए तीन कृषि कानूनों के खिलाफ देश भर में सबसे बड़े किसान आंदोलनों में से एक का गवाह बना। यह आंदोलन कई महीनों तक चला और अंततः सरकार को किसानों की मांगों के आगे झुकना पड़ा।

किसान आंदोलन

किसान आंदोलन का मुख्य कारण केंद्र सरकार द्वारा 2020 में पारित किए गए तीन कृषि कानून थे। ये कानून थे:

  • कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम, 2020
  • कृषि (सशक्तिकरण और संरक्षण) मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा समझौता अधिनियम, 2020
  • आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, 2020

इन कानूनों का उद्देश्य कृषि क्षेत्र में सुधार लाना और किसानों को अधिक विकल्प देना था। लेकिन, किसानों का मानना था कि ये कानून उनकी समस्याओं को हल करने के बजाय उन्हें और बढ़ाएंगे। उनका सबसे बड़ा डर था कि ये कानून न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की व्यवस्था को खत्म कर देंगे, जिससे किसानों की आर्थिक सुरक्षा पर गहरा प्रभाव पड़ेगा।

आंदोलन की शुरुआत

नवंबर 2020 में पंजाब और हरियाणा के किसानों ने इन कानूनों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू किया। किसानों का कहना था कि सरकार ने इन कानूनों को बिना पर्याप्त चर्चा के पारित किया है और ये कानून बड़े कॉर्पोरेट घरानों को फायदा पहुंचाएंगे जबकि छोटे और मध्यम किसान हाशिए पर चले जाएंगे। उन्होंने दिल्ली की तरफ मार्च करने का फैसला किया और दिल्ली की सीमाओं पर डेरा जमा लिया।

आंदोलन के प्रमुख मुद्दे

  • न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की सुरक्षा: किसानों का प्रमुख डर यह था कि इन कानूनों के लागू होने से MSP की प्रणाली समाप्त हो जाएगी, जो कि उन्हें अपनी फसल का न्यूनतम मूल्य सुनिश्चित करता है।
  • कॉर्पोरेट नियंत्रण: किसानों का यह भी मानना था कि इन कानूनों से कृषि बाजार बड़े कॉर्पोरेट्स के हाथों में चला जाएगा, जिससे छोटे किसान उनके हाथों मजबूर हो जाएंगे।
  • सहमति का अभाव: किसानों का कहना था कि इन कानूनों को पारित करते समय उनसे या उनके प्रतिनिधियों से कोई सलाह-मशविरा नहीं किया गया।
  • कानूनी सुरक्षा का अभाव: कानून में विवाद समाधान के लिए किसान अदालत जाने के बजाय उप-न्यायिक अधिकारियों के पास जाने को मजबूर थे, जिससे उन्हें न्याय मिलने में कठिनाई का सामना करना पड़ सकता था।

आंदोलन का स्वरूप

इस आंदोलन का एक अनूठा पहलू यह था कि इसमें पंजाब और हरियाणा के किसानों के अलावा पूरे देश के किसान शामिल हुए। महिलाओं, बुजुर्गों और युवाओं ने भी इस आंदोलन में सक्रिय भागीदारी निभाई। दिल्ली की सीमाओं पर किसानों ने महीनों तक डेरा डाले रखा, सर्दी, गर्मी और महामारी की चुनौतियों का सामना करते हुए भी उन्होंने अपना संघर्ष जारी रखा।किसानों ने शांतिपूर्ण तरीकों से अपने आंदोलन को जारी रखा। उन्होंने लंगर की व्यवस्था की, ताकि कोई भी भूखा न रहे। चिकित्सा सहायता और अन्य आवश्यक सेवाओं की भी व्यवस्था की गई।

सरकार की प्रतिक्रिया

सरकार ने प्रारंभिक चरण में किसानों से बातचीत की और आंदोलन को समाप्त करने के लिए कई दौर की वार्ता की, लेकिन ये वार्ताएं असफल रहीं। सरकार का कहना था कि ये कानून किसानों के हित में हैं और कृषि क्षेत्र में आवश्यक सुधार लाएंगे। लेकिन किसानों का मानना था कि इन सुधारों से उनका भविष्य खतरे में पड़ जाएगा।जनवरी 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने कानूनों के क्रियान्वयन को अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया और सरकार और किसानों के बीच मध्यस्थता के प्रयास किए। लेकिन किसानों ने मांग की कि कानूनों को पूरी तरह से वापस लिया जाए।

आंदोलन की सफलता

आखिरकार, लगभग एक साल के लंबे संघर्ष के बाद, नवंबर 2021 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में इन तीनों कानूनों को वापस लेने की घोषणा की। किसानों की इस जीत को भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना के रूप में देखा गया।

आंदोलन के प्रभाव

इस किसान आंदोलन ने यह स्पष्ट कर दिया कि लोकतंत्र में जनता की आवाज़ महत्वपूर्ण है। यह आंदोलन किसानों की एकता और दृढ़ संकल्प का प्रतीक बन गया। इसने यह भी दिखाया कि किस तरह एक शांतिपूर्ण आंदोलन बड़े बदलाव ला सकता है।हालांकि, यह आंदोलन समाप्त हो चुका है, लेकिन इसके प्रभाव और संदेश लंबे समय तक भारतीय समाज और राजनीति पर बने रहेंगे। किसानों ने यह साबित किया कि जब वे एकजुट होते हैं, तो वे किसी भी चुनौती का सामना कर सकते हैं और अपनी आवाज़ बुलंद कर सकते हैं।

किसान आंदोलन ने यह साबित कर दिया कि भारतीय किसानों के पास न केवल खेती करने की क्षमता है, बल्कि वे अपने अधिकारों और भविष्य की रक्षा के लिए संघर्ष करने की ताकत भी रखते हैं। यह आंदोलन भारतीय लोकतंत्र की एक जीती-जागती मिसाल है, जहां जनता की आवाज़ को अंततः सुना गया और उसकी मांगों को पूरा किया गया।

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